WTO : भारत की खाद्य सुरक्षा दांव पर

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WTO : भारत की खाद्य सुरक्षा दांव परअर्जेंटीना में 13 दिसंबर तक चलेगी ये अहम बैठक। फोटो साभार-

अर्जेंटीना के ब्यूनस आयर्स में 10 से 13 दिसंबर के बीच विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की 11वीं मंत्रिस्तरीय बैठक हो रही है। विश्व व्यापार का भविष्य तय करने वाली यह बैठक विकासशील देशों खासकर भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें लिए जाने वाले फैसलों का असर भारत की खाद्य सुरक्षा पर पडे़गा।

अमीर और विकसित देश भारत व दूसरे विकासशील देशों में खाद्यान्न सब्सिडी, खाद्यान्न भंडारण और सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर रोक लगाने के लिए दबाव बना रहे हैं। बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व वाणिज्य मंत्री सुरेश प्रभु करेंगे कई किसान नेता और सांसद भी भारत से वहां पहुंचे हुए हैं।

आने वाले दिनों में इस विषय पर काफी चर्चा होगी, उसे समझने के लिए जरूरी है कि कुछ शब्दों और मुद्दों को जान लें:

डब्ल्यूटीओ में विकसित बनाम विकासशील देश

अमेरिका, यूरोपियन यूनियन, ऑस्ट्रेलिया और जापान समेत विकसित देशों को भारत व दूसरे विकासशील देशों की खाद्यान्न नीति से समस्या है। वे खाद्यान्न खरीद, न्यूनतम समर्थन मूल्य, सार्वजनिक वितरण व्यवस्था जैसे विषयों पर भारत से नीति में बदलाव कर इन्हें खत्म या कम करने की मांग कर रहे हैं। दूसरी तरफ, देश में बढ़ते कृषि संकट, किसानों की आत्महत्या, जनता के बहुत बड़े हिस्से को पौष्टिक भोजन न मिल पाना ऐसे मुद्दे हैं जिनके चलते ऐसा करना भारत के लिए फिलहाल संभव नहीं है।

क्या चाहते हैं अमीर देश

कृषि मुद्दों के जानकारों का कहना है कि अमीर देश चाहते हैं भारत अपने किसानों और गरीब उपभोक्ताओं को संरक्षण देना छोड़ उन्हें बाजार के भरोसे छोड़ दे।

अमीर देशों के मुताबिक, भारत सरकार द्वारा कृषि उत्पादों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने से इनकी कीमत पर सरकार का नियंत्रण बना रहता है और बड़े कॉरपोरेट घरानों का मुनाफा कम हो जाता है। अमीर देश इसके खिलाफ हैं।

चूंकि भारत सरकार केवल न्यूनतम समर्थन मूल्य ही तय नहीं करती बल्कि किसानों से गेहूं, चावल, गन्ना और दाल खरीदती भी है तो इस तरह ये किसान बहुराष्ट्रीय कंपनियों की पहुंच से बच जाते हैं। अमीर देशों को इस पर भी ऐतराज है।

अमीर देशों को यह भी मंजूर नहीं कि भारत अपनी गरीब जनता को सस्ती दरों पर राशन की दुकान से खाद्यान्न मुहैया कराए। उनकी निगाह में इस तरह सरकार उनसे उनके संभावित ग्राहक छीन कर मुक्त बाजार के नियमों का उल्लंघन करती है।

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डब्ल्यूटीओ की नजरों में बैड सब्सिडी और गुड सब्सिडी

डब्ल्यूटीओ भारत सरकार के इन सभी कदमों की गिनती सब्सिडी में करता है और उसे बैड या बुरी सब्सिडी बताता है। बैड इसलिए क्योंकि इससे बाजार प्रभावित होता है मतलब बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां मुनाफा कमाने से रह जाती हैं।

