गाँव की लड़कियां शहरों में बंधुआ मजदूर

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गाँव की लड़कियां शहरों में बंधुआ मजदूरgaon connection

लखनऊ। खुशबू (13 वर्ष) की मां ने जब उसे पढ़ने के लिए गाँव से शहर भेजा था तो उन्हें ये नहीं पता था कि उनकी बेटी शहर जाकर एक बंधुआ नौकर बन जाएगी।

खुशबू के पिता की मृत्यु के बाद जब खु्शबू की मां ने घरों में काम करना शुरू किया तो वहां उनकी मुलाकात बैंक की मैनेजर दिव्या वारा से हुई। 

उन्होंने खुशबू को होनहार बताकर उसकी पढ़ाई कराने की जिम्मेदारी लेकर उसे लखनऊ ले जाने के लिए कहा। बेटी के अच्छे भविष्य के बारे में सोचकर मां ने भी उसे भेज दिया लेकिन वहां जाकर खुशबू को झाड़ू पोछा बर्तन करना पड़ा। 

चाइल्ड लाइन को जब पता चला तब उन्होंने खुशबू को बंधुआ मजदूरी के चंगुल से निकाला। अपने चोट के निशान दिखाते हुए खुशबू बताती हैं, “वो दिनभर मुझसे काम कराते थे और उसके बाद मारते भी थे। दो साल तक मैं वहां कैद बनकर काम करती रही। बड़ी मु्श्किल से वहां से निकल पाई।” खु्शबू इस समय बालगृह में अपनी मां का इंतजार कर रही है। 

ऐसा सिर्फ खुशबू के साथ ही नहीं बल्कि कई लड़कियां, जो पैसे कमाने या फिर अच्छी शिक्षा के लिए दूसरों के साथ गाँव से शहर आ जाती हैं उनके साथ होता है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर रोज 93 लड़कियां शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित होती हैं। 

बिहार के चंपारण में रहने वाली नीलम (9 वर्ष) को उसके परिवार ने काम करने के लिए लखनऊ भेज दिया। 

वहां नीलम को शारीरिक और मानसिक दोनों ही प्रताड़नाएं झेलनी पड़ीं। नीलम बताती है,“मां पापा से बात भी नहीं करने देते थे और न तनख्वाह देते थे।”

बच्चों को बंधुआ नौकर बनाकर काम कराने के बारे में चाइल्ड लाइन के समन्वयक अजीत कुशवाहा बताते हैं, “हर साल हम कल्पना करते हैं कि फूलों जैसे कोमल बच्चियों को कोई अपने पैरों तले न कुचले लेकिन चाइल्ड लाइन की रिपोर्ट के अनुसार हर साल सैकड़ों बच्चियों को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक प्रताड़ना सहन करनी पड़ रही है।”

वहीं चाइल्ड लाइन के टीम मेम्बर अमरेन्द्र का कहना है कि लखनऊ में 23 मई 2015 से 2 जून 2016 तक चाइल्ड लाइन की रिपोर्ट के अनुसार 62 बच्चियां ऐसी हैं, जिनको शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना की शिकार होना पड़ा। बच्चों में बढ़ रहे अपराधों के बारे में हाईकोर्ट की एडवोकेट नेहा धनवानी बताती हैं, “18 साल से कम उम्र के बच्चो के साथ बढ़ रहे अपराधों यौन उत्पीड़न और शारीरिक उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करना अधिनियम 2012 के तहत आता है।”

 वो आगे बताती हैं, “इस अधिनियम का मुख्य मकसद बच्चों के साथ हो रहे अत्याचारों से उनको सुरक्षा प्रदान करना है इस अधिनियम के अर्न्तगत अश्लील ढंग से ली गई फोटोग्राफी करना और बच्चों को शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित करना अपराध में आता है।”

रिपोर्टर : दरक्शां कादिर सिद्दकी 

 

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