इन्होंने लिखे बेटियों के लिए सोहर, लखनऊ की लोकगायिका कमला श्रीवास्तव से बातचीत

Shefali SrivastavaShefali Srivastava   21 April 2017 8:42 PM GMT

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इन्होंने लिखे बेटियों के लिए सोहर, लखनऊ की लोकगायिका कमला श्रीवास्तव से बातचीतयशभारती और संगीत नाट्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित 84 वर्षीय लोकगायिका प्रोफेसर कमला श्रीवास्तव (फोटो: बसंत कुमार)

लखनऊ। यूं तो अवधि लोक गीतों में प्रयोगों की गुंजाइश कम ही होती है लेकिन प्रसिद्ध लोकगायिका प्रोफेसर कमला श्रीवास्तव ने बेटियों के लिए सोहर ‘ऐहो जन्मी हैं बिटिया हमार, सहेलियां सोहर गावो’ रचकर एक मिसाल कायम की है।

यही नहीं उन्होंने बाल विवाह प्रथा के खिलाफ ‘दस कै कन्या, साठ का दूल्हा’ जैसे कटाक्ष गीत भी रचे जिन्हें गाँव-गाँव बहुत तारीफ मिली। यशभारती और संगीत नाट्य अकादमी जैसे पुरस्कारों से सम्मानित प्रो. कमला श्रीवास्तव (84 वर्ष) ने हमसे अपने सफर और भारत में लोकगीतों के संबंध में कई बातें बताईं।

बेटियों के लिए सोहर गीत लिखने पर कमला श्रीवास्तव बताती हैं, अक्सर गाँवों या शहरों में बेटों के जन्म पर ही सोहर गाए जाते थे। तब मेरे मन में ख्याल आया कि बेटियों के लिए भी सोहर लिखे जाने चाहिए। इसके बाद जब इसको काफी वाहवाही मिली तो मैंने बेटियों के लिए कई गीत रच डाले। जब प्रधानमंत्री बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के लिए लोगों को जागरूक कर रहे हैं तो हमें भी कुछ न कुछ करना चाहिए। फिर संगीत के माध्यम से, गीत गाकर हम ज्यादा लोग तक अपनी बात पहुंचा सकते हैं क्योंकि लोग संगीत से जुड़ते हैं।

बेटियों पर सोहर सुनातीं प्रोफेसर कमला श्रीवास्तव (फोटो: बसंत कुमार)

लोकगीतों में अपने रुझान के बारे में कमला ने बताया, मैं सात साल की थी तब से गाना गा रही हूं। फिर नौ साल की उम्र में मंचों पर भी गाया। लोकगीत का माहौल तो मुझे घर से ही मिला है। जब छोटी थी तो घर में मां और बाकी रिश्तेदार अवधि में ही बात करते थे। हमारा परिवार भी बड़ा था तो अक्सर किसी न किसी के यहां मुंडन- छेदन या विवाह जैसे कार्यक्रम लगे रहते थे। वहां गौनहरिया आती थीं जिन्हें गाना गाने वाली कहा जाता था। उन्हें गाते देखकर मैं भी गाने लगी लेकिन बोल बिगाड़कर। फिर बड़े-बुजुर्गों ने जब लोकगीतों को बिगाड़कर गाने पर डांटा तबसे मैं इसकी पूजा करने लगी।

कमला लोकगीतों से शुरुआत करते हुए शास्त्रीय संगीत की ओर रुख करती गईं। उन्होंने बताया कि हाईस्कूल के बाद इंटर और ग्रेजुएशन तक मैंने शास्त्रीय संगीत सीखा। इसके बाद मैं जियोग्राफी की लेक्चरर बन गई। इस दौरान शास्त्रीय संगीत से 12 साल तक का लंबा गैप हो गया।12 साल बाद मैंने भातखंडे संगीत महाविद्यालय में लेक्चरर के रूप में जॉइन किया। आकाशवाणी में भी खूब कार्यक्रम किए और वहां राधा वल्लभ और बलदेव प्रसाद जी से काफी कुछ सीखने को मिला जिन्हें मैं अपना गुरु भी मानती हूं।

