#स्वयंफेस्टिवल : “ये देश का दुर्भाग्य है कि यहां जूते एसी शोरूम में और सब्जियां नालों के किनारे बिकती हैं”

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#स्वयंफेस्टिवल : “ये देश का दुर्भाग्य है कि यहां जूते एसी शोरूम में और सब्जियां नालों के किनारे बिकती हैं”बाराबंकी के जिला उद्यान अधिकारी जयकरण सिंह, नाबार्ड की डीडीएम शैफाली अग्रवाल, कृषि उपनिदेशक डॉ. एसपीसिंह किसान चौपाल में।

ऱवींद्र वर्मा, कम्यूनिटी जर्नलिस्ट

रमपुरवा (बाराबंकी)। जिले के जिला उद्यान अधिकारी जयकरण सिंह ने कहा कि इस प्रदेश में अन्नदाता के अन्न को उतनी महत्ता नहीं दी जाती है जितनी एक अन्य उत्पाद की कंपनी को दी जाती है। उनका कहना है कि ये एक बड़ी विडम्बना है कि यहां जूते एसी में बेचे जाते हैं जबकि सब्जियां ठेलों और नाले के किनारे जमीन पर बिकती हैं। उन्होंने किसानों को बताया कि उत्पादन के साथ उत्पाद की मार्केटिंग करनी भी बेहद जरूरी है। ऐसा करने पर ही किसान अन्य कम्पनियों और उत्पादों के बड़े संस्थानों की तरह प्रचार प्रसार करके अपना नाम कमा सकते हैं। इसके लिए किसानों को जागरुक होना पड़ेगा और उन्हें अपने उत्पाद को एक ब्रांड बनाकर उसकी मार्केटिंग पर जोर देना चाहिए। गाँव कनेक्शन फाउंडेशन के स्वयं फेस्टिवल के चौथे दिन की शुरुआत बाराबंकी के भगौली तीर्थ रमपुरवा गांव में हुई। जहां उन्होंने ये बात कही।

किसान चौपाल पहुंचे अल्लू नगर डिगुरिया के किसान।

उपकृषि निदेशक एसपी सिंह ने कहा कि किसानों को मार्केटिंग के लिए अच्छा और बेहतर उत्पादन करना चाहिए जो गुणवत्ता में अव्वल हो। इसलिए किसानों को अपने उत्पाद में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बंद करना होगा जो दवा रूपी ज़हर का काम करते हैं। जिस तरह से जमीन के जीव को जलाकर वे ना मारें। उनहोंने बताया कि किसान फसलों को बाजार में जल्दी उतारने के लिए दवा डालने के एक दिन बाद ही बेचले के लिए तोड़ लेते हैं। यह मानव जीवन के लिए बहुत घातक है।

किसानाें को संबोधित करते हुए जिला कृषि अधिकारी एसपी सिंह।

जिला विकास प्रबंधक शेफाली अग्रवाल ने किसानों को खेता में सोलर पंप के उपयोग के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि साल में 200 दिन सूर्य से प्राकृतिक रोशनी मिलती है। इसलिए इसका लाभ उठाते हुए सोलर पंप लगवाकर किसान डीजल की लागत को कम कर सकते हैं।

बहराइच के प्रगतिशील किसान गुलाम मोहम्मद ने कहा कि वो 8वीं पास है लेकिन केले की खेती से सालाना 70 लाख रुपये कमाता हूं।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

   

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