काले-जादू पर विजय पाने के बाद समाज के सताए लोगों के लिए लड़ाई  

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काले-जादू पर विजय पाने के बाद समाज के सताए लोगों के लिए लड़ाई  काले-जादू पर विजय पाने के बाद समाज के सताए लोगों के लिए लड़ाई

रायपुर (भाषा)। छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में रहने वाले 50 वर्षीय मजदूर भगत दास बघेल की पत्नी श्यामा बाई की मौत इस वर्ष अगस्त महीने में हो गई, लेकिन बघेल उसका अंतिम संस्कार गाँव के मुक्तिधाम में नहीं कर सके। उन्हें पत्नी का शव अपने घर के पीछे दफनाना पड़ा। गाँव वालों के मुताबिक बघेल ने 40 वर्ष पहले दूसरी जाति की महिला से प्रेमविवाह करने की गलती की थी। इसके बाद बघेल और उसके परिवार का गाँव के लोगों ने सामाजिक बहिष्कार कर दिया था।

छत्तीसगढ़ में यह ऐसा अकेला मामला नहीं है जिसकी वजह से एक महिला को मुक्तिधाम की मिट्टी नसीब नहीं हो पाई और उसके परिवार को उपेक्षित जीवन जीना पड़ रहा है। राज्य में ऐसे सैकड़ों मामले हैं और ऐसे अनेक परिवार हैं जो प्रेम विवाह, टोना करने के आरोप, किसी महिला के दूसरे व्यक्ति के साथ चले जाने, अवैध शराब बेचने या समाज के खिलाफ सूचना का अधिकार का उपयोग करने के कारण सामाजिक बहिष्कार का सामना कर रहे हैं।

छत्तीसगढ़ में सामाजिक बहिष्कार की घटनाओं को देखते हुए एक संस्था ने इस प्रथा को अपराध घोषित किए जाने और इसके खिलाफ कड़ा कानून बनाने की मांग को लेकर राज्यव्यापी अभियान शुरु कर दिया है। शहर की अंधश्रृद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष दिनेश मिश्र ने बताया, ‘‘हमने सामाजिक बहिष्कार निषेध कानून लागू करने और इस प्रथा के शिकार लोगों को न्याय दिलाना सुनिश्चित करने की मांग को लेकर राज्य के सभी 27 जिलों में धरना प्रदर्शन आयोजित करने की योजना बनाई है।''

उन्होंने बताया, ‘‘हम अभी तक राजधानी रायपुर और बिलासपुर जिला मुख्यालयों में ऐसा कर चुके हैं जहां बहुत से लोग इसके शिकार हुए हैं या हो रहे हैं। ऐसे सभी लोगों ने इस धरना प्रदर्शन में शिरकत की। रायपुर के रहने वाले नेत्र रोग विशेषज्ञ मिश्र पिछले दो दशक से अंधविश्वास और काला जादू जैसी इन सामाजिक बुराइयों के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने उस आंदोलन की भी शुरुआत की थी जिसकी परिणति जादू टोना उत्पीड़न (निषेध) कानून 2005 के तौर पर हुई। छत्तीसगढ़ सरकार ने सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक क्षेत्र में अभिनव प्रयास करने के लिए मिश्रा को पंडित रविशंकर शुक्ल सम्मान से भी विभूषित किया है।

समिति के अध्यक्ष दिनेश मिश्रा ने बताया कि संगठन ने सामाजिक बहिष्कार के मामले में अपराध पंजीबध्द करने और इसके खिलाफ कानून बनाने की मांग की है। इसके लिए धरना प्रदर्शन भी किया गया है।

मिश्रा ने बताया कि राज्य में सामाजिक और जातिगत स्तर पर सक्रिय पंचायतों द्वारा सामाजिक बहिष्कार के लगातार मामले आते रहते हैं। ग्रामीण अंचल में ऐसे मामले ज्यादा होते हैं। राज्य में ऐसे मामले आते हैं जिसमें जाति या समाज से बाहर विवाह करने, समाज के मुखिया का कहना न मामने, पंचायतों कें मनमाने फरमान और फैसलों को सिर झुकाकर पालन नहीं करने पर किसी व्यक्ति या उसके पूरे परिवार को समाज और जाति से बाहर कर दिया जाता है और समाज में उसका हुक्का पानी बंद कर दिया जाता है। समिति सामाजिक बहिष्कार के प्रभावितों को न्याय दिलाने और बहिष्कार के विरोध में प्रभावी कानून बनाने की मांग कर रही है।

मिश्रा ने बताया कि सामाजिक बहिष्कार होने से दंडित व्यक्ति और उसके परिवार से पूरे गाँव और समाज में कोई भी व्यक्ति न बातचीत करता है और न ही उनसे किसी भी प्रकार का व्यवहार रखता है। बहिष्कृत परिवार को हेंडपंप से पानी लेने, तलाब में नहाने और निस्तार करने, सार्वजनिक कार्यक्रमों में शामिल होने, दुकान से सामान खरीदने और अन्य कार्यक्रमों में हिस्सा लेने से वंचित कर दिया जाता है।

वहीं सामाजित पंचायतें कभी-कभी सामाजिक बहिष्कार हटाने के लिए भारी जुर्माना, अनाज, शारीरिक दंड और गाँव छोड़ने जैसे फरमान जारी कर देती है। इस सामाजिक बहिष्कार के कारण विभिन्न स्थानों पर आत्महत्या, हत्या, प्रताड़ना और पलायन करने की घटनाएं भी होती हैं। उन्होंने बताया कि सामाजिक बहिष्कार को लेकर अभी तक कोई सक्षम कानून नहीं बन पाया है, जिसके कारण ऐसे मामलों में कोई उचित कार्रवाई नहीं हो रही है। मिश्रा ने बताया कि इस मुददे को लेकर वह राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायधीश ,छत्तीसगढ़ के राज्यपाल और मुख्यमंत्री से आग्रह कर चुके हैं और विभिन्न आयोगों में पत्र भेज चुके हैं। राज्य शासन ने इस संबंध में गंभीरता पूर्वक विचार करने का आश्वासन दिया है।

     

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