देश में दूध उत्पादन 17 करोड़ लीटर, सलाना खपत 64 करोड़ टन, बाकी कहां से आता है ?
देश में दूध मिलावट अगर रूक जाए तो देश के सात करोड़ डेयरी किसानों को लाभ होगा लेकिन यह चुनावी मुद्दा नहीं है। गांव कनेक्शन अपनी सीरीज इलेक्शन कनेक्शन के जरिए आपसे जुड़े इन्हीं मुद्दों को प्रमुखता से उठाएगा।
Diti Bajpai 13 April 2019 7:19 AM GMT

लखनऊ। कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट कहती है कि भारत इस समय हर साल 17 करोड़ टन दूध का उत्पादन कर रहा है। ये आंकड़ें देखकर अच्छा तो लगता है लेकिन स्थिति तब भयावह हो जाती है जब पता चलता है कि देश में दूध की खपत तो 64 करोड़ टन सालाना हो रही है, यानि उत्पादन से लगभग 4 गुना ज्यादा। ऐसे में सवाल यह उठता है कि मांग की पूर्ति हो कैसे रही है। मतलब उत्पादन और खपत के बीच खेल हो रहा है। इस खेल में आपकी सेहत तो बिगड़ ही रही है, किसानों के फायदे पर भी बट्टा लग रहा है।
मोदी सरकार के प्रयासों से वर्ष 2017-18 में देश का दुग्ध उत्पादन 176.35 मिलियन टन तक पहुंचा, जो वर्ष 2013-14 में 137.7 मिलियन टन उत्पादन की तुलना में 28.06% अधिक है। #NationalMilkDay
— Chowkidar Radha Mohan Singh (@RadhamohanBJP) November 26, 2018
पिछले 15 वर्षों से भारत दूध उत्पादन के क्षेत्र में सबसे आगे है, सरकार इसे अपनी कामयाबी में गिनाती है। उत्तर प्रदेश, गुजरात और पंजाब, ये तीन प्रदेश दूध उत्पादन में सबसे आगे हैं। इस व्यवसाय से देश के सात करोड़ से ज्यादा लोग जुड़े हुए हैं। लेकिन इन्हें दूध की वो कीमत नहीं मिल पा रही जो मिलनी चाहिए, वजह मिलावटखोरी।
वर्ष 2018 में भारतीय पशु कल्याण बोर्ड के सदस्य मोहन सिंह अहलुवालिया देश में बिकने वाले करीब 68 प्रतिशत दूध और उससे बने उत्पादों को नकली बताया था और कहा कि यह उत्पाद भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के मानदंडों पर खरे नहीं उतरते हैं। अहलुवालिया ने दूध और उससे बनने वाले उत्पादों में मिलावट की पुष्टि करते हुए कहा था कि सबसे आम मिलावट डिटर्जेंट, कास्टिक सोडा, ग्लूकोज, सफेद पेंट और रिफाइन तेल के रूप में की जाती है।
"हमारे पंजाब में 40 प्रतिशत ही दूध शुद्ध है बाकी का 60 प्रतिशत नकली। लेकिन सरकार इसमें कुछ नहीं करती। अगर मिलावटखोरी पर रोक लगे तो जो दूध 35 रुपए में बिक रहा है उसकी कीमत 50 रुपए के ऊपर होगी, साथ ही लोगों को बिना किसी मिलावट के दूध मिलेगा।" पंजाब के फजिल्का जिले में रहने वाले गुरुप्रीत सिंह संधु ने गाँव कनेक्शन को बताया।
गुरुप्रीत डेयरी किसान के साथ-साथ प्रोग्रेसिव डेयरी फार्मर्स एसोसिएशन (पीडीएफए) में सदस्य हैं। यह संगठन डेयरी किसानों के हित के लिए काम करता है। सात दिन पहले हुई एक घटना का जिक्र करते हुए गुरुप्रीत ने फोन पर बताते हैं, "हम लोगों को मिलावटी दूध या उससे बने उत्पादों को बनाने की सूचना मिलती है तो वहां जाते हैं। अभी एक गुट पकड़ा था जो मिलावटी घी बना रहा था। स्वास्थ्य अधिकारियों को बुलाया, सैंपल लिए गए और बताया गया कि 48 घंटे के अंदर रिपोर्ट आएगी। अभी तक न रिपोर्ट आई और न ही कोई कार्रवाई हुई। वे अपना करोबार फिर से चला रहे हैं।"
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भारत में सबसे ज्यादा दूध उत्पादन करने वाला राज्य उत्तर प्रदेश है। इस प्रदेश के दुग्ध विकास मंत्री चौ. लक्ष्मीनारायण ने एक कार्यक्रम में दूध की मिलावट को स्वीकारते हुए कहा था, "उत्तर प्रदेश सिंथेटिक (कृत्रिम) दुग्ध उत्पादन में सबसे आगे है। जीवन से खिलवाड़ करने वाले लोगों को ऐसा करने से रोकने के लिए बहुत ही सख्त कानून बनाए जाने की आवश्यकता है।"
