नेपाल में गांव कनेक्शन- 'दिल पर पत्थर रखकर चाहता हूं, मोदी फिर पीएम बनें'

भारत के आम चुनाव पर क्या कहते हैं नेपाल के लोग? क्यों लोगों ने कहा बननी चाहिए बहुमत की सरकार और पीएम नरेंद्र मोदी को लेकर लोगों की क्यों बदली सोच ?

Arvind ShukklaArvind Shukkla   30 April 2019 9:17 AM GMT

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नेपाल में गांव कनेक्शन- दिल पर पत्थर रखकर चाहता हूं, मोदी फिर पीएम बनें

अरविंद शुक्ला/दया सागर

धनगढ़ी (नेपाल)। "व्यक्तिगत रुप में हमारे भारत से बहुत अच्छे संबंध हैं। मोदी (नरेंद्र मोदी) के प्रति हमारा झुकाव था, नाकेबंदी के बाद खत्म हुआ। इस बार भी दिल पर पत्थर रखकर ही सही लेकिन हम चाहते हैं, मोदी ही जीते।" धनगढ़ी अरुण पनेरू कहते हैं। अरुण भारत के लोकसभा चुनाव और नेपाल के संबंधों को लेकर धनगढ़ी में गांव कनेक्शन से चर्चा कर रहे थे। भारत के लोकसभा चुनाव को लेकर नेपाल में भी सरगर्मियां हैं।

"भारत हमारा पड़ोसी देश है। हमारा रोटी-बेटी का रिश्ता है तो वहां के चुनावों पर भी नजर है। भारत में जो भी सरकार बने, वो मजबूत हो और भारत-नेपाल के संबंधों को मजबूत करने पर जोर दे।" धनगढ़ी के दीर्घराज उपाध्याय करते हैं। दीर्घराज, स्थानीय पत्रकार संघ के अध्यक्ष हैं।

वीडियो यहां देखिए---

भारत में हो रहे आम चुनावों को लेकर नेपाल ( Nepal ) के स्थानीय लोग क्या सोचते हैं, गांव कनेक्शन ने उत्तर प्रदेश में लखीमपुर जिले से सटे नेपाल के धनगढ़ी में लोगों से बात की। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर समेत सात जिले नेपाल सीमा से सटे हैं इस दौरान दोनों देश करीब ५५० किलोमीटर का बॉर्डर साझा करते हैं। जबकि देश स्तर पर बात करें तो यूपी, उत्तराखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और सिक्किम से लेकर असम तक में लाखों की संख्या में नेपाली और नेपाली मूल के लोग रहते हैं। भारत और नेपाल के संबंध पौराणिक और एतिहासिक हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इन संबंधों में उतार चढ़ाव आया है।

नेपाल में नया संविधान लागू होने के बाद भारत से सटे दक्षिणी और तराई वाले इलाकों में रहने वाले मधेशी लोग नए संविधान की कुछ शर्तों का विरोध कर रहे थे। हिंसक आंदोलन भी हुए थे। साल 2015 में भारत ने मधेशी आंदोलन के चलते ट्रकों की आवाजाही रोक दी थी। नेपाल ने इसे आर्थिक नाकेबंदी कहा था लेकिन भारत ने इस खारिज किया था। नेपाल के लोगों के मुताबिक इस नाकेबंदी के बाद से भारत-नेपाल के संबंधों में खटास पैदा की। इसके पीछे चीन भी बड़ा फैक्टर है।

चीन और नेपाल की नजदीकी के सवाल पर दीर्घराज पलट कर सवाल करते हैं?, "भारत के लोगों को ऐसी आशंका है कि नेपाल, चीन के करीब जा रहा है लेकिन ऐसा है नहीं। नेपाल के करीब 40 लाख लोग भारत में रहते हैं। 5 से 10 लाख भारतीय भी नेपाल में हैं। जबकि चीन में नेपालियों की संख्या सिर्फ 6 हजार है। ऐसे में हमारा करीबी भारत हुआ या चीन?"


अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वो कहते हैं, नेपाल एक संप्रभु देश है। भारत के संविधान में न तो भारत को दखल देना चाहिए ना चीन को। नेपाल मोदी सरकार से पहले राजीव गांधी सरकार में भी नाकेबंदी झेल चुका है। हम नहीं चाहते ऐसी नौबत फिर आए। भारत जो नई सरकार बने वो नेपाल से सदियों पुराने संबंधों को मजबूती दे।"

उत्तर प्रदेश में लखीमपुर, सिद्धार्थनगर, बहराइच, महराजगंज, श्रावस्ती, पीलीभीत, बलरामपुर के लाखों लोगों की नेपाल में रिश्तेदारियां हैं। हजारों लोग कामकाज के लिए रोजाना आवागमन करते हैं। कई ऐसे लोग भी हैं, जिनके घर सीमा के दोनों देशों में हैं।

