बारिश आने में तीन महीने बाकी हैं, तब तक क्या होगा?

Arvind shukklaArvind shukkla   15 April 2019 5:44 AM GMT

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बारिश आने में तीन महीने बाकी हैं, तब तक क्या होगा?

लखनऊ। आधा भारत पानी के संकट से जूझ रहा है। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और बिहार के कुछ हिस्से भीषण सूखे की चपेट में हैं। इन राज्यों के सैकड़ों जिलों में लोग बूंद-बूंद पानी को तरस रहे हैं। सरकारी आंकड़ों, शोष संस्थानों की रिपोर्ट पढ़ने से पहले देश के 4 राज्यों के 4 गांवों की स्थिति समझ लीजिए।

1. मध्य प्रदेश के उज्जैन के रानी पिपलिया गांव की दुला बाई पिछले दिनों अपने गांव से दूर कुएं से पानी लेने गई थीं। गहरे कुएं में गिरने से उन्हें चोट लग गई। यहां लोग 40-50 फीट गहरे कुओं में उतर पर पानी लाने को मजबूर हैं। मध्य प्रदेश के देवास, पन्ना और समना समेत कई जिलों में सूखे की स्थिति है। वीडियो यहां देखिए

2. उज्जैन से 475 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के पारंडु गांव के जाकिर शेख मौसमी की बाग में इन दिनों जो पानी लगा रहे हैं, वो 6 रुपए लीटर पड़ रहा है। शेख के मुताबिक वो गांव से 35 किलोमीटर दूर एक डैम से पानी लाते हैं। जहां 20 हजार लीटर पानी लाने में 3000 रुपए का खर्च आता है। जबकि अभी Monsoon ( बारिश ) आने में 3 महीने बाकी हैं।

3. औरंगाबाद से 1600 किलोमीटर दूर आदिवासी बाहुल्य झारखंड के कोडरमा के कई इलाकों में जनवरी-फरवरी महीने में ही कुएं सूखने लगे थे। मरकच्चो प्रखंड के डगरनवा पंचायत के अरैया गांव में के गदौरी कुमार बताते हैं, "हमारे गाँव में 90 हाड़िया (परिवार) हैं, दो चापाकल (हैंडपंप) हैं, जो सूख पड़े हैं, एक कुआं है, जो फरवरी आते-आते सूख जाता है, तब हम गाँव वालों को दो किमी. दूर से पानी लाना पड़ता है। मानसून आने तक यही हमारी जिंदगी का हिस्सा है।" यहां गांवों से दूर खेत के गड्ढों और तालाबों का पानी पीने को मजबूर हैं। पूरी ख़बर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

4. उत्तर प्रदेश का सोनभद्र जिले के दुद्धी तहसील में नगवा की रहने वाली रीता अपने गांव से काफी मैदान में हाथ से गड्ढा खोदकर पानी लेकर आती हैं। यहां पर महिलाओं और बच्चों के जिम्मे पूरे दिन का काम है कि वो पानी लाकर परिवार की जरूरत पूरा करें। पूरी ख़बर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें..

कृषि प्रधान देश में खेती का बड़ा हिस्सा मानसून पर निर्भर है। यानि पानी होगा तो खेती होगी। मॉनसून अच्छा होगा तो खेती अच्छी होगी, जो उत्पादन पर असर डालेगी। यानि किसानों का ये साल कैसा होगा, अर्थ व्यवस्था, महंगाई से लेकर जीडीपी तक सब मानसून पर प्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष रूप से निर्भर करते हैं।

सूखे और मानसून का सीधा असर लोगों की खरीद क्षमता पर पड़ता है। सूखे की स्थिति विकराल होने पर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर प्रभावित होता है। ट्रैक्टर समेत दूसरे इंड्स्ट्री पर इसका असर नजर आता है।

अकेले झारखंड में 85 फीसदी जमीन ऐसी है जहां बारिश होने पर ही एक फसल होती है। देश के किसानों के साथ नीति निर्माताओं को अब मानसून का इंतजार है। भारत मौसम विभाग ने सोमवार १५ अप्रैल को जारी पूर्वानुमान में कहा कि "इस साल "सामान्य के करीब" मानसून की बारिश होगी -- 96% ऑफ़ लॉन्ग पीरियड एवरेज (LPA)। एलनीनो #ElNino का ज़्यादा प्रभाव मानसून पर नहीं दिखेगा।" विभाग ने इस साल 'सामान्य मानसून' वर्ग हटा कर 'सामान्य के करीब' मानसून का नया वर्ग घोषित किया। इससे पहले मौसम की जानकारी देने वाली निजी संस्था स्काईमेट ने अलनीनो की आशंका जाहिर की थी। जिसमें बारिश कम होने की आशंका है। हालांकि स्काईमेट ने फरवरी महीने में सामान्य मानसून की संभावना जताई थी।

