रक्तरंजित पार्ट 6 : बलात्कार के मामलों में तीन महीने की कानूनी प्रक्रिया में लग जाते हैं छह-छह साल

बलात्कार और यौन उत्पीड़न जैसे जघन्य अपराध पर अंकुश के लिए कड़े कानून तो हैं, लेकिन थानों और अदालतों की लंबी प्रक्रिया और जिम्मेदार अधिकारियों के लापरवाही से दोषियों पर समय से कड़ी कार्रवाई नहीं हो पाती, और पीड़ित को न्याय के लिए भटकना पड़ता है।
#बलात्कार पीड़िता

लखनऊ। बलात्कार और यौन उत्पीड़न जैसे जघन्य अपराध पर अंकुश के लिए कड़े कानून तो हैं, लेकिन थानों और अदालतों की लंबी प्रक्रिया और जिम्मेदार अधिकारियों के लापरवाही से दोषियों पर समय से कड़ी कार्रवाई नहीं हो पाती, और पीड़ित को न्याय के लिए भटकना पड़ता है। सबसे बड़ी समस्या वहां आती है जब जानकारी के अभाव में मुकदमा दूसरी धारा में लिख दिया जाता है, बलात्कार पीड़िता की डॉक्टरी जांच काफी दिन बाद कराई जाती है।

इस गैर जिम्मेदार और लापरवाह व्यवस्था के चलते नाबालिग रमा (बदला हुआ नाम) को न्याय पाने के लिए काफी झेलना पड़ा। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब बाराबंकी जिले के एक गाँव में रमा (बदला हुआ नाम) के साथ उसी के गाँव में रहने वाले युवक ने बलात्कार किया। पॅाक्सो कानून के तहत मामला दर्ज हुआ। बलात्कार के बाद माँ बनीं रमा का बच्चा अब पांच महीने का है, लेकिन रमा को न्याय का इंतजार है। रमा की माँ कमेलशी ने ‘गाँव कनेक्शन’ को बताया, “एफआईआर तो दर्ज़ हुई थी, लेकिन बिटिया की मेडिकल जांच और बयान देने में बहुत देरी हुई। दो साल से केस चल रहा है। न जाने कितने रूपए भी खर्च हो गए हैं।”

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बाल यौन अपराध कानून में संशोधन के पहले अदालत को दी गई रिपोर्ट में बताया गया कि देशभर की निचली अदालतों में बाल यौन अपराध से जुड़े 1,12,628 मामले लंबित हैं, जिसमें से उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 30,883 मामले हैं। इसी तरह मध्य प्रदेश में 10,117, पश्चिम बंगाल में 9,894, ओडिशा में 6, 849, दिल्ली में 6,100, केरल व लक्ष्यद्वीप में 5,409, गुजरात में 5,177, बिहार में 4,910, और कर्नाटक में 4,045 मामले लंबित है।

