दुविधा में बेटियां: भाई चुनें या पैतृक सम्पत्ति

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दुविधा में बेटियां: भाई चुनें या पैतृक सम्पत्तिgaonconnection

गोण्डा। बेटी और बेटा बराबर हैं पर पिता की संपत्ति पर कानून बनने के बाद भी हक बेटों का ही दिखता है। बेटियों को ये हक सिर्फ कागजों पर मिला है हकीकत में अभी बाकी है।

‘‘पिता की मृत्यु के बाद मां के कहने पर मैंने हस्ताक्षर करके अपना हिस्सा भी भाईयों को दे दिया, रिश्तेदारों का कहना था कि तुम्हारी तो शादी हो जाएगी जहां जाओगी वहां का सबकुछ मिलेगा ही पर यहां सबसे मनमुटाव हो जाएगा तो आगे जरूरत पड़ने पर कोई काम नहीं आएगा।’’ मुख्यालय से लगभग 25 किमी दूर पंडरीकृपाल गाँव की रचना चौबे (25 वर्ष) बताती हैं।

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 में संशोधन करके 9 सितंबर 2005 को लैंगिक विभेदकारी कानूनों को समाप्त करके बेटी को पिता की संपत्ति में बराबरी का हक दिया गया है। पारिवारिक दबावों और जानकारी की कमी के कारण ग्रामीण महिलाएं अपने इस हक से वंचित रह जातीं हैं। ऑक्सफैम ने उत्तर प्रदेश में एक सर्वे किया था, जिसमें ये बात साफ हुई कि प्रदेश मेें महज छह फीसदी महिलाओं के पास ही ज़मीन का मालिकाना हक है।

‘‘पिता की मृत्यु के बाद संपत्ति में पत्नी और बेटे, बेटियों का बराबर का हिस्सा लगता है। लेकिन ज्यादातर केस में बेटियों से एनओसी नॉन ऑबजेक्शन सर्टिफिकेट पर हस्ताक्षर करवा लेते हैं जिससे सारी जायदाद भाईयों के नाम हो जाती है।’’ डॉ केके शुक्ला एडवोकेट लखनऊ हाईकोर्ट बताते हैं। वो आगे बताते हैं, ‘‘आजकल ऐसे केस ज्यादा आ रहे हैं, जिनमें लेखपाल से ही फर्जी एनओसी लगवाकर लोग पूरी जायदाद अपने नाम पर कर लेते हैं। बहन को पता भी नहीं चलता उसके नाम भी कोई जायदाद है। ’’

बराबर का हक न मिलने के लिए बेटियां कहां शिकायत कर सकती हैं इसका जवाब देते हुए डॉ शुक्ला बताते हैं, “अगर जायदाद में किसी लड़की का नाम नहीं है या उसे संपत्ति पर बराबरी का हक देने के लिए मना किया जाता है तो वह सीधे तहसीलदार को एक आवेदन पत्र लिखकर, खतौनी दिखाकर मुकदमा कर सकती है।” 

गोण्डा जिला मुख्यालय के धानेपुर गाँव की रहने वाली सुनीता मौर्या (26) पढ़ी लिखीं हैं लेकिन उन्हें ये नहीं पता कि पिता की संपत्ति पर उनका हक भी भाई के बराबर है। ‘‘मुझे नहीं पता ये कानून अभी तक। हमारे यहां तो लड़कों को ही सबकुछ मिलता है लड़की की शादी कर दी जाती है बस।’’गोण्डा सदर के एसडीएम नरेन्द्र सिंह बताते हैं, ‘‘पिता की संपत्ति में महिलाओं क ा अधिकार का कानून तो है लेकिन दावा करने वाले बहुत कम या न के बराबर हैं। इसका कारण यह है कि  ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को इसकी जानकारी नहीं है।’’

बेटियों के बराबरी के इस हक पर ग्रामीण अंचल की पुरानी पीढ़ी की मान्यता अभी नहीं बदल पाई है। गोण्डा जिला मुख्यालय से लगभग 25 किमी दूर पंडरीकृपाल गाँव के राधेलाल यादव (67 वर्ष) बताते हैं, ‘‘अब ये तो गलत कानून है, बेटी की शादी में कम पैसा लगता है क्या और फिर उसे तो पति की संपत्ति मिलती ही है। ऐसे तो और रिश्ते खराब होंगे।’’

लखनऊ के भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय की कानून विभाग की प्रोफेसर डॉ सुदर्शन वर्मा बताती हैं, ‘‘कानून में भले ही बदलाव कर दिए जाएं लेकिन मानसिकता आज भी वही है। अगर कोई लड़की अपना हक चाहती हो तो घरवाले उसे रिश्तों का हवाला देकर भावनात्मक रूप से कमजोर कर देते हैं अगर वो ऐसा करेगी तो सब नाराज हो जाएंगे, कोई उसका साथ नहीं देगा।’’

गोण्डा सदर के तहसीलदार आनन्द श्रीनेत बताते हैं, ‘‘पिता की संपत्ति पर अधिकार मांगने वाली बेटियों के केस शहरी क्षेत्रों से ही आते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तो पिता की मृत्यु के बाद चाचा या ताऊ के बेटों ने कब्जा कर लिया हो इस तरह के मामले ही ज्यादा आते हैं लेकिन सगे भाई बहनों में लड़कियां अपना हिस्सा मांगने नहीं आती हैं।’’ ‘ये एक पहल थी महिलाओं को सशक्त करने की पर उसका लाभ नहीं दिख रहा है। शिक्षित वर्ग की महिलाएं अपने हक को लेकर आवाज उठातीं भी हैं पर गाँव की महिलाएं आज भी इससे दरकिनार हैं।’’ बीएचयू के समाजशास्त्री ओपी भाटिया बताते हैं।

 

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