इजरायल के किताबों में पढ़ाए जाते हैं भारत के ये ‘हाइफा हीरो’ 

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इजरायल के किताबों में पढ़ाए जाते हैं भारत के ये ‘हाइफा हीरो’ हाइफा हीरो मेजर दलपत सिंह। फोटो : साभार इंटरनेट

दुनिया के सबसे चर्चित देशों में से एक इजरायल के प्रधानमंत्री 14 साल बाद भारत दौरे पर हैं। पीएम मोदी ने प्रोटोकाल तोड़कर उनकी अगवानी की। मेहमान पीएम नेतन्याहू ने दिल्ली के तीन मूर्ति पर जाकर हाइफा के हीरोज को नमन किया। जानिए है क्यों खास हैं हाइफा के ये हीरो

इजराइल के प्रधानमंत्री भारत आए हैं तो हाइफा की चर्चा हो रही है, इससे पहले जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इजरायल गए थे तो भी हाइफा के शूरमाओं की चर्चा हुई थी। वीरगाथा का ये किस्सा प्रथम विश्वयुद्ध से जुड़ा है। पीएम मोदी ने इजराइल के हाइफा शहर पहुंचते ही उन भारतीय शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की थी, जिन्होंने हाइफा को आजाद कराने में भारत की तरफ से युद्ध कर तुर्की सेना को खदेड़ दिया था। युद्ध में कई भारतीय सैनिक भी शहीद हो गए थे, उसमें से एक थे भारतीय सेना को लीड कर रहे राजस्थान के मेजर दलपत सिंह (हैफा हीरो)। मेजर व भारतीय सेना के पराक्रम की कहानियां आज भी इजरायली पाठ्यक्रम में दर्ज हैं और मेजर के शौर्य व पराक्रम की यहां मिसालें दी जाती हैं।

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दिल्ली का तीन मूर्ति स्मारक।

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राजस्थान के मेजर दलपत सिंह के गृह जिले पाली शहर के रहने वाले रावणा राजपूत समाज के खुशवीर सिंह जोजावर बताते हैं कि 1918 में प्रथम विश्व युद्ध के समय तुर्क सेना ने इजरायल के हैफा नामक शहर पर कब्जा कर उसे चारों ओर से घेर लिया था। उस समय मेजर दलपत सिंह के नेतृत्व में भारतीय सेना हाइफा शहर भेजी गई। जिसने मात्र डेढ़ घंटे में हैफा शहर को तुर्की सेना से मुक्त करवा लिया। 23 सितंबर 1918 की इस घटना में गोलियां लगने से मेजर दलपत सिंह शहीद हुए थे। ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें मरणोपरांत 'विक्टोरिया क्रॉस मैडल' से नवाजा। उन्हें मिलिट्री क्रॉस से भी सम्मानित किया गया। दलपतसिंह ने तुर्की सेना की तोपों का मुंह उन्हीं की ओर मोड़ते हुए जबरदस्त वीरता का परिचय दिया था। ऐसे में उन्हें हीरो ऑफ हैफा के नाम से पूरा इजराइल इतिहास की पाठ्य पुस्तकों में पढ़ता है।

मेजर की शौर्यगाथाएं राजस्थान में भी प्रचलित हैं व हर साल इनकी जयंती व बलिदान दिवस पर इन्हें याद किया जाता है। संस्थानके संरक्षक मूलसिंह भाटी वे बताते हैं कि यह उनके समाज के लिए व देश के लिए हर्ष का विषय है कि इजरायल के पाठ्यक्रमों में भी इस हाइफा हीरो की गाथाएं पढ़ाई जाती हैं। इसी शहर के अमानसिंह डिगरना भी इस सेना में शामिल थे, जिन्होंने महत्पूर्ण भूमिका निभाई थी।

भारत में यह सम्मान

यह युद्ध जोधपुर और मैसूर लांसर्स की शानदार विजय का प्रतीक है। इसमें जर्मन-तुर्की सेना के 700 लोग बंदी बनाए गए। तोपों के खिलाफ घुड़सवार हमले का यह युद्ध इतिहास में अमर है। भारतीय सेना इस दिन को हैफा विजय दिवस के रूप में मनाती है। दिल्ली का तीन मूर्ति स्मारक इन वीरों के सम्मान में ही बनाया गया है। आमजन को इस इतिहास की जानकारी न के बराबर है।

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