“सरकार कानून तो कड़े कर रही है, पर जमीनीस्तर की हकीकत बहुत खराब है। अगर कोई मामला थाने में आता तो पुलिस उस एक्ट में उस मामले को लिखती ही नहीं,” छात्रों को कानूनी शिक्षा देने वाले अनिल कुमार ने बताया। अनिल पिछले एक वर्ष से डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय और यूनीसेफ के साथ मिलकर स्कूल, कॉलेजों में छात्र-छात्राओं को कानून के प्रति जागरूक कर रहे हैं। कठुआ और उन्नाव रेप मामले के बाद कानून को मजबूत बनाने के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बाल यौन आपराधिक कानून (पाक्सो एक्ट) में संशोधन के अध्यादेश पर दस्तखत किया था। इसके बाद 12 वर्ष से कम उम्र की बच्चियों से बलात्कार के दोषियों को सजा-ए-मौत, 16 साल से कम उम्र की लड़की से रेप की सजा 10 साल से बढ़ाकर 20 साल कर दिया गया है।
बाल यौन आपराधिक कानून (संशोधन) अध्यादेश-2018 के अनुसार ऐसे मामलों को निपटाने के लिए नई त्वरित अदालतें (फास्ट ट्रैक कोर्ट) भी गठित की जानी हैं, साथ ही, सभी पुलिस थानों और अस्पतालों को बलात्कार मामलों की जांच के लिए विशेष फॉरेंसिक किट उपलब्ध कराई जाएगी। महिलाओं को कानूनी अधिकार दिलाने वाली संस्था एसोसिएशन फार एडवोकेसी एंड लीगल (आली) की कार्यकारी निदेशक रेनू मिश्रा कहती हैं, “सजा ज्यादा होने से काम नहीं चलेगा, सजा देने के नंबर में सुधार होना चाहिए। पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज़ होने वाले मामलों में दोष सिद्धि का प्रतिशत बहुत कम होता है। यूपी में पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज़ होने वाले मामलों में सिर्फ 29 फीसदी में ही दोष सिद्ध हो सके। देश में यह आंकड़ा सिर्फ 28 फीसदी है।”
वहीं, कड़े कानून के बावजूद बलात्कार पड़िताओं को न्याय मिलने में देरी और साक्ष्यों के छेड़छाड़ पर अनिल कुमार कहते हैं, “एफआईआर दर्ज़ होने के बाद पीड़िता की डॉक्टरी जांच तुरंत करवानी चाहिए, लेकिन जागरूकता की कमी के कारण मेडिकल 25 से 30 दिनों बाद कराया जाता है, तब तक साक्ष्य खत्म हो जाते हैं। जो डॉक्टर मेडिकल कर रहा होता है उसको भी एक्ट के बारे में जानकारी ही नहीं होती है।” अनिल कुमार कहते हैं, “अगर पुलिस, डॉक्टर और न्याय व्यवस्था ठीक से काम करे तो पीड़िता को न्याय मिलने में देरी नहीं होगी।”

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बलात्कार और उससे जुड़े कानून को स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल करने और पुलिस और डॉक्टरों को इसके कानून के लिए जागरूक होने के वकालत करते हुए ‘ब्रेक थ्रू’ की सीईओ सोहिनी भट्टाचार्या कहती हैं, “ग्रामीण क्षेत्रों में अभी लोग ऐसी घटनाओं को छिपाने की कोशिश करते हैं, क्योंकि उनको लगता है कि बदनामी भी होगी और न्याय भी नहीं मिलेगा। इसलिए कानून की जानकारी उन तक पहुंचना बहुत जरूरी है।” ब्रेक थ्रू पिछले चार वर्षों से महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ होने वाली हिंसा और भेदभाव के खिलाफ काम कर रहा है। बाल अपराध यौन हिंसा (पाक्सो एक्ट) में संशोधन के बाद उम्र कैद की सबसे पहली सजा आसाराम को हुई। लेकिन कानूनी प्रक्रिया के दौरान नियमों के अनदेखी पर अनिल कुमार कहते हैं, “मामले की सुनवाई एक विशेष न्यायालय द्वारा कैमरे के सामने बच्चे के माता-पिता या जिन लोगों पर बच्चा भरोसा करता है, उनकी उपस्थिति में होती है। लेकिन कई बार कोर्ट में परिवारजनों को बुलाया ही नहीं जाता।”
वहीं, बलात्कार पीड़िता को हर संभव मदद पहुंचाने के लिए कानून के तहत हर संभव व्यवस्था की गई है, लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों और लोगों को इसकी जानकारी न होने पर कई बार इसका लाभ नहीं मिल पाता। यूपी सरकार रानी लक्ष्मी बाई कोष से आर्थिक मदद करती है। लेकिन जानकारी के अभाव में लोग इस मदद को नहीं ले पाते। पाक्सो एक्ट के तहत दी जाने वाली राशि के लिए यह भी देखा जाता है कि पुलिस ने केस किस धारा में दर्ज किया है। “पॉक्सो कानून के जिन मामलों में एफआईआर पुलिस या डॉक्टर पोर्टल पर अपलोड की गई है तो पीड़िता को सहायता राशि दी जाती है। यह राशि धारा के हिसाब दी जाती है। इसका पैसा पीड़िता तभी निकाल सकती है जब वो बालिग होगी,” लखनऊ में आशा ज्योति केन्द्र की प्रभारी अर्चना सिंह ने बताया, “जो प्रक्रिया 90 दिन पूरी हो उसमें छह साल तक लग जाते हैं। यह ठीक हो और जो सवेंदनील मामले हैं उनके लिए अलग सुनवाई हो।”

