आराम से बैठिए, टाइम बम फटने को है

लोकसभा चुनावों के तमाम वादों और निरर्थक बहसों के बीच किसी भी राजनैतिक दल ने भारत में बढ़ते जलसंकट को रोकने के लिए कोई कारगर योजना बनाने के लिए न तो घोषणा पत्र में वादा किया, न ही अपने भाषणों में शामिल किया

मनीष मिश्रामनीष मिश्रा   18 April 2019 1:15 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
आराम से बैठिए, टाइम बम फटने को है

  • 60 करोड़ भारत के लोग जबरदस्त जल संकट से जूझ रहे हैं
  • 02 लाख लोग हर साल साफ पीने का पानी उपलब्ध न होने से जान गंवा रहे
  • 70% भारत में पेयजल दूषित
  • वर्ष 2020 तक दिल्ली और बंगलुरू जैसे 21 बड़े शहरों से भूजल हो जाएगा गायब
  • विश्व की 18 प्रतिशत जनसंख्या भारत में, जबकि महज 4 प्रतिशत ही उपयोग लायक पानी के स्रोत

लखनऊ। "हमें हर रोज आधे किमी पैदल चल के और करीब आधे घंटे नल चला कर पानी लाना होता है," सतना जिले की सुमन ने गाँव कनेक्शन को अपनी समस्या बताई।

यह एक महज तस्वीर भर है कि भारत कैसे जल संकट के टाइम बम पर बैठा है और इन लोकसभा चुनावों में जारी पार्टियों के घोषणा पत्रों में जल प्रबंधन और संरक्षण को लेकर रत्ती भर चिंता नहीं दिखाई दी।

वर्ष 2018 में आई नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार भारत इतिहास में जल संकट से सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। रिपोर्ट के अनुसार करीब 60 करोड़ लोग जबरदस्त जल संकट से जूझ रहे हैं, जबकि हर साल दो लाख लोग साफ पीने का पानी न मिलने से अपनी जान गंवा देते हैं।

भारत में बढ़ते जल संकट और सियासी दलों की नज़रअंदाजी के बारे में जल संरक्षण को लेकर लगातार आंदोलन करने वाले जल पुरुष राजेन्द्र सिंह कहते हैं, "मनुष्य और प्राकृति की सेहत के मुद्दे अगर पार्टियों के घोषणा पत्र में जोड़े जाएंगे तो काम करना पड़ेगा। लोग नेताओं से जवाब मांगेंगे, जैसे अभी गंगा के मुद्दे पर मोदी को घेरा जा रहा है। इसलिए इन मुद्दों पर नेता लोग बात ही नहीं करते।"

राजेन्द्र सिंह आगे कहते हैं, "नेता बहुत चतुर होते हैं, ऐसा कोई वादा करने से बचते हैं कि जिससे लोग उन्हें बाद में पकड़ें। मोदी ने 2014 में कहा था कि मां गंगा ने बुलाया है, और मां का ईलाज नहीं किया तो लोग आज ढूंढ् रहे हैं।"

नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 70 प्रतिशत पानी दूषित है और पेयजल स्वच्छता गुणांक की 122 देशों की सूची में भारत का स्थान 120वां है।

यह भी पढ़ें- 'देश में औसत बारिश का अनुमान हमारे काम नहीं आता'

एक तो पानी की समस्या दूसरे जहां है वहां अधिक जगहों पर दूषित है। कहीं आर्सेनिक मिला हुआ है तो कहीं फ्लोराइड। लेकिन मजबूरी में लोग इसी पानी को पी रहे हैं।

पेयजल की समस्या से किस कदर लोग जूझ रहे हैं इसे बरेली जिले की मीरगंज तहसील के बहरौली गाँव से समझ सकते हैं। रामगंगा नदी के किनारे बसे इस गाँव में इंडिया मार्का हैंडपंपों से आर्सेनिक युक्त पानी निकल रहा है।

"हमारे गाँव के लोगों को कैंसर की बीमारी हो रही है। कैंसर से अभी तक करीब 56 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, करीब दर्जन भर पीड़ित हैं, बहरौली गाँव के रहने वाले प्रमोद कुमार शर्मा ने गाँव कनेक्शन से कहा, "हमारे रिश्तेदार गाँव आने से कतराते हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि गाँव का पानी पीने से वे भी कैंसर की चपेट में आ सकते हैं। यही नहीं, दूसरे गाँव के लोग न तो हमारे गाँव की बेटियों से शादी करना चाहते हैं और न ही अपनी बेटियों को हमारे गाँव में भेजना चाहते हैं।"

इंडिया वाटर पोर्टल के अनुसार भारत के 50 प्रतिशत शहरी, 85 प्रतिशत ग्रामीण इलाकों में पानी चिंताजनक ढंग से विलुप्त हो रहा है। 3400 विकासखण्डों में से देखा गया कि 449 विकासखण्डों में 85 प्रतिशत से अधिक पानी खत्म है। ज्यादातर राज्यों में भूमिगत जलस्तर 10 से 50 मीटर तक नीचे जा चुका है।


पानी का दोहन रोकने और बढ़ती समस्या के बारे में राजनीतिक पार्टियों नज़रअंदाजी के बारे में ग्राउंड वाटर एक्शन ग्रुप के आरएस सिंहा कहते हैं, "कोई पानी के लिए बात ही नहीं करता, बिना राजनैतिक इच्छाशक्ति के कुछ नहीं हो सकता। व्यवस्था नियम कानून ये चलती है, पब्लिक को समझाने से कुछ नहीं होता, आगे कहते हैं, "राजनैतिक दलों के एजेंडे में पानी इसलिए नहीं होता क्योंकि इससे वोट प्रभावति नहीं होता।"

