एक चिंकारे की आत्महत्या

मंजीत ठाकुरमंजीत ठाकुर   29 July 2016 5:30 AM GMT

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भई, सुल्तान छूट गए। कातिल नहीं मिले। गवाह गायब हो गए। न्याय-व्यवस्था साफ कहती है, सौ दोषी छूट जाएं लेकिन किसी निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए। तो इस बिनाह पर, मियां सलमान निर्दोष साबित भये। हिरण बेचारा मारा गया। बंदूक भी थी, लाश भी थी, बस नहीं था तो कोई क़ातिल।

अब कहां ढूढ़ने जाओगे हिरण के क़ातिल? यूं करिए कि क़त्ल का इल्जाम हिरण पर ही रख दीजिए। सलमान खान रिहा हो गए। गज़ब की ख़बर हुई। सुल्तान, दबंग या फिर भाईजान, जाने कितने नामों से मीडिया को खुशी से बेहाल होते देखा। हाई कोर्ट ने छोड़ा है तो सुप्रीम कोर्ट में भी छूट ही जाएंगे।

न, न सहारा की मिसाल न दीजिएगा, वे संपत्ति नहीं बेच पाए हैं, वाला उनका बयान मार्केट में चला नहीं है। वैसे भी सवाल इस बात पर खड़ा नहीं होना चाहिए कि सलमान को रिहाई कैसे मिली। सवाल तो यह होना चाहिए कि असल में हिरण मरा या नहीं मरे? बल्कि कायदे से तो उस जंगल के हिरणों को इस अपराध में सज़ा देनी चाहिए कि उनकी वजह से एक मासूम सुपरस्टार को परेशानी हुई।

हिरण बिरादरी पर मानहानि का दावा करना चाहिए सलमान को। एक सजा यह भी हो सकती है कि सलमान खान को अब हिरणों के शिकार की इजाज़त दे देनी चाहिए। हिरण मूर्ख ही है। मूर्ख नहीं तो क्या... कि दबंग के हाथों मरने के लिए बेकरार नहीं हो रहे? भाईजान के हाथों? उनको तो कतार में आना चाहिए, भाईजान एक लात मुझे, सल्लू भाई एक गोली इधर भी।

हरीश दुलानी का नाम आपने सुना ही होगा। इस मामले के चश्मदीद गवाह थे लेकिन मीडिया को सलमान जितना ग्लैमर हरीश दुलानी में नहीं दिखा। दिखना भी नहीं चाहिए। वर्षों पहले जब इस खबर में हरीश दुलानी की कहानी शुरू हुई थी तो उसकी मां मिली थी एक मकान में बैठी हुई। बेटा गायब हो गया था। एक बार बयान देने के बाद गायब हो गया हरीश दुलानी। फिर वर्षों तक कहां रहा कुछ पता नहीं। एक दूसरा गवाह और था जो एक गाँव में था, अच्छा-खासा आदमी पागलों की तरह बर्ताव कर रहा था और झोपड़ी में उसकी हालत देख कर लगा था ज्यादा दिन जिंदा नहीं रहेगा। वही हुआ।

सलमान की राह के कांटे ज्यादा दिन टिकने वाले नहीं थे। सत्य की राह पर खड़े सलमान ने इसी वजह से शादी भी नहीं की। (ऐसा वह एक चैनल पर इंटरव्यू में बता रहे थे) हाय रे त्याग।

वैसे, कुछ साल बाद हरीश दुलानी वापस आ गया। दुलानी को अदालत ने कई बार सम्मन भेजे। कई बार उसकी तलाशी का नाटक हुआ लेकिन किसी को उसका पता नहीं लगा लेकिन किसी अदालत ने किसी अधिकारी को कठघरे में खड़ा करने की नहीं सूझी।

अदालतों की एक बात और सुंदर लगती है कि जब वो किसी को रिहा करती हैं तो जांच एजेंसी को काफी कोसती है लेकिन किसी के खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं करती। हालांकि, ऐसा करना भी उनके अधिकार-क्षेत्र में आता है लेकिन यह तरीका फायदेमंद है।

भई, सांप भी न मरे और लाठी भी टूट जाए, यह कहावत किसी अक्लमंद ने ही बनाई होगी। केस की मजेदार बात यह थी कि बचाव पक्ष को अहम गवाह से जिरह की जरूरत ही नहीं महसूस हुई। बहरहाल, देश के सभी हिरणों से मेरी गुजारिश है कि वह यह मान लें कि जन्म उनका अगर हिरण में हुआ है तो मरना नियति है उनकी। तय है, हिरण हुए हो तो मारे ही जाओगे। जंगल में रहोगे, शेर से, शेर से बचे तो किसी बंदूक से। फिर कोई अदालत सजा न दे पाएगी, काहे कि सुबूत ही न होंगे। हिरणों के पक्ष में भी कभी कोई सुबूत हुआ है?

हिरण, तुम फुटपाथ पर सोओगे, तो याद रखना बीएमडब्ल्यू की जमात सड़कों पर बेहिसाब दौड़ रही है, दिशाहीन, अनियंत्रित, जिनका कोई ड्राइवर नहीं है। अगर ड्राइवर है भी तो किसी ताकतवर का नौसिखिया नाबालिग छोकरा है। पता नहीं नशे में गाड़ी हो, या गाड़ियों में पेट्रोल की जगह शराब डाली जा रही है...हिरणों का कुचला जाना तय-सा हो गया है। देश की हिरणों...गाओ, हुड हुड दबंग-दबंग।

(यह लेख, लेखक के ब्लॉग गुस्ताख से लिया गया है।)

 

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