इस ग्राम प्रधान ने आठ महीने में अपनी ग्राम पंचायत को बनाया नशामुक्त
Neetu Singh 16 April 2018 2:58 PM GMT

हिमाचल प्रदेश की इस बेटी ने मनरेगा में मजदूरी करके अपनी पढ़ाई के लिए पैसों का इंतजाम किया। हर दिन 20 किलोमीटर पैदल चलकर स्नातक की पढ़ाई पूरी की। 13 साल की उम्र से ही अपने आठ बीघे खेतों की बैंलों से जुताई करके खेती करती है। इसी बेटी ने 22 साल की उम्र में ग्राम प्रधान बनकर अपनी पंचायत का विकास करके देश और प्रदेश में ख़ास पहचान बनाई है। एक पत्रकार से ग्राम प्रधान बनने का सफर जबना चौहान (25 वर्ष) का बहुत की दिलचस्प है।
जबना की ख़ासियत यह है कि पढ़ाई करते हुए पार्ट टाइम पत्रकारिता करने लगीं। अपनी पंचायत और आसपास के क्षेत्र की समस्याओं को उठाती और उन्हें प्रशासन तक पहुंचातीं। जबना का यह काम इनकी ग्राम पंचायत के लोगों को खूब भाया। तभी तो इन्हें ग्राम प्रधान के चुनाव में न तो किसी को शराब पिलानी पड़ी और न ही पैसे खर्च करने पड़े। प्रचार के नाम पर जबना और इनके बुजुर्ग 85 साल के पिता ने घर-घर जाकर वोट मांगे। इनका भरोसा और मेहनत रंग लाई, जबना चार वोटों से जीत हासिल कर ग्राम प्रधान बनी।
जबना गाँव कनेक्शन संवाददाता को फ़ोन पर बताती हैं, "प्रधान बनने के आठ महीने बाद अपनी ग्राम पंचायत को नशा मुक्त करा दिया। हमारी पंचायत में कोई भी सार्वजनिक जगह पर नशा नहीं कर सकता। अगर कोई नशा करते पकड़ा गया तो उसे पांच हजार का जुर्माना, शादी-समारोह में जो नशा करवाएगा उसे दस हजार का जुर्माना देना पड़ता है।"
जबना आगे बताती हैं, "गाँव में कोई भी दुकानदार अपनी दुकान पर नशे का कोई भी सामान नहीं बेच सकता। हर वार्ड में एक महिला मंडल बनाया है जिसमें 20-25 सक्रिय महिलाएं हैं। इस महिला मंडल ने ही नशा करने वालों और बेचने वालों से वसूली की थी। पंचायत के विकास में महिला मंडल अपने वार्ड में हो रहे कामों की जिम्मेदारी खुद सम्भालती हैं।"
हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर थरजूण ग्राम पंचायत की जबना रहने वाली हैं। तीन हजार आबादी वाले इस पंचायत में छह गाँव आते हैं। इस पंचायत के हर घर में सूखा और गीला कूड़ा डालने के लिए दो कूड़ेदान रखवाए गये हैं।
गंदे पानी के निकासी के लिए नालियां बनाई गयी हैं। बाथरूम का पानी इधर-उधर न फैले इसके लिए 700 सोख्ता गढ्ढे बनवाए गये। महिला मंडल हर हफ़्ते अपने-अपने वार्ड की सफाई करती हैं। शराबबंदी और स्व्च्छता के क्षेत्र में ये ग्राम पंचायत आज किसी परिचय की मोहताज नहीं है। बेस्ट ग्राम प्रधान का अवार्ड जीतने वाली जबना को फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार ने भी अपनी फिल्म टॉयलेट- एक प्रेम कथा के प्रमोशन में बुलाकर सम्मानित किया था।
सरकार की हर योजना इस ग्राम पंचायत में
केंद्र और राज्य सरकार की जितनी भी सरकारी योजनाएं ग्राम पंचायत के लिए आती हैं जबना की कोशिश रहती है कि हर योजना का लाभ इनकी ग्राम पंचायत को जरुर मिले। जबना सभी सरकारी योजनाओं की जानकारी रखती हैं और पंचायत के पात्र व्यक्तियों तक उन योजनाओं को पहुंचाती हैं।
खुली बैठक में पंचायत के कार्यों पर होती है चर्चा
जबना अपनी ग्राम पंचायत में साल में चार खुली बैठकें करती हैं। विशेष जनरल हाउस कभी भी बुला लेती हैं। पंचायत मीटिंग और महिला मंडल की बैठक महीनें में दो बार करती हैं। बैठक में पंचायत के लोग विकास के जो कार्य बताते हैं जरूरत के हिसाब से उन्हें प्रमुखता दी जाती है।
महिला मंडल की थरजूण पंचायत में है अहम भूमिका
इस पंचायत के हर वार्ड में एक महिला मंडल है जो अपने वार्ड में हो रही गतिविधियों पर नजर रखता है। स्कूल में टीचर आ रहे या नहीं, कौन सी गली साफ़ नहीं है, पंचायत में महिलाओं और किशोरियों से जुड़े हर मुद्दे पर ये चर्चा करती हैं।
जबना ने अपनी पढ़ाई के लिए मनरेगा में की मजदूरी
जबना जिस क्षेत्र की रहने वाली हैं वहां लड़कियों की शादी बहुत कम उम्र में कर दी जाती है। गरीबी और स्कूल दूर होने की वजह से माता-पिता अपनी बेटियों को ज्यादा नहीं पढ़ा पाते हैं। जबना की पढ़ाई भी दसवीं के बाद बंद करवाई जा रही थी। जबना ने ज़िद करके बारहवीं की पढ़ाई पूरी की। स्नातक में पढ़ने के लिए जबना के पास पैसे नहीं थे। इन्होने डेढ़ महीनें मनरेगा में मजदूरी की, उन्हीं पैसों से स्नातक में दाखिला कराया। कॉलेज घर से 40 किलोमीटर दूर था, पैसों के अभाव में जबना 20 किलोमीटर हर दिन पैदल चलती और 20 किलोमीटर बस से जाती।
पढ़ाई बंद न हो इसके लिए पार्ट टाइम पत्रकार बन ख़बरें लिखने लगी
पैसