ग्राउंड रिपोर्ट: जिस गांव से भीम आर्मी ने लड़ाई शुरू की, वहां के लोग चंद्रशेखर के बारे में क्या सोचते हैं?
समय-समय पर मायावती भी चंद्रशेखर को बीजेपी का एजेंट बताती रही हैं। हाल ही में 31 मार्च को किए गए एक ट्वीट में उन्होंने लिखा था, ''दलितों का वोट बांटकर बीजेपी को फायदा पहुंचाने के लि ही बीजेपी भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर को वाराणसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़वा रही है।
Ranvijay Singh 3 April 2019 7:15 AM GMT

सहारनपुर (उत्तर प्रदेश)। 'भीम आर्मी' और उसके संस्थापक चंद्रशेखर आजाद 'रावण', दो ऐसे नाम हैं, जो बीते दो साल में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तेजी से उभर कर आए हैं। और अब जब पूरे देश में लोकसभा चुनाव 2019 (Loksabha Election 2019) की सरगर्मियां तेज हैं, तो चंद्रशेखर के एक बयान कि वे 'प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे' के कारण एक बार फिर चर्चा में हैं। ऐसे में सबसे पहले यह जानना अहम है कि उन्होंने जिस सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में दलितों के लिए लड़ाई लड़ी और एक साल से ज्यादा का समय जेल में काटा, वहां के लोगों की उनके बारे में अब क्या राय है।
गांव कनेक्शन की टीम जब लोकसभा चुनाव की कवरेज के लिए शब्बीरपुर गांव पहुंची. तो वहां उम्मीद से उलट तस्वीर नजर आई। जिस गांव से भीम आर्मी का नाम देशभर में फैला वहां के दलित समाज के लोग ही चंद्रशेखर को नकार देते हैं। गांव के ही रहने वाले प्रेम चंद (65 साल) कहते है, ''वो (चंद्रशेखर) बाबा साहब के मिशन को कमजोर कर रहा है। वो बीजेपी का एजेंट है और वैसा ही काम कर रहा है।''
मई 2017 में सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में दलितों के घर जलाए जाने के बाद भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर ने इस मामले को लेकर खूब हंगामा किया था। इसका असर यह हुआ कि हिंसा भड़की और अंत में चंद्रशेखर को अपनी जिंदगी के करीब एक साल कुछ महीने जेल में गुजारने पड़े थे।
शब्बीरपुर के प्रधान शिव कुमार (55 साल) भी ऐसी ही बात करते हैं। शिव कुमार उन लोगों में से हैं जिन्हें इस हिंसा के बाद जेल भेजा गया था। वो बताते हैं, ''चंद्रशेखर मेरे साथ ही जेल में था। जेल में जब तक था, ठीक था, लेकिन बाहर आते ही बदल गया। अब तो वोमोदी का आदमी है।'' वो कहते हैं, ''आप संघर्ष तो करो कुछ, बिना संघर्ष के ही सब चाह रहे हो। अगर बहन जी का साथ देता और उनकी सरकार आती तो जो चाहे पद मिलता, लेकिन नहीं वो तो अलग ही विचार रख रहा है। मायावती हमारी नेता हैं, वही हाईकमान हैं, जैसा कहेंगी वैसा होगा।''
शब्बीरपुर गांव में 700 परिवार हैं। इनमें से 300 दलित परिवार हैं, बाकी के 400 परिवारों में ठाकुर, ब्राह्मण, कश्यप जाति के लोग हैं। शिव कुमार कहते हैं, ''हमारे गांव में 700 वोट हैं दलित के और हम बीजेपी की चाल में नहीं आने वाले हैं।'' गांव के ही रहने वाले अमनेश (62 साल) कहते हैं, ''चंद्रशेखर समाज के लिए अच्छा कर रहा है, लेकिन उसे बाबा साहब के मिशन को समझना चाहिए। हम बंट गए तो बर्बाद हो जाएंगे। यह बात वो समझे तो समाज का भला होगा।''
जिस भीम आर्मी का चीफ चंद्रशेखर आज गिरफ्तार हुआ है वो दलितों की आवाज़ है या कुछ और ?
