राजस्थान चुनाव : विकास के बजाय जाति, गोत्र और हिन्दुत्व हावी

Manish MishraManish Mishra   6 Dec 2018 11:54 AM GMT

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राजस्थान चुनाव : विकास के बजाय जाति, गोत्र और हिन्दुत्व हावी

जयपुर (राजस्थान)। सात दिसंबर-2018 की तारीख राजस्थान की राजनीति में इतिहास बदलने वाली साबित हो सकती है। इस तारीख को राज्य में सिर्फ मतदान ही नहीं होने हैं, दो चीजों पर और मुहर लग सकती है।

पहली, अगर भाजपा को जनता चुनती है तो पिछले करीब चालीस साल से चली आ रही उस परिपाटी को राज्य की जनता बदलेगी, जिसमें एक पार्टी की सरकार के बाद अगले साल विपक्षी पार्टी की सरकार बनती है।

दूसरी, अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो पार्टी का मनोबल बढ़ने के साथ ही पार्टी में युवा नेता आगे आएंगे और राहुल गांधी की रणनीति को मजबूती मिलेगी।

गाँव कनेक्शन की चुनावी यात्रा के दौरान एक बात साफ तौर पर दिखी राजनेताओं की बहसों और चुनावी रैलियों में राज्य में विकास कार्यों को मुद्दा नहीं बनाया गया। या तो वो मुद्दे थे जो केन्द्रीय थे, या फिर हिन्दुत्व। न तो बीजेपी ने बसुंधरा सरकार के कार्यकाल में हुए कार्यों को प्रमुखता से उठाया न ही कांग्रेस ने ऐसे किसी मुद्दे पर घेरा। हालांकि राजस्थान की गर्म हवाओं के साथ जो मुद्दे गूंजते रहे वो थे जाति, गोत्र, हिन्दुत्व।

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जहां भारतीय जनता पार्टी पूरी जोरशोर से चुनाव लड़ी, कई केन्द्रीय मंत्रियों समेत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की रैलियां हुईं, वहीं कांग्रेस इस भरोसे रही कि राजस्थान की जनता हर पांच साल में सरकार बदल देती है, शायद भितरघात से बचने के लिए मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बताया गया। लेकिन टिकटों के बंटवारे के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खेमों में आपसी मनमुटाव शुरू जरूर हो गया।

राजस्थान की सियासी रणनीति को समझाते हुए दैनिक भास्कर राजस्थान के स्टेट एडिटर लक्ष्मी प्रसाद पंत कहते हैं, "राजस्थान में दो कांग्रेस हैं, एक सचिन पायलट की दूसरी अशोक गहलोत की। सीएम के चहेरे को चुनाव न लड़वाना भी एक कांग्रेस की कमजोरी। टिकटों के बंटवारे ने बहुत कुछ कांग्रेस के समीकरण बदल दिए। लड़ाई इतनी आसान नहीं। कांग्रेस के साथ बस एक प्लस प्वाइंट यह है कि यहां हर पांच साल में सरकार बदलती है। लेकिन राजस्थान में 2013 की अपेक्षा 2018 का चुनाव बिल्कुल अलग है।"


कुछ ऐसा ही उदयपुर यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर बालूदान बाणभट्ट भी कहते हैं, "वर्ष 1977 के बाद से ही अगर हम शेखावत सरकार को छोड़ें तो निरंतर रहा है कि एक बार भाजपा की सरकार रही, उसके बाद कांग्रेस की। कांग्रेस उसी आधार पर बैठी है कि जो ट्रेंड चला आ रहा है, उसी आधार पर हम सरकार बना लेंगे।"

वह आगे कहते हैं, "सवाल यह है कि विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस ने किया क्या? एक भी जनआंदोलन नहीं किया, सड़कों पर नहीं उतरी। कांग्रेस के पास आज की तारीख में कोई नेतृत्व नहीं, सीएम का चेहरा नहीं। जहां अशोक गहलोत का प्रभाव है वहां अशोक गहलोत को आगे कर रहे, जहां सचिन पायलट का प्रभाव वहां सचिन को। न नेता है न नीतियां। कांग्रेस ने सिर्फ भावनात्मक मुद्दे ही उठाए हैं, जाति या गोत्र की राजनीति की।"