दूध की मिलावट को लेकर कानून तो बने लेकिन इनका पालन सिर्फ कागजों में ही होता है। "मिलावट करने वालों के लिए कानून बने है लेकिन अफसर इन पर कड़ी कार्रवाई नहीं करते है। आज भी कई ऐसी जगह है जहां पर बार-बार छापा पड़ता है लेकिन लोग छूट जाते हैं।" उत्तर प्रदेश के बनारस जिले में पिछले छह वर्षों से डेयरी चला रहे पवन सिंह ने बताया।
देश में डेयरी उद्योग करीब 6 लाख करोड़ रुपए का है और महज एक लाख करोड़ ही संगठित क्षेत्र में है, बाकी असंगठित है। एडेलवाइस सिक्युरिटीज की आई ताजा रिपोर्ट के अनुसार, डेयरी क्षेत्र का कारोबार सालाना 15 प्रतिशत की दर से बढ़ता हुआ 2020 तक 9,400 अरब रुपये तक पहुंच जाने की उम्मीद है।
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मगर इसकी जमीनी हकीकत यह भी है कि भले ही देश का डेयरी उद्योग तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन उसकी तुलना में किसानों की आमदनी बढ़ने की बजाए लगातार घट रही है।
वर्ष 2018 में फूड रेगुलेटर एफएसएसएआई ने खाने पीने की चीजों में मिलावट करने वालों को उम्रकैद की सजा और दस लाख रुपए तक का दंड देने का प्रावधान किए जाने की सिफारिश की थी। एफएसएसएआई ने कहा था कि, "कोई भी व्यक्ति जो खाद्य पदार्थ में किसी ऐसे पदार्थ की मिलावट करता है जो मानव उपभोग के लिए द्यातक है और इससे उस व्यक्ति के स्वास्थ्य को किसी तरह का नुकसान हो सकता है या मृत्यु हो सकती है, उस व्यक्ति को कम से कम सात साल की सजा दी जा सकती है और इस सजा को बढ़ाकर उम्रकैद तक किया जा सकता है। इसके अलावा उस व्यक्ति पर कम से कम दस लाख रुपए का जुर्माना लगाया सकता है।"
मिलावट खोरों को पकड़ने की प्रक्रिया के बारे में लखनऊ जिले के खाद्य सुरक्षा अधिकारी डॉ. टी.आर रावत ने बताया, "जहां से भी सूचना मिलती है हम लोग जाते हैं और सैंपल इकट्ठा करके 48 घंटे में पता करते है। दूध में दो प्रकार की मिलावट होती है एक वो जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और दूसरी जो हानिकारक नहीं है जो मिलावट स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है उसमें जेल की सजा होती है और जो हानिकारक नहीं है उसके लिए जुर्माना होता है।"
प्रोग्रेसिव डेयरी फार्मर्स एसोसिएशन (पीडीएफए) के प्रबंधन निदेशक दलजीत सिंह किसानों को दूध के दाम न मिलने की सबसे वजह मिलावटी दूध और उससे बनने वाले उत्पादों को मानते हैं। पिछले 13 वर्षों से डेयरी व्यवसाय को एक नई दिशा देने के प्रयास कर रही पीडीएफए के दलजीत बताते हैं, "कई वर्षों से हम मिलावटी दूध, घी बनाने वालों को पकड़ा चुके है लेकिन सबस्टैडड का हवाला देकर छूट जाते हैं और पांच दिन के बाद धड़ल्ले से अपनी दुकान चलाते हैं। छोटे से बड़े अधिकारी इसमें मिले होते हैं। पैसे देकर सैंपल पास हो जाते है। सरकार कुछ नहीं करती। अगर सरकारें मिलावट को रोके तो किसानों को सीधे लाभ होगा लोगों की सेहत भी नहीं खराब होगी।"
अपनी बात को जारी रखते हुए सिंह आगे बताते हैं, "देश में मिलावटी दूध और जो उत्पाद बन रहे है उसके लिए सरकार जिम्मेदार है। अगर उपभोक्ता को मिलावटी दूध से बचना है तो ऐसे किसानों को देखे जो वाकय दूध में मिलावट न कर रहे हो उन्हें बिचौलियों से बचना होगा।"