मानसून कैसा भी होगा उसके आने में अभी वक्त है, और लोग बूंद-बूंद पानी को तरस रहे।

हाई रेजुलेशन साउथ एशिया ड्रॉट मॉनिटर की रिपोर्ट

हाई रेजुलेशन साउथ एशिया ड्रॉट मॉनिटर ने 6 अप्रैल 2019 को जारी 'ड्रॉट अर्ली वॉर्निंग सिस्टम (डीईडब्ल्यूएस) इंडिया' नाम से जारी अपनी रिपोर्ट में बताया कि भारत का 16.59 फीसदी हिस्सा इस वक्त लगभग भीषण सूखे से जूझ रहा है। जबकि 41 फीसदी हिस्से में सूखे जैसे हालात हैं। इसी रिपोर्ट में बताया गया है कि 6 अप्रैल 2018 को देश का मात्र 10.81 फीसदी हिस्सा भीषण सूखे की चपेट में था।

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इससे पहले आईआईटी गांधीनगर की वाटर एंड क्लाइमेट लैब ने इस साल भारत में सूखे की स्थिति के आंकड़े जारी कर दिए हैं। उसके मुताबिक इस समय देश का 47 फीसदी हिस्सा यानी करीब आधा देश सूखे की चपेट में है। ये हालात जब है जबकि बारिश आने में अभी तीन महीने का वक्त है। देश में 2015 के बाद देश में सूखे की चपेट में है। 2017 में जरूर कुछ इलाकों में अच्छी बारिश हुई थी।

आईआईटी गांधीनगर के प्रो. विमल मिश्रा गांव कनेक्शन को बताते हैं "महाराष्ट्र के साथ ही आंध्र प्रदेश उत्तरी तमिलनाडु, झाराखंड और बिहार के कुछ जिलों में समस्या ज्यादा गंभीर है। जिन इलाकों में भू-जल की स्थिति ठीक है। वहां ज्यादा समस्या नहीं होगी, बाकि इलाकों में स्थिति बदतर हो सकती है। दूसरी बात इस वक्त ये निर्भर करेगा कि स्टोरेज पानी (जलाशय आदि) का हम उपयोग कैसे करते है। पानी बिना नहीं रहा जा सकता तो बाकि की उपगयोगिता में 10-15 फीसदी की कटौती की जा सकती है।"

चुनाव में पानी के मुद्दा बनाने न चर्चा न होने पर प्रो. विमल कहते हैं, "पानी का मुद्दा चुनाव से खत्म नहीं होगा। इसके लिए जनचेतना और दीर्घकालीन योजनाएं चाहिए। सरकारें आती जाती रहेंगी, पानी तय है कि कितना है। उसका अच्छे से इस्तेमाल करना है। किसानों को ऐसी फसलें, ऐसे तरीके बताने होंगे कि वो कम पानी में बेतहर उपज ले पाएं।"

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देश के खाद्य विशेषज्ञ और कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा कहते हैं "सूखे इलाकों पर नजर दौडाएं तो इन इलाकों में भारत की करीब 50 करोड़ जनता रहती है। लेकिन अफसोस चुनाव में इसे मुद्दा नहीं बनाया गया। सूखग्रस्त किसान कैसे खेती करेगा, कर्ज के दलदल में फंसेगा और फंसता जाएगा।'

पानी संकट से सबसे ज्यादा परेशानी महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश में है। महाराष्ट्र में शेतकारी संगठन (किसान संगठन) के संस्थापक सदस्य विजय जावंधिया बताते हैं, "महाराष्ट्र में खेती तो दूर पीने का पानी का संकट हो गया है। हमारे यहां 90 फीसदी एरिया वन क्रॉप (एक फसली क्षेत्र) है। जब पिछले वर्ष बारिश नहीं हुई थी तो मार्च-अप्रैल में कुएं सूखे हैं। अगर ‍इस वर्ष अच्छी बारिश नहीं हुई तो आगे जाने क्या होगा।"

तस्वीर छत्तीसगढ़ के जिला बलराम के गांव चरचारी की है। जानवर और इंसान के लिए पीने के पानी का स्त्रोत एक ही है। (फोटो साभार- ANI)

पिछले कुछ वर्षों में भारत में बारिश का रुख बदला-बदला है। पिछले साल अरुणांचल प्रदेश, झारखंड, दक्षिणी आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु के उत्तरी इलाकों में बहुत कम पानी गिरा था। यही इलाके अब भीषण सूखे की चपेट में हैं। वाटर एंड क्लाइमेट लैब ने मौसम विभाग के आंकड़े, मिट्टी की नमी, और भूजल की स्थिति का गुणाभाग लगातार सूखे का आंकलन किया है।

पिछले दिनों कई अंतरराष्ट्रीय रपटें भारत में आने वाले भूजल संकट को लेकर चेता भी चुकी हैं। उन रपटों के मुताबिक आने वाले वर्षों में भारत में कई इलाके ऐसे पाए जाएंगे जहाँ भूजल समाप्त हो चुका होगा। देश के चुनावी माहौल में पानी भी किसान के दूसरे मुद्दों की तरह चर्चा से बाहर है। देश में सूखा भी घोषित नहीं हुआ है। सूखा घोषित होने पर सरकारों को कई तरह की सहूलियतें देनी होती है।

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