समय-समय पर मायावती भी चंद्रशेखर को बीजेपी का एजेंट बताती रही हैं। हाल ही में 31 मार्च को किए गए एक ट्वीट में उन्होंने लिखा था, ''दलितों का वोट बांटकर बीजेपी को फायदा पहुंचाने के लि ही बीजेपी भीम आर्मी के चंद्रशेखर को वाराणसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़वा रही है। यह संगठन बीजेपी ने ही षडयंत्र के तहत बनवाया है और इसकी आड़ में भी अपनी दलित-विरोधी मानसिकता वाली घिनौनी राजनीति कर रही है।''
चंद्रशेखर को लेकर शब्बीरपुर गांव के लोगों के ऐसे विचार पर उनके छोटे भाई कमल किशोर (28 साल) कहते हैं, ''मेरा भाई दलितों की लड़ाई को कमजोर करना नहीं चाहता। उसने पहले ही कह रखा था कि मोदी जहां से चुनाव लड़ेंगे वहां से चुनाव लडूंगा। वो बस अपनी बात पर कायम है। वो मोदी के सामने मजबूती से खड़ा होकर दिखाना चाहता था, जिससे समाज में एक संदेश जा सके।'' कमल किशोर कहते हैं, ''हम खुद मायावती को वोट देते आए हैं, अगर उन्होंने समाज के लिए काम किया होता तो आज हालात और होते। हम मायावती का विरोध नहीं कर रहे, वो हमारी बहन जैसी हैं। हम चाहते हैं कि अगर उन्हें बुरा लग रहा है कि चंद्रशेखर मोदी जी के सामने चुनाव क्यों लड़ रहा है तो वो खुद मोदी जी के सामने चुनाव लड़ लें।''
गांव से लाइव देखिए
यह भी पढ़ें- सरहानपुर में अपना विरोध दर्ज करने के लिए दलित अपना रहे बौद्ध धर्म
ऐसा भी नहीं कि शब्बीरपुर में हर कोई चंद्रशेखर के खिलाफ ही था, कुछ लड़के जो कि 14-15 साल के होंगे उनके लिए चंद्रशेखर किसी हीरो से कम नहीं। इन्हीं में से एक गोलू कहता है, ''चंद्रशेखर हमारे लिए बहुत कुछ कर रहे हैं। जो शख्स हमारे लिए जान देने के लिए तैयार है, हम उसके लिए भी जान दे सकते हैं।'' गोलू बताता है, ''भीम आर्मी हमारे लिए लड़ रही है, अगर कहीं लड़ाई होती है तो वहां आर्मी आ जाती है।''
क्या हुआ था शब्बीरपुर में?
सहारनपुर से 25 किलोमीटर दूर शिमलाना गांव में पांच मई 2017 को महाराणा प्रताप जयंती का आयोजन किया गया था। इसमें शामिल होने के लिए पास के ही गांव शब्बीरपुर से एक जुलूस निकाला गया। जुलूस में तेज आवाज में डीजे बज रहा था, इसे लेकर दलितों ने आपत्ति जताई और पुलिस को बुला लिया। इसके बाद विवाद इस कदर बढ़ा कि दोनों ओर से पथराव होने लगा। इसी दौरान ठाकुर जाति के एक युवक की मौत हो गई। इसके बाद शिमलाना गांव में जुटे हजारों लोग शब्बीरपुर गांव पहुंचे और दलितों पर हमला कर दिया।
इस हमले में 25 घर जला दिए गए थे। इस घटना के बाद भीम आर्मी ने 9 मई को सहारनपुर के गांधी पार्क में विरोध प्रदर्शन का अयोजन किया। हालांकि इस प्रदर्शन को प्रशासन की ओर से अनुमति नहीं मिली थी, ऐसे में भीम आर्मी से जुड़े लोग आक्रोशित हो गए और एक पुलिस चौकी को आग के हवाले कर दिया, वहीं एक बस भी जला दी। इसके बाद ही चंद्रशेखर 'रावण' की छवि बनी जो अब तक कायम है।
More Stories