एक नदी की हत्या में सबके हाथ लाल

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एक नदी की हत्या में सबके हाथ लालगाँवकनेक्शन

सिद्धार्थनगर। कभी पवित्र नदी का दर्जा रखने वाली आमी नदी अब एक काले रंग के बदबूदार पानी वाले नाले में तब्दील हो गई है। यह नदी सिर्फ 126 किलोमीटर लंबी है और काफी कम चौड़ी भी है लेकिन नदी के सहारे सैकड़ों गांवों की जिंदगी चल रही थी।

पूर्वांचल में गेहूं के साथ दहलन और तिलहन के लिए प्रसिद्ध रहे क्षेत्र में अब जमीनें बंजर हो रही हैं। नदी के पानी से अगर खेत की सिंचाई होती है तो फसल बर्बाद हो जाती है। पानी जहरीला होने से सारी मछलियां और जलीव जीव मर गए हैं। पशु-पक्षी तक नदी के आसपास नहीं फटकते।

आमी नदी का उद्गम सिद्धार्थनगर जनपद के डुमरियागंज तहसील स्थित सिकहरा ताल से हुआ है। यहां से निकलकर यह नदी बस्ती, संतकबीरनगर होते हुए गोरखपुर जनपद में राप्ती नदी में मिल जाती है। आमी के पतन की शुरूआत करीब ढाई दशक पहले हुई।

गोरखपुर औद्दोगिक विकास प्रधिकरण (गीडा) के अंतर्गत कई औद्योगिक इकाइयों की स्थापना हुई तो इन इकाइयों ने बिना शोधित कचरे को आमी में डालना शुरू कर दिया। इसी तरह संतकबीरनगर जिले में भी पेपर मिलों की स्थापना के बाद इस क्षेत्र में भी आमी प्रदूषित होने लगी। प्रदूषण का सबसे पहला असर जलीय जीवों खासकर मछलियों की मौत के रूप में सामने आया। नदी में मछली पालन करके जीवन यापन करने वाले करीब ढाई लाख परिवार इससे सीधे प्रभावित हुए। आज हालत यह है कि आमी नदी में अब एक भी मछली नहीं है।

आमी बचाओ आंदोलन के मुखिया विश्वविजय सिंह बताते हैं, पहले कागज फैक्ट्री ने नदी को मैला किया फिर ग्लाईकोल फैक्ट्री ने निकले केमिकल इसे जहरीला कर दिया बचीखुची कसर गोरखपुर की औद्योगिक इकाइयों ने पूरी कर दी। अब नदी सिर्फ लोगों को बीमार कर रही है। अगर जल्द उपाय नहीं हुए तो नदी अभिषाप बन जाएगी, जिसका खामियाजा बड़े पैमाने पर उठाना होगा।”

 वो आगे बताते हैं, “संतकबीर नगर जिले में कबीरदास की मजार इसी नदी के किनारे मगहर गाँव में है। कबीरपंथी नदी के पानी को गंगा के बराबर पवित्र मानते थे, लेकिन अब मगहर नाक पर रुमाल रखकर जाना पड़ता है। सरकारों के कथनी और करनी में अंतर रहा है अब नदी संरक्षण योजना में आने से थोड़ी उम्मीद जरूर जगी है।”

सिद्धार्थनगर जिला मुख्यालय से दक्षिण की ओर करीब 40 किमी0 की दूरी पर नदी के किनारे स्थित गांव निपनिया के मुन्नीलाल (50 वर्ष) बताते हैं,’’इन नदी का पानी जानवरों के पीने के काम आता था। लेकिन मिल का गंदा पानी आने के बाद कई जानवरों की मौत चुकी है।’’ इस क्षेत्र में आमी के प्रदूषित होने की शुरुआत करीब एक दशक पहले नदी के किनारे के गांव अठदमा में चीनी मिल के स्थापना के साथ हुई। सिद्धार्थनगर-बस्ती की सीमा पर स्थित रूधौली कस्बे से चीनी मिल की दूरी लगभग पांच किमी़ है। यहां रुधौली गाँव से सटकर बहने वाली आमी नदी बस्ती-सिद्धार्थनगर को विभाजित करती है। नदी के किनारे रूधौली गांव का अन्त्येष्टी स्थल बना हुआ है। यहां नदी पांच फिट चौडाई वाले नाले के रूप में बह रही है। नदी के जमीन पर ही पक्की समाधियां भी बन गयी है। गांव के पिन्टू पाण्डेय बताते हैं, “दो-तीन वर्ष पहले नदी की खुदाई कराई गयी थी लेकिन अब फिर से मिट्टी पट जाने से नदी समतल नजर आती है।’’