दूध की नदियां बहने वाले भारत देश में दूध उत्पादन कागजों में दिनों-दिन बढ़ है लेकिन अगर प्रति व्यक्ति दूध उप्लब्धता की बात की जाए तो एक आदमी को पव्वा भर भी दूध नहीं मिलता है और जितना मिलता है वो भी नकली।
पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन विभाग, कृषि मंत्रालय के जारी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में दूध की प्रति व्यक्ति उपलब्धता सिर्फ 480 ग्राम है। जो अन्य देशों की अपेक्षा बहुत कम है। वर्ष ने 2022 तक इसको 500 ग्राम करने का उद्देश्य रखा है। दुनिया के अन्य देशों न्यूजीलैंड में प्रति व्यक्ति दूध उपलब्धता 9,773 ग्राम, आयरलैंड में 3,260 ग्राम और डेनमार्क में 2,411 ग्राम है।
"मिलावट एक बहुत बड़ा मुद्दा है लेकिन किसी भी सरकार का इस पर ध्यान नहीं जाता है। देश में जितना दूध का उत्पादन हो रहा है उतने पशु ही नहीं बचे है। जो है उनकी दूध उत्पादन क्षमता काफी कम है। किसान जो अभी दूध की दामों को लेकर आंदोलन करते हैं वो अपने आप कम हो जाऐंगे। अगर सरकार मिलावटी दूध और उससे बने उत्पादों कड़ाई से रोक लगाए क्योंकि उन्हें लागत के मुताबिक दाम मिलने लगेगा।" हरियाणा राज्य के पंचकुला जिले के पशुचिकित्सा संद्य के अध्यक्ष डॉ चिरतन काडियन ने बताया।
देश में दूध की मिलावट का असर सीधे किसानों की आमदनी में पड़ रहा है। दूध के दाम न मिलने की वजह अधिकतर किसान इस व्यवसाय से मुंह मोड़ रहे है। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले के टिपरियाखीरी गाँव में रहने वाले अली हुसैन का कहते हैं, "एक दिन में पशुओं की जितनी लागत आती है उससे आधा भी दूध के दाम नहीं मिल रहे है चारा महंगा, भूसा मंहगा लेकिन रेट वहीं ऐसे में गाय-भैंस पालन बहुत कठिन हो गया है।"
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वहीं पंजाब के फजिल्का जिले के गुरुप्रीत सिंह ऐसे कई नाम गिना चुके थे जिन्होंने पशुपालन छोड़कर धान और गेहूं की खेती करना शुरू कर दिया है। गुरुप्रीत कहते हैं, "डेयरी को चलाने में बहुत खर्चा आता है। मैं ऐसे कई किसानों को जानता हूं जिन्होंने डेयरी बदं कर दी है या पशुओं की संख्या कम कर दी। मिलावटी दूध की वजह से बाजार में दूध की कीमत ही नहीं है। लोग इस व्यवसाय शुरू ही नहीं करेंगे।"
दूध और उससे बने उत्पाद की खराब गुणवत्ता से चिंतित एफएसएसएआई ने डेयरी कंपनियों के लिए नए नियम जारी किए है। इन नियमों के अनुसार डेयरी प्रदूषित इलाकों से दूर होगी, डेयरी में काम करने वाले लोगों की स्वास्थ्य की जांच, दूध इकट्ठा करते समय हाइजिन का ध्यान, कंपनियों को तय करना होगा कि गाय या भैंस के चारे में ज्यादा पेस्टीसाईड का इस्तेमाल नहीं किया गया हो जैसे कई कड़े नियम लागू किए है। यह नियम जमीनी स्तर पर कितना नज़र आऐंगे इसका कोई समय निर्धारण नहीं है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) भी दूध में मिलावट के खिलाफ भारत सरकार के लिए एडवायजरी जारी कर चुका है। इसमें संगठन ने साफ कहा हैं कि अगर देश में दूध और उससे बनने वाले उत्पादों पर रोक नहीं लगाई तो आने वाले वर्ष 2025 तक भारत की 87 फीसदी आबादी कैंसर जैसे जानलेवा रोगों की गिरफ्त में होगी। इसके साथ ही अगर मिलावटी दूध पर रोक नहीं लगी तो वो दिन दूर नहीं जब दूसरे देशों से दूध को मंगवाना पड़ेगा। लेकिन सरकारों के लिए यह चुनावी मुद्दा नहीं है।
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