मधेशी संघ के जिला उपाध्यक्ष रवि शुक्ला बताते हैं, "नाकेबंदी के 10 दिन नेपाल के लोगों पर बहुत भारी गुजरे थे। मेरे भारत में हमारे कई रिश्तेदार रहते हैं। मेरा व्यापार भी वहां चलता है। हम नहीं चाहते है। दोबारा कभी ऐसी स्थिति बने। रही बात राजनीति की तो सब स्वार्थी हैं।"

नेपाल के गौरीफंटा बार्डर से रोजाना 10 निजी बसें दिल्ली आती-जाती हैं। उत्तर प्रदेश परिवहन और नेपाल की भी कुछ बसें आती जाती हैं। गौरीफंटा बार्डर के बाहर मथुरा डिपो की बस से इंदौर जाने के लिए निकले खड़ग सिंह अब इंदौर में रहते हैं, वो वहीं वोट डालते हैं। नाम न छापने की शर्त पर एक स्थानीय पत्रकार ने बताया कि भारत के कई नेता चुनाव में नेपाल के चक्कर लगाते हैं, ताकि उनके जो रिश्तेदार भारत में रहते वो उनकी पार्टी को वोट दें।

नेपाल का ये इलाका कुछ-कुछ भारत जैसा ही है। दोनों देशों के बीच न पासपोर्ट है न वीजा। गौरीफंटा जैसे बार्डर पर एसएसबी के जवान चेकिंग जरुर करते हैं। लेकिन आम लोगों को कोई परेशान नहीं होती। गौरीफंटा बार्डर 8.10 मिनट पर बंद कर दिया जाता है। लखीमपुर जिले में सीमा से सटे 10-15 किलोमीटर के दायरे में (दुधवा तक) भारत के बीएसएनएल के अलावा दूसरे मोबाइल नेटवर्क काम नहीं करते। दुधवा रेंज में रहने वाल थारू समुदाय के लोग भी नेपाली नेटवर्क का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन वो उनके लिए काफी महंगा पड़ता है।

नेपाल और भारत के बीच पिछले कुछ वर्षों में संबंध तो तेजी से बदलते ही हैं, इंफ्रास्ट्रैक्चर में भी काफी बदलाव आया है। नेपाल में बार्डर पार करने के तुरंत बाद 4 लोन हाईवे पर तेजी से काम चल रहा है। जबकि भारत की तरफ एकल मार्ग है। भारत की तरफ चंदनचौकी इलाके में जरुर सड़क के चौड़ी करण का काम चल रहा है। लेकिन गौरीफंटा से पलिया कस्बे तक करीब 30 किलोमीटर का रास्ता एकल मार्ग पर ही तय करना होता है। जिस पर नेपाली और भारतीय दोनों सफर करते हैं।

गौरीफेण्टा बॉर्डर, लखीमपुर से रोज हजारों लोग सीमा पार करते हैं।

धनगढ़ी के अरुण पनेरी कहते हैं, भारत अगर तरक्की करेगा तो नेपाल को भी फायदा होगा। वैसे ही हम लोगों के पौराणिक संबंध है। नेपाल के लोगों तो जन्म रहते हरिद्वार, वाराणसी जाते ही है। मरने के बाद उनकी अस्थियों को भी गया तक ले जाने की रीति रही है। हम चाहते हैं भारत हमारा पहले वाला ही पड़ोसी बना रहे।"

पेशे से प्रोफेसर क्षेत्रराज की ससुराल गुजरात के सूरत में है। क्षेत्रराज कहते हैं, "भारत में किसकी सरकार बनती है, इसमें मुझे रुचि नहीं है। लेकिन जो भी सरकार बने वो बहुमत की हो। क्योंकि दक्षिणी एशिया में जब भी गठबंधन की सरकारें बनती हैं, भ्रष्टचार बढ़ जाता है।"धनगढ़ी निवासी और सेव द चिल्ड्रेन से जुड़े दिल बहादुर अय्यर भी क्षेत्रराज की तरह मजबूत और एक दल की सरकार की वकालत करते हैं।

मधेशी कौन लोग हैं ?

विकीपीडिया के अनुसार नेपाल के दक्षिण भाग के मैदानी इलाके को मधेश या तराई कहा जाता है। यहां रहने वाले लोगों को मधेशी कहा जाता है। तराई में रहने के कारण इन्हें तराईबासी भी कहते हैं। ये लोग मूलत मैथिली, थारू, अवधी और भोजपुरी भाषाएं बोलते हैं। इनका रहन सहन और संस्कृति यूपी और बिहार के लोगों से काफी मिलती है।

(कम्युनिटी जर्नलिस्ट मोहित शुक्ला के इनपुट के साथ)


     

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