भारत की वृद्धि दर में नोटबंदी, जीएसटी बनी रोड़ा : विश्व बैंक
Sanjay Srivastava 11 Oct 2017 5:25 PM GMT

वाशिंगटन (भाषा)। भारत की आर्थिक वृद्धि को लेकर बनी चिंताओं के बीच विश्वबैंक ने उसकी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर कम रहने का अनुमान जताया है। नोटबंदी और माल एवं सेवाकर (जीएसटी) को प्रमुख कारण बताते हुए उसने 2017 में भारत की वृद्धि दर 7 फीसद रहने की बात कही है जो 2015 में यह 8.6 थी।
विश्वबैंक ने यह चेतावनी भी दी है कि अंदरुनी व्यवधानों से निजी निवेश के कम होने की संभावना है जो देश की वृद्धि क्षमताओं को प्रभावित कर नीचे की ओर ले जाएगा।
कल अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भी 2017 के लिए भारत की वृद्धि दर का अनुमान घटाकर 6.7 फीसद कर दिया था। यह उसके पूर्व के दो अनुमानों से 0.5 फीसद कम है, जबकि चीन के लिए उसने 6.8 फीसद की वृद्धि दर का अनुमान जताया है।
अपनी द्विवार्षिक दक्षिण एशिया आर्थिक फोकस रपट में विश्वबैंक ने कहा है कि नोटबंदी से पैदा हुए व्यवधान और जीएसटी को लेकर बनी अनिश्चिताओं के चलते भारत की आर्थिक वृद्धि की गति प्रभावित हुई है। परिणामस्वरप भारत की आर्थिक वृद्धि दर 2017 में 7 फीसद रहने का अनुमान है जो 2015 में 8.6 फीसद थी। सार्वजनिक व्यय और निजी निवेश के बीच संतुलन स्थापित करने वाली स्पष्ट नीतियों से 2018 तक यह वृद्धि दर बढकर 7.3 फीसद हो सकती है।
विश्वबैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की वार्षिक बैठक से पहले जारी इस दक्षिण एशिया आर्थिक फोकस रपट में कहा गया है कि सतत वृद्धि से गरीबी कम होने की उम्मीद है लेकिन इस पर अधिक ध्यान देने का ज्यादा फायदा अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को मदद देने में मिल सकता है।
विश्वबैंक ने कहा कि भारत की आर्थिक वृद्धि धीमी पड़ने का असर दक्षिण एशिया की वृद्धि पर भी हुआ है, परिणामस्वरुप दक्षिण एशिया पूर्वी एशिया और प्रशांत महासागर क्षेत्र के बाद दूसरे स्थान पर आ गया है।
रपट में कहा गया है, जीडीपी की वास्तविक वृद्धि दर 2016 में घटकर 7.1 फीसद रही जो 2015-16 में 8 फीसद थी और वित्त वर्ष 2016-17 की पहली तिमाही में यह घटकर 5.7 फीसद पर आ गई है। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के बाद एक तरफ जहां सार्वजनिक और निजी उपभोग में वृद्धि हुई और अच्छे मानसून से कृषि और ग्रामीण मांग में बढ़ोत्तरी हुई। वहीं दूसरी तरफ संपूर्ण मांग कम हो गई क्योंकि निजी निवेश कम होना शुरू हो गया।
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विश्वबैंक के अनुसार जीएसटी से 2018 की शुरुआत तक आर्थिक गतिविधियों के बाधित रहने की संभावना है लेकिन इनकी गति बढ सकती है. तथ्य दिखाते हैं कि जीएसटी के बाद विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में तीव्र संकुचन हुआ है। आर्थिक वृद्धि की गतिविधियों के एक तिमाही के भीतर स्थिर होने की उम्मीद है और यह 2018 में 7 फीसद की वार्षिक वृद्धि को बनाए रख पाएंगी। वर्ष 2020 तक आर्थिक वृद्धि के 7.4 फीसद पर पहुंचने का अनुमान है जो निजी निवेश में सुधार पर निर्भर करेगी।
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