नीति आयोग की वर्ष 2018 में आई रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2020 तक दिल्ली और बंगलुरू जैसे भारत के 21 बड़े शहरों से भूजल गायब हो जाएगा। इससे करीब 10 करोड़ लोग प्रभावित होंगे। अगर पेयजल की मांग ऐसी ही रही तो वर्ष 2030 तक स्थिति और विकराल हो जाएगी। वर्ष 2050 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद में छह प्रतिशत तक की कमी आएगी।

मनुष्य और प्राकृति की सेहत के मुद्दे अगर पार्टियों के घोषणा पत्र में जोड़े जाएंगे तो काम करना पड़ेगा। लोग नेताओं से जवाब मांगेंगे, जैसे अभी गंगा के मुद्दे पर मोदी को घेरा जा रहा है। इसलिए इन मुद्दों पर नेता लोग बात ही नहीं करते।
राजेन्द्र सिंह, जल पुरूष, रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता

भारत में पानी के कुप्रबंधन को समझाते हुए वाटर ऐड इंडिया में प्रोग्राम एंड पॉलिसी के निदेशक अविनाश कुमार कहते हैं, "इससे बड़ा दु:खद पहलू क्या होगा कि द इकोनॉमिस्ट ने जल संकट को लेकर एक रिपोर्ट छापी जिसमें बढ़िया चीजों के लिए इजराइल से तुलना की गई थी और कुप्रबंधन के बारे में भारत को दिखाया गया।"

अविनाश आगे कहते हैं, "देश के आधे से अधिक जिलों में पानी दूषित है, 150 से 200 जिलों में आर्सेनिक पाया जाता है। अगर हम 70-80 के दशक में देखें तो बड़ा हिस्सा भू-स्तरीय जल से आता था, लकिन अब हर जगह धरती की कोख खोदी जा रही है।"

भारत में वर्ष 2012 में बनी जल नीति के अनुसार भारत में विश्व की 18 प्रतिशत जनसंख्या रहती है, जबकि महज 4 प्रतिशत उपयोग लायक पानी के स्रोत हैं।

उसपे भी तुर्रा यह कि नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि नीति निर्धारकों के सामने बड़ा संकट यह है कि उनके पास कोई आंकड़ा ही नहीं है कि घरेलू कार्यों और उद्योगों में कितना पानी का उपयोग होता है।

"मुझे याद नहीं आ रहा कि किसी भी पार्टी के घोषणा पत्र में नदी की सेहत, धरती की कोख सूखने से युवाओं की सेहत खराब होगी, ऐसी कोई बात की गई है," जल पुरूष राजेन्द्र सिंह कहते हैं। राजेन्द्र सिंह गंगा अविरल यात्रा और गंगा सद्भावना यात्राओं के जरिए जन-जन तक चेतना जगाने की कोशिश लगातार कर रहे हैं।


यह भी पढ़ें- मिट्टी, पानी, हवा बचाने के लिए याद आई पुरखों की राह

मौजूदा समय में चल रहे 17वीं लोकसभा चुनावों में 90 करोड़ भारतीय वोट डालेंगे। इनमें से 4.5 करोड़ युवा जो पहली बार वोट डालेंगे। लेकिन आगे की आने वाली पीढ़ी के लिए न तो राजनेता सोचते हैं न ही उनकी पार्टियां।

"सरकारें योजनाएं पांच साल के हिसाब से बनाती हैं, उसके आगे की कोई नहीं सोचता। ग्राउंड वाटर का उपयोग करने का कोई साफ नियंत्रण सिस्टम नहीं है। विकास के मॉडल में भूजल के संरक्षण की बात नहीं होती," वाटरऐड इंडिया के फार्रुख शेख कहते हैं।

वहीं वाटर ऐड इंडिया में प्रोग्राम एंड पॉलिसी के निदेशक अविनाश कुमार कहते हैं, "भारत में पानी का संरक्षण और उपयोग राज्यों के अधिकार में आता है, कोई कड़ा नियम नहीं आया कि भूजल के दुर्पयोग पर कड़ाई की जा सके। कई बिल ड्राफ्ट हुए लेकिन गुमनामी में चले गए,।"

इंडिया वाटर पोर्टल के अनुसार धरती पर कुल 14000 लाख घन किमी पानी है। इतने पानी से पूरी धरती पर 3000 किमी मोटी परत बन सकती है, पर कुल पानी का 2.7 प्रतिशत पानी ही शुद्ध है। इसका भी अधिकांश हिस्सा ध्रुवों पर जमा है। यह पानी उपयोग के लिए नहीं है। इस तरह से एक प्रतिशत से भी कम पानी हमें उपलब्ध है। यह नदियों, झीलों, कुँओं, तालाबों और भूमिगत भंडारों के रूप में है।

इस पर राजेन्द्र सिंह कहते हैं, "मैंने जीडी अग्रवाल से वादा किया था कि वह नहीं भी रहेंगे तो भी गंगा सफाई का मिशन नहीं रुकेगा। हमने प्रण लिया है कि जब तक गंगा पर बांध बनने बंद नहीं होंगे तब तक अपने दाढ़ी और बाल नहीं बनवाऊंगा।"

  

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.