डब्ल्यूटीओ ने सब्सिडी को ग्रीन बॉक्स, ब्लू बॉक्स और एंबर बॉक्स सब्सिडी में बांट दिया है। ब्लू व ग्रीन बॉक्स सब्सिडी ऐसी सब्सिडी हैं जिनसे विश्व व्यापार पर असर नहीं पड़ता या फिर बहुत कम असर पड़ता है। उदाहरण के लिए अमेरिका में सरकार किसानों को कुछ रकम इसलिए देती है कि वे अपने खेत खाली छोड़ दें जिससे उत्पादन कम हो और बाजार स्थिर रहे। वहीं, एंबर बॉक्स सब्सिडी वे हैं जिनसे घरेलू उत्पादन प्रभावित होता है व जिसका असर विश्व व्यापार पर पड़ता है। उदाहरण के लिए भारत में बिजली, खाद वगैरह में सब्सिडी देने का सीधा असर उत्पादन पर पड़ता है।

अमीर देश नहीं चाहते भारत में चीजों के तय हों एसएसपी।

बाली पीस क्लॉज:

भारत ने 2013 में बाली में हुई 10वीं मंत्रिस्तरीय बैठक में एक पीस क्लॉज या शांति अनुच्छेद ला कर दिसंबर 2017 तक अपनी सब्सिडी जारी रखने का रास्ता निकाल लिया था। डब्ल्यूटीओ सदस्य देश के तौर पर वैश्विक व्यापार नियमों के तहत किसी देश का खाद्यान्न सब्सिडी बिल उसकी उत्पादन आधार के मूल्य के 10 पर्सेंट से ज्यादा नहीं होना चाहिए। यह मूल्य 1986-88 के मूल्य के आधार पर तय होता है। वर्तमान में भारत की सब्सिडी इस सीमा का उल्लंघन करती है। लेकिन बाली पीस क्लॉज के तहत कोई भी देश विश्व व्यापार संगठन में कृषि खरीद के मुद्दे पर भारत का विरोध नहीं कर सकता था, चाहे वो सब्सिडी की उच्चतम सीमा 10 पर्सेंट को पार कर जाये। अब भारत इस सब्सिडी सीमा के आकलन की विधि में संशोधन चाहता है, ताकि देश में खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम का पूर्ण अनुपालन किया जा सके।

भारत को दिखानी होगी मजबूती

बैठक में भारत को इस मुद्दे पर अपना पक्ष जबर्दस्त तरीके से रखना होगा और खाद्यान्न खरीद की प्रक्रिया को किसी भी तरह की कटौती से बचाना होगा। कृषि जानकारों और व्यापार नीति विशेषज्ञों के मुताबिक, विकसित देश चाहते हैं कि भारत सरकार किसानों से खाद्यान्न खरीदना बंद कर दे और अपनी सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को समाप्त कर दे। इसके अलावा पीडीएस के तहत राशन बांटने की जगह सरकार को कोटेदारों के बैंक आउंट में सीधे रकम भेजनी चाहिए ताकि जनता इस रकम का इस्तेमाल करके अपनी जरूरत की चीजें बाजार से ही मार्केट रेट पर खरीदे। इससे धीरे-धीरे खाद्यान्नों पर से सरकार का नियंत्रण खत्म हो जाएगा। गौरतलब है कि मोदी सरकार ने प्रयोग के तौर पर दो केंद्र शासित प्रदेशों चंढीगढ़ और पुदुचेरी में 2015 में सभी राशन की दुकानें बंद कर लाभार्थियों के बैंक अकाउंट में पैसे भेजने की शुरूआत की थी। लेकिन लगभग दो महीने में ही यह प्रयोग नाकाम साबित हुआ।

इसलिए बहुत जरूरी है कि भारत ब्यूनस आयर्स में आक्रामक रवैया अपनाए क्योंकि खाद्यान्न सुरक्षा नीतियों पर होने वाली चोट के निश्चय ही गंभीर राजनीतिक और सामाजिक-आर्थिक परिणाम होंगे।

पीडीएस के भी खिलाफ हैं अमीर देश

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