आमी को बचाने के लिए गोरखपुर व संतकबीरनगर में बडे जन आंदोलन हुए। लेकिन गूंगी बहरी व्यवस्था के चलते नदी का पुनरोद्धार नहीं हो सका। तमाम संस्थानों व विशेषज्ञों ने परीक्षण के आधार पर आमी के प्रदूषण को सरकार के सामने रखा। सन‍् 2009 में आमी बचाओ मंच की स्थापना के बाद संगठित रूप से आमी के प्रदूषण के खिलाफ आवाज उठाई गयी। वर्ष 2011 में तत्कालीन केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री जयन्ती नटराजन ने प्रदेश सरकार को पत्र लिखकर नदी में प्रदूषण फैलाने में जिम्मेदार इकाइयों के विरूद्व कार्रवाई करने व नदी संरक्षण के लिए परियोजना बनाकर प्रस्तावित करने के लिए कहा। वर्ष 2012 में राष्ट्रीय मानवधिकार आयोग ने केन्द्र सरकार, प्रदेश सरकार व केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नोटिस देकर प्रदूषण नियंत्रण के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया। लेकिन नतीजा शून्य रहा।

नदी का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व

कहते हैं कि जब गौतम बुद्ध ने संन्यास का निर्णय लिया तो अपने शाही वस्त्र इसी नदी के किनारे उतार कर संन्यासी वस्त्र धारण किया। इसी तरह कबीर दास ने भी अपनी मौत के लिए मगहर के किनारे आमी के तट को ही चुना। अपने जीवन के अन्तिम समय में कबीर दास इसी नदी के किनारे अपने अनुयायियों को जीवन दर्शन का ज्ञान कराते थे। भारत का जिन दो ऐतिहासिक गांवों को पांच हजार साल होने का प्रमाण मिला है उनमें से एक सोगौरा गाँव गोरखपुर में इसी नदी के किनारे है।

आमी नदी के किनारे बसे लाखों लोगों को जगी उम्मीद

सिद्धार्थनगर, बस्ती, संतकबीर नगर और गोरखपुर जिले के लाखों लोगों के लिए राहत की ख़बर है। केंद्र सरकार ने आमी नदी को राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना में शामिल कर लिया है।

राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की टीम कई साल पहले ही नदी के दोनों ओर करीब दो किलोमीटर के दायरे के नलों को घातक बता चुकी है। पिछले कई दशकों से नदी के पुनरुद्धार के लिए मांग कर रहे लोगों को केंद्र के इस कदम से उम्मीद जगी है।

आमी बचाओ आंदोलन के मुखिया विश्वविजय सिंह ने फोन पर बताया, केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्री प्रकाश जावडेकर का खत मिला है, “सरकार का सिर्फ एक कदम है, अब जल्दी से जल्दी धरातल पर काम करना होगा। क्योंकि आमी नदी से चार लाख लोग प्रभावित हुए हैं। मछुवाए, किसान और यहां तक की जानवर भी। आदमी तो दूर गर्भवती गाय-भैंसे अगर नदी का पानी पी लेती हैं तो गर्भपात हो जाता है। ”

वो आगे बताते हैं, प्रदूषण फैलाने वाली फैक्ट्रियों पर रोक तुरंत रोक लगानी होगी। और शहर का सीवर बिना ट्रीटमेंट के आने से रोकना ही होगा। गोरखपुर विकास प्राधिकरण में सीवरेज प्लांट बनाने के आदेश हुए हैं, अगर उसपर काम शुरु होता है तो काफी राहत मिलेगी।”

सिद्धार्थनगर जिला मुख्यालय से दक्षिण की ओर करीब 40 किमी. दूरी पर नदी के किनारे स्थित गांव निपनिया के मुन्नीलाल (50 वर्ष) बताते हैं, अब तो नदी के चलते ही लोग घर-बार छोड़ रहे हैं। अगर नदी साफ हो गई तो पूरे इलाके की जिंदगी बदल जाएगी।”

रिपोर्टर - दीनानाथ/अमित श्रीवास्तव8 i 

 

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