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उत्तर प्रदेश में बलात्कार पीड़िताओं को मिलने वाली मदद के बारे में यूपी महिला एवं बाल कल्याण के सचिव जय प्रकाश सगर बताते हैं, “वर्ष 2017 में सहायता कोष राशि के अंतर्गत 65 करोड़ रूपये की राशि से बलात्कार पीड़िताओं की मदद की गई। हर जिले स्थित कमेटी में डीएम, एसपी, सीएमओ और एक न्यायिक अधिकारी रहते हैं। वही, इस राशि की संस्तुति करते हैं और पैसा दिया जाता है।
क्या है पॉक्सो एक्ट?
बच्चों के साथ बढ़ते यौन अपराधों पर लगाम लगाने के लिए सरकार ने वर्ष 2012 में पॉक्सो एक्ट कानून बनाया था। इसके तहत नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है। इसके अंतर्गत उम्र कैद की सजा का भी प्रावधान है। यह एक्ट बच्चों को यौन उत्पीड़न, पोर्नोग्राफी जैसे गंभीर अपराधों से सुरक्षा प्रदान करता है। एक्ट में विशेष नए संशोधन के अंतर्गत अपराध की एफआईआर के बाद आरोपी को अपने बचाव में दलील और सबूत पेश करने का पूरा मौका दिया जाता है। इस एक्ट की सबसे खास बात यह है कि इसमें बच्चे की तरफ से अपराध का सिर्फ आरोप लगाना ही पर्याप्त है। पीड़ित को पूरी सुरक्षा प्रदान की जाती है।पॉक्सो एक्ट की धारा 5 एफ, 6, 7, 8 और 17, किसी शैक्षिक संस्थान में बाल यौन उत्पीड़न (अगर किसी पर पॉक्सो एक्ट लगता है तो तुरंत गिरफ्तारी होती है। इस एक्ट के तहत आरोपी को जमानत भी नहीं मिलती है। पीड़ित बच्ची अथवा बच्चे के संरक्षण के भी प्रावधान हैं)
बलात्कार के बाद मेडिकल जांच के प्रावधान
जिस क्षेत्र में घटना हुई है उस क्षेत्र की पुलिस की यह जिम्मेदारी है कि मामले को 24 घंटे के अन्दर बाल कल्याण समिति की निगरानी में लाए ताकि चाइल्ड वेलफेयर कमेटी बच्चे की सुरक्षा और संरक्षण के लिए जरूरी कदम उठा सके। इस अधिनियम में बच्चे की मेडिकल जांच के लिए प्रावधान भी किए गए हैं, जो कि इस तरह की हो ताकि बच्चे के लिए कम से कम पीड़ादायक हो। मेडिकल जांच बच्चे के माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति में किया जाना चाहिए, जिस पर बच्चे का विश्वास हो, और पीड़ित अगर लड़की है तो उसकी मेडिकल जांच महिला चिकित्सक द्वारा ही की जानी चाहिए। इसके साथ केस की सुनवाई बंद कमरे में करने का प्रावधान है।
पीड़िता को कैसे मिलती है सहायता राशि?
यौन उत्पीड़न, बलात्कार, एसिड अटैक, तीन तलाक व घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को कानूनी व चिकित्सीय मदद देने के लिए केंद्र सरकार ने सभी राज्यों में वन स्टॉप सेंटर की शुरूआत की है। लखनऊ में यह केंद्र आशा ज्योति केंद्र के नाम से चल रहा है। इसकी केंद्र प्रभारी अर्चना सिंह बताती हैं, “अगर कोई गंभीर मामला है जिसमें पीड़िता को तुरंत राशि की जरूरत होती है तो उसमें उस पीड़िता को ट्रीटमेंट शुरू हो जाता है। और सम्मान कोष राशि उस सरकारी अस्पताल के खाते में जाती है। इसके लिए डॉक्टरों को बिल देना होता है। अभी तक लखनऊ में 250 से ज्यादा खातों में इस राशि को दिया गया है।”


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