एक दिन की शादी तोड़ने के लिए कोर्ट के चक्कर

Swati ShuklaSwati Shukla   24 April 2016 5:30 AM GMT

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एक दिन की शादी तोड़ने के लिए कोर्ट के चक्करगाँव कनेक्शन

लखनऊ। अप्रैल की घनी धूप में लखनऊ के रहने वाले दिव्या और हरीश (बदले हुए नाम) साथ-साथ फैमली कोर्ट आए थे, अपनी एक दिन की शादी खत्म कर, तलाक लेने।

2014 में दिव्या और हरीश ने परिवार के दबाव में आकर शादी की थी। परिवार वालों ने न तो एक दूसरे से मिलने दिया, न ही कोई तस्वीर ही देखी। परिवार की जि़द के आगे ये दोनों भी हार गए। लेकिन शादी के एक दिन बाद ही दोनों ने एक दूसरे को बताया कि वे दोनों ही किसी और से प्यार करते हैं। इसके बाद दोनों ने तय किया कि तलाक ले लेंगे।

“शादी के बाद परिवार का भी दबाव नहीं था, तो हमने तय किया, ज़बरदस्ती निभाने की ज़रूरत नहीं है, डिवोर्स ले लेते हैं,” दिव्या ने कहा। देश में पारिवारिक कोर्ट में तलाख के अब ऐसे भी मामले खूब आ रहे हैं, जिनमें पती-पत्नि का रिश्ता एक दिन भी नहीं चला। बड़ी संख्या में आने वाले ऐसे मामले भी एक कारण है, जिसकी वजह से पारिवारिक कोर्ट पर लंबित मामलों का दबाव भी लगातार बढ़ता जा रहा है।  पारिवारिक अदालतों में तलाक के मामलों की बढ़ रही संख्या के निदान के लिए डाली गई जिला अधिवक्ता संघ इलाहाबाद की पीआईएल के अनुसार लखनऊ की दो न्यायालयों में 16,594 मामले चल रहे हैं।   

आगरा में सिर्फ एक फैमली कोर्ट है, जिसमें 7,238 मामले हैं। “लखनऊ में आये दिन 70 से 80 मुकदमे आते हैं। इसमें से 10 प्रतिशत मामले ही जल्दी निपट पाते हैं बाकि मामलों में बहुत समय लगता है। न्यायधीशों की बहुत ज्यादा कमी है। यहां पर सिर्फ दो न्यायधीश हैं”, लखनऊ के पारिवारिक न्यायालय में अधिवक्ता नीलम चौरसिया ने बताया।

एक दिन की ही अपनी शादी को कानूनी तौर पर खत्म करने के लिए फैमली कोर्ट पहुंची हेमा (बदला हुआ नाम) बताती हैं, “मेरे पति को मैं पसन्द नहीं हूँ, वो किसी और से शादी करना चाहते हैं। अब साथ नहीं रह सकते तो चलो तलाक ही ले लें। हम दोनों अपनी मर्जी से तलाक ले रहे हैं”। 

हेमा को भी उसके पति ने शादी की ही रात ये सच्चाई बताई थी। दोनों तभी से अलग हैं। हेमा की शादी नवम्बर 2013 में लखनऊ के आलमबाग में हुई थी। हेमा आगे बताती हैं, “शादी का तो सिर्फ नाम हुआ है इसको मैं शादी नहीं मानती। एक दिन कि शादी के लिए कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं”।

यूपी के इलाहाबाद में भी केवल दो पारिवारिक न्यायालय हैं जिनमें 9,400 मामले चल रहे हैं। गाजियाबाद की एक कोर्ट में 8,899 मामले चल रहे हैं और गोरखपुर में एक कोर्ट में 8088 मामले हैं।

सरोजनी (बदला हुआ नाम) ने फेसबुक पर एक लड़के से प्यार किया और उसी से शादी कर ली। शादी की रात उसे पता चला लड़का शारीरिक रुप से अक्षम है, तो सरोजनी पति से अलग हो गई और तलाक के लिए कोर्ट के चक्कर लगाने लगी।

जानकारों का कहना है कि लोगों में सहनशीलता और भौतिकवाद बढ़ने के चलते ये मामले बढ़ रहे हैं।

 “जैसे-जैसे बढ़ते भौतिकवाद, लड़के-लड़कियों में भेदभाव, आसमान छूती महत्वाकांक्षाओं और तनावपूर्ण पेशेवर जिंदगी ने मनुष्य को स्वार्थी और आत्मकेंद्रित बना दिया है। पति-पत्नी की एक-दूसर से उम्मीदें बढ़ गई हैं”, पारिवारिक न्यायालय लखनऊ के बार एसोसिएशन के अध्यक्ष सूरेश नारायण मिश्र ने आगे बताया, “लड़के-लड़की को लगता है कि उनकी उम्मीदें पूरी नहीं हो रहीं तो वे धैर्य रखने व एक-दूसर को समझने की बजाय सीधे तलाक लेना बेहतर समझते हैं”।  

रिपोर्टर -

 स्वाती शुक्ला

 

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