भाजपा और कांग्रेस की संगठनात्मक कमजोरी या मजबूती से इतर देखें तो इस बार के चुनावों में राजस्थान में जाति और हिन्दुत्व हावी रहे। विधानसभा चुनाव इससे ऊपर नहीं उठ पाया।


"राज्य में चार बड़ी जातियां-राजपूत, जाट, मीणा और गुर्जर प्रभावी हैं। करीब 55 सीटें हैं जिनपे पिछड़ी जाति के लोगों प्रभाव है। राजस्थान में विकास की लहर नहीं जातियों की लहर चल रही है। एंटी इनकम्बेंसी से ज्यादा जाति हावी है। मतदाता भी वोटिंग से पहले लिस्ट देख रहा है कि उसकी जाति के लोगों को टिकट मिला कि नहीं," वरिष्ठ पत्रकार और राजस्थान की नब्ज समझने वाले लक्ष्मी प्रसाद पंत कहते हैं।

वह आगे हैं, "बीजेपी की जो कमजोरियां हैं उससे लगता है कि कांग्रेस सरकार बना लेगी, लेकिन पिछले पांच सालों में कांग्रेस ने एक भी जनआंदोलन नहीं किया, न ही सड़कों पर उतरी।"

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राजस्थान में कुल 4.74 करोड़ कुल मतदाता है, इनमें से करीब 1.04 करोड़ एससी और एसटी हैं। इनका सीधे एक विधानसभा की एक चौथाई सीटों पर प्रभाव है।

वहीं, हिन्दुत्व के मुद्दे को चुनावों में जोरशोर से बीजेपी ने उठाया। राज्य में नाथ संप्रदाय के प्रभाव को देखते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ताबड़तोड़ जनसभाएं भी की गईं। राजस्थान में बीजेपी ने सिर्फ एक सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी को उतारा, टोंक सीट पर सचिन पायलट के खिलाफ। टोंक सीट मुस्लिम बाहुल्य है, एक लाख से अधिक मतदाता मुस्लिम हैं। यहां पहली बार भाजपा ने किसी मुस्लिम प्रत्याशी को उतारा है, नहीं तो इससे पहले कांग्रेस मुस्लिम प्रत्याशी उतारती थी, और बीजेपी हिन्दू।


राजस्थान चुनावों में हिन्दुत्व प्रभावी होने के बारे में प्रो. बाणभट्ट समझाते हैं, "राजस्थान के मारवाड़ और शेखावटी अंचल में नाथ संप्रदाय का प्रभाव ऐतिहासिक रूप से रहा है। गोरखनाथ पीठ से सांसद अलवर से रहे हैं, "राजस्थान और मध्य प्रदेश के चुनावों पर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों का प्रभाव माना जा सकता है, अगर देखें तो यूपी विधानसभा से पहले भारत की राजनीति मुस्लिम तुष्टिकरण आधारित थी। लेकिन यूपी विधानसभा चुनाव के बाद सभी पार्टियों का हिन्दुओं को लेकर दृष्टिकोण बदला है। अब राजनीति हिन्दू तुष्टिकरण की हो रही है।"

राजस्थान के चुनावों में युवा मतदाता भी बड़ा सवाल हैं। कुल राजस्थान में 4.74 करोड़ कुल मतदाताओं में से 2.5 करोड युवा मतदाता हैं। बीजेपी इन्हें लुभाने के लिए अपने घोषणा पत्र में भी कई घोषणाएं की हैं। जबकि कांग्रेस को भरोसा है कि युवा चेहरा सचिन पायलट युवाओं को अपनी ओर खीचेंगे।

फिलहाल सात दिसंबर को राजस्थान की जनता मताधिकार का प्रयोग करेगी, और 11 दिसंबर को तय होगा कि भाजपा इतिहास के बदल पाती है या राहुल के नेतृत्व को मजबूती।

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