गायब हो रही बकरी की प्रजाति को बचाने का प्रयास

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गायब हो रही बकरी की प्रजाति को बचाने का प्रयासगाँव कनेक्शन

बाराबंकी (त्रिवेदीगंज)। रत्नेश सिंह और विवेक सिंह हाई टेक फार्म बनाकर बकरी पालन कर रहे हैं, जिससे वह अधिक लाभ तो कमा ही रहे हैं साथ ही कम हो रही बारबरी बकरियों की प्रजाति को बढ़ावा भी दे रहे है।

यह फार्म बाराबंकी जिला मुख्यालय से पूर्व दिशा में लगभग 32 किलोमीटर दूर त्रिवेदीगंज ब्लॉक के मोहम्मदपुर गाँव में है। रत्नेश और विवेक ने यह फार्म एक साल पहले शुरु किया था। विवेक (34वर्ष) बताते हैं, ''शुरु में हमारे पास बारबरी प्रजाति के दो बकरे और 21 बकरियां थीं। अब कुल मिलाकर 70 बकरे-बकरियां है।’’ अपने फार्म के बारे में विवेक बताते हैं, ''जिस विधि से इस फार्म को बनाया गया है उसे एलीवेटेड प्लास्टिक फ्लोरिंग (स्टाल-फेड विधि)कहते है। इस फार्म को बनाने में पंद्रह लाख रुपए का खर्चा आया था।’’

वर्तमान समय में चारागाह की अनुपलब्धता को देखते हुए यह विधि काफी सहायक हो सकती है। फार्म में सभी बारबरी प्रजाति की बकरियां है जिन्हें चराने की जरुरत नहीं पड़ती है। एक शेड के नीचे पाली जा सकती है। इनके  बच्चे करीब 8-10 महीनों में वयस्क होते है। बकरी की खासियत बताते हुए रत्नेश बताते हैं, ''रोज एक बकरी पर लगभग 10-15 रुपए का खर्चा आता है। इनका वजन देशी बकरी के मुकाबले ज्यादा होता है।’’

पूरे विश्व में बकरियों की कुल 102 प्रजातियॉ उपलब्ध हैं, जिसमें से 20 भारतवर्ष में है। अपने देश में पाई जानी वाली विभिन्न नस्लें मुख्य रूप से मांस उत्पादन के लिए है। 19 वीं पशुगणना के अनुसार भारत में 7.61 करोड़ बकरियां हैं।

त्रिवेदीगंज ब्लॉक के पशुचिकित्सक डॉ. ओमप्रकाश सिंह बताते हैं, ''बकरी पालन एक अच्छा व्यवसाय है जिससे कम लागत में अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। हमारे क्षेत्र में जो यह फार्म बना हुआ है, इसमें बकरियों कोई भी बीमारी होती है तो इसका तुरंत इलाज किया जाता है इनके फार्म से कई लोगों ने प्रेरित होकर बकरी पालन शुरु किया है। जिले स्तर पर इनको पुरस्कृत भी किया जा चुका है।’’

फार्म की शुरुआत करने से पहले लिए प्रशिक्षण के बारे विवेक बताते हैं, ''इस फार्म को शुरु करने से पहले हमने दस दिन का केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मथुरा से प्रशिक्षण लिया उसके बाद इस फार्म की शुरुआत की। इस प्रशिक्षण को कोई भी ले सकता है और इसकी शुरुआत कर सकता है।’’ मथुरा स्थित केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान एक साल में चार बार प्रशिक्षण देता है। इच्छुक व्यक्ति इस फॉर्म को वेबसाइट पर जाकर डाउनलोड कर सकते है।

स्टाल-फेड विधि के लाभ 

- बकरियों को बाहर चराने की ज़रुरत नहीं नहीं पड़ती है।

- उनको शेड में ही (जमीन पर या जमीन से उठा हुआ) अलग किया जा सकता है।

- चारे की मात्रा और गुणवत्ता को विभिन्न उम्र की बकरियों के अनुसार नियंत्रित किया जाता है। 

- चराने के दौरान बाहर से आने वाली बिमारियों से सुरक्षा होती है। 

- इस विधि से बना फार्म कम से कम 10 वर्ष और उससे अधिक दिन तक चलता है।

- फ्लोर और पार्टिशन को इन्टर-लॉकिंग करके आसानी से कुछ दिनों में ही फ्लोर तैयार किया जा सकता है।

- कम समय में उचित रखरखाव और आसान धुलाई।

- 16 मिमी होल से मैगनीं और यूरीन नीचे गिर जाता है तथा फ्लोर एकदम साफ-सुथरा रहता है। 

- किसी तरह की मरम्मत की जरुरत नहीं पड़ती।

- वाटर प्रूफ वर्जिन प्लास्टिक का प्रयोग जिससे बकरी को नमी और गर्मी से बचाता है। 

- पानी गिरने पर भी कोई फिसलन नहीं होती।

- रोज साफ  करने की आवश्यकता नहीं होती।

बारबरी बकरी

बारबरी बकरी सभी जलवायु में कम लागत, साधारण आवास, सामान्य रख-रखाव में रखी जा सकती है। यह बकरी मुख्य रूप से मध्य एवं पश्चिमी अफ्रीका में पायी जाती है लेकिन अब यह उत्तर प्रदेश के आगरा, मथुरा एवं इससे लगे क्षेत्रों में काफी संख्या में उपलब्ध है। यह छोटे कद की होती है और इसका शरीर काफी गठीला होता है। इसके शरीर पर छोटे-छोटे बाल पाये जाते हैं और शरीर पर सफेद के साथ भूरा या काला धब्बा भी होता है। यह देखने में हिरण के जैसी लगती है। वयस्क नर का औसत वजन 35.40 किलो ग्राम तथा मादा का वजन 25.30 किलो ग्राम होता है। इसकी प्रजनन क्षमता भी काफी विकसित है।

 

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