सूखे पर प्रधानमंत्री मोदी को खरी-खरी

अमित सिंहअमित सिंह   25 April 2016 5:30 AM GMT

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सूखे पर प्रधानमंत्री मोदी को खरी-खरी

लखनऊ। सौ से ज्यादा सामाजिक कार्यकर्ताओं, समाजशास्त्रियों और अर्थशास्त्रियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर सूखे से बदहाल राज्यों को जल्द राहत पहुंचाने की अपील की है।

पीएम मोदी को लिखे गए खत में कहा गया है कि सूखे के शिकार राज्यों में सरकार को खाद्य सुरक्षा अधिनियम, मनरेगा और रोज़गार गारंटी एक्ट को तेज़ी से लागू पर करने पर ज़ोर देना चाहिए, ताकि सूखे से परेशान लोगों को जल्द राहत पहुंचाई जा सके।

चिट्ठी में अर्थशास्त्रियों ने पीएम मोदी को मशविरा दिया है कि सूखे से प्रभावित राज्यों में सरकारी योजनाओं को लागू करने और उसकी लाभ सीमा को भी बढ़ा देना चाहिए ताकि वक्त रहते सूखे के असर को कम किया जा सके।

पीएम मोदी को लिखी चिट्ठी में सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सूखे को लेकर की जा रही सरकारी मदद की भी आलोचना की है। चिट्ठी में गया है कि केंद्र और राज्य सरकारें सूखे से निपटने के लिए पर्याप्त इंतज़ाम नहीं कर पा रही हैं।

सरकारी योजना मनरेगा को लागू करने को लेकर भी चिट्ठी में ख़ामियां गिनाई गई हैं। अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि कई राज्यों में मनरेगा कार्यक्रम ठीक तरीके से काम नहीं कर रहा है। मनरेगा के तहत काम करने वाले लोगों को महीनों से मज़दूरी का पैसा नहीं मिला है। बीते करीब तीन साल पहले खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू किया गया था कि लेकिन जनता उसका भी ठीक से लाभ नहीं उठा पा रही है।

चिट्ठी में कहा गया कि अगर खाद्य सुरक्षा अधिनियम ठीक तरीके से लागू किया गया होता तो 80 फीसदी गरीब परिवारों को भूखा नहीं रहना पड़ता उनके महीने भर के राशन का इंतज़ाम आसानी से हो जाता। 

अरुणा रॉय, हर्ष मंदेर, जयती घोष, सतीश देशपांडे, मेधा पॉटकर, उमा चक्रवर्ती, पॉल दिवाकर और बेला भाटिया जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सरकार से अपील करते हुए कहा कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को खाद्य सुरक्षा अधिनियम के दायरे में लाने की ज़रूरत है।  

देश के वरिष्ठ अर्थशास्त्रियों मसलन प्रभात पटनायक, विजय शंकर व्यास, अमित भादुरी, प्रवीन झा और अजीत रानाडे ने कहा कि सरकार को सूखे प्रभावित राज्यों में ज्यादा से ज्यादा रोज़गार पैदा करने के साधनों पर ध्यान देना चाहिए। अर्थशास्त्रियों ने सरकार से शिकायत की है कि इस साल सरकार ने बीते साल के मुक़ाबले रोज़गार पैदा करने वाले साधनों पर कम पैसे खर्च किए हैं जिससे हालात और खराब होते जा रहे हैं। 

 

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