एक-दूसरे से बात करते हैं पौधे

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एक-दूसरे से बात करते हैं पौधेgaonconnection

क्या पौधों में भी आपसी संवाद होता है? जी हां, पौधे आपस में संवाद करते हैं, इनमें एक-दूसरे तक सूचना पहुंचाने की व्यवस्था भी होती है। जिराफ और ऊंट जब बबूल के ऊंचे पेड़ों की शाखाओं पर किनारों पर लगी ताजी हरी पत्तियों को खाने जाते हैं और जैसे ही पहले पौधे पर किनारे पर लगी पत्तियों पर मुंह मारते हैं, कुछ ही देर में इस पौधे की पत्तियों से एक विशेष प्रकार की जहरीली गैस का रिसाव होता है जो हवा के माध्यम से नजदीक के बबूल के पेड़ों तक पहुंच जाती है।

तुरंत नजदीकी पेड़ अपनी रक्षा के लिए जहरीले टॉक्सिंस को पत्तियों की सतह पर ले आते हैं और जब ये जानवर नजदीकी दूसरे पेड़ों पर मुंह मारने की कोशिश करते हैं तो पत्तियों की कड़वाहट इन्हें बबूल के पेड़ों से दूर होने पर मजबूर कर देती हैं। पौधों के बीच अपनी सुरक्षा के लिए इस तरह के संवाद को मैंने तो कभी नहीं सुना था या पढ़ा था और शायद आपने भी पहले कभी सुना नहीं होगा।

पता है, पौधे एक-दूसरे को सिग्नल देकर भी खतरे से सावधान भी करते हैं? जीहां, बबूल की तरह पत्तागोभी भी गजब के सिग्नल्स देती है। जैसे ही खेत में कोई शाकाहारी जीव या कीट प्रवेश कर जाए, पत्तागोभी मेथाईल जास्मोनॉईड नामक उड़नशील गैस का स्रावण करती है जिससे आस-पास के पत्तागोभी पौधों में भी इस गैस का स्रावण शुरू हो जाता है। टिड्डे, पतंगे और कई छोटे-मोटे कीट इस गैस की गंध को बर्दाश्त नहीं कर पाते और दूर चल देते हैं।  

बबूल और पत्तागोभी के उदाहरण पर गौर करें तो समझ आता है वास्तव में इनमें तैयार होने वाले रसायन एक तरह के हथियार ही हैं। यानी, पौधों के पास भी रासायनिक हथियार होते हैं वो भी अपने दुश्मनों के लिए? नीम भी अपने दुश्मनों से रक्षा के लिए रासायनिक हथियारों का प्रयोग कर दुश्मनों का खात्मा कर देता है। दरअसल जब कोई चींटी या कीट नीम की पत्तियों पर आक्रमण करता है या नीम के पौधे के किसी अंग को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है, नीम तुरंत अपने रासायनिक हथियार यानि एक रसायन एजेडिरक्टिन का स्रावण करता है। इस रसायन के जहरीले प्रभाव से कीट के लिए सांस लेना भी दुभर हो जाता है और अंतत: उसकी मौत हो जाती है। 

नीम का कीटनाशक के रूप में उपयोग जगजाहिर है। जंगल में सुरक्षा की रासायनिक औजारों वाली तैयारियां हैं तो, आपसी स्पर्धा भी है। पेड़ पौधे अपनी वृद्धि और विकास के लिए आपस में प्रतिस्पर्धा करते हैं। एक ही तरह के पौधे लगातार वर्षों तक एक ही तरह अपना वजूद बनाए रखते हैं और किसी नयी प्रजाति को इस जगह पर आकर बसने में अच्छा खासा संघर्ष करना पड़ता है।

सागौन के जंगलों में किसी नयी प्रजाति का पौधरोपण किया जाए, पौधा सिर्फ संघर्ष करता रह जाता है, यह भी संभव है कि पौधा जीवित रह पाए लेकिन इस नए पौधे का सागौन की तरह वनों में एकाधिकार होने की संभावना उस वन परिक्षेत्र में नगण्य मानी जा सकती है। “सिक्रेट लाइफ ऑफ प्लांट्स” का आप कभी अध्ययन जरूर करें, बेहद रोचक किताब है। इसी किताब ने मुझे बोध कराया कि पौधों में मानव की तरह हर क्रिया और प्रतिक्रिया पर खुद को अभिव्यक्त करने की क्षमता होती है।

पौधों को दर्द भी महसूस होता है, जीहां, पौधों को तने से या किसी भी अंग से काटे जाने पर उन्हें दर्द महसूस होता है। अमेरिकन वैज्ञानिक बैकस्टर और उनकी टीम नें बाकयदा आधुनिक संयंत्रों द्वारा इस तथ्य की पुष्टि भी की है।

पौधे रिझाने का प्रयास करते हैं? जी हां, एरिस्टोलोकिया नामक पौधा कीट और मकोड़ों को अपनी ओर आकर्षित करने का जबर्दस्त हथकंड़ा अपनाता है। आप इस पौधे के ज्यादा करीब जाने की कोशिश ना करें अन्यथा 15 दिनों तक मरे हुए चूहे की गंध आपकी नाक से दूर नहीं होगी। दरअसल इस पौधे का फूल मरे हुए चूहे सी गंध का रिसाव करता है जिससे किसी मृत जीव होने की आशंका लिए कीट, मकोड़े इस फूल तक चले जाते हैं। जैसे ही कीट फूल में प्रवेश करते हैं, बस जकड़ लिए जाते हैं। पौधे यदि कीटभक्षण कर सकते हैं तो स्वयं डरते भी हैं।

छुईमुई को आपने देखा ही होगा, जैसे ही हम इसकी पत्तियों को स्पर्श करते हैं, पत्तियों संकुचित होकर बंद हो जाती हैं। दरअसल खतरे का अहसास होते ही इसके तने से ऐसे रसायन बनते है जो पत्तियों की कोशिकाओं के पानी को बाहर की तरफ धकेलते हैं, परिणाम स्वरूप पत्तियां आपस में जकड़ जाती हैं। पौधों की अपनी अलग दुनिया है, कभी आराम से बैठकर एक पौधे को निहारकर देखिए, कुछ ना कुछ सीख जरूर मिलेगी।

 

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