स्कूलों में जरूर सिखाएं लोकगीत

नई पीढ़ी में कम होते लोकगीतों के प्रति रुझान पर कमला ने कहा कि ऐसा नहीं है कि रूझान कम हैं क्योंकि मैं शुरू से ही लोकगीतों की कार्यशाला लेती रही हूं। वहां महिलाओं के साथ लड़कियां भी आती थीं। दादी-नानी और पोती को देखकर अच्छा लगता था कि तीन पीढ़ियां एक साथ संगीत सीखने आ रही हैं। मेरा मानना है कि नई पीढ़ी को संस्कृति और लोकगीतों से जोड़ने के लिए स्कूलों में लोकगीत आवश्यक करना चाहिए। वे केवल लोकगीत ही नहीं होते हैं उसमें सीख भी होती है। संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा।

शास्त्रीय गीतों की जननी है लोकगीत

कमला श्रीवास्तव कहती हैं कि लोकगीत शास्त्रीय गीतों की जननी है इसलिए उसका सम्मान जरूरी है। शास्त्रीय संगीत की कई ऐसी राग हैं जो लोकगीतों से निकली हैं। जैसे एक लोकगीत नीमा तले अंबुआ के तले देवी रूमझूम आए जाओ, नीमा तले पा नी धा पा गा मा रे गा रे सा, राग जौनपुरी है। इसी तरह अनवर मिर्जापुरी का, ‘कैसे खेलहि कै भुसावन में कजरिया बदरिया घिरे आई न नदी, पानी सा रे गा सा रे म पा गा रे सा, ये राग तिलक का गीत है। इसी तरह राजस्थान के लोकगीत तो शास्त्रीय संगीत के बहुत करीब होते हैं। इसी तरह बॉलीवुड में भी कई फिल्मी गाने लोकगीत हैं।

बालविवाह पर लिखा कमला श्रीवास्तव ने लोकगीत

दस कै कन्या, साठ का दूल्हा रामा कैसे सपुरि, कच्ची कली फूल मुरझावा रामा कैसे सपुरि

अपनी बिटिया लाडो के संग न ही करो मनमानी, पहले खूब पढ़ावो ऐहमा करो न आनाकानी

श्रीलंका में 10 वर्ष तक किया शास्त्रीय संगीत को प्रमोट

कमला श्रीवास्तव ने दस वर्षों तक श्रीलंका में रहकर भारतीय शास्त्रीय का काफी प्रमोशन किया। वह बताती हैं कि जब मैं भातखंडे संगीत विद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर थी तो 10 साल तक बराबर श्रीलंका में शास्त्रीय संगीत का इम्तिहान लेने जाती थी। वहां के लोग भारतीय शास्त्रीय संगीत से बहुत लगाव रखते हैं। वहां के मंचों और रेडियो पर मैंने अपने लोकगीत सुनाए और उनके भी सुने।

पैरंट्स ने कभी रोक-टोक नहीं लगाई

कमला श्रीवास्तव लोकगायिका व शास्त्रीय संगीत की प्रोफेसर होने के साथ-साथ अभिनेत्री व पेंटर भी रह चुकी हैं। इसी के साथ वह खेलों में भी बेहद सक्रिय रही हैं। इस बारे में वह बताती हैं कि सभी मुझे सभी चीजों का शौक है। मैंने आकाशवाणी में लोकगीतों को गाने के साथ रेडियो पर एक्टिंग भी की है। इससे पहले स्कूलों में कई नाटकों में भाग किया। वहीं पेटिंग मेरी हॉबी है। मैं वॉश पेंटिंग करती हूं जिसमें मैंने 10-14 पेंटिंग बनाई लोगों को गिफ्ट कीं। किसी को बधाई देने के लिए भी पेंटिंग मुझे सबसे अच्छा गिफ्ट लगती हैं।

वहीं खेलों में मैंने हर तरह के खेल खेले हैं। मैं इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में बैडमिंटन चैंपियन में थी। इसके अलावा हर्डल व रेस में फर्स्ट आती थी, हाई जंप में भी अच्छा प्रदर्शन रहता था। इसका श्रेय मैं अपने पैरंट्स को दूंगी जिन्होंने कभी रोक-टोक नहीं लगाई और हमेशा सपोर्ट किया।

योगी जी से लोक संस्कृति को बढ़ावा देने की उम्मीद

नई सरकार पर कमला श्रीवास्तव कहती हैं कि सरकार से उम्मीदे हैं लेकिन खाली सरकार के करने से नहीं होगा,लोगों को भी आगे आना होगा। योगी जी संस्कृति से लगाव रहते हैं तो बढ़ावा देने की उम्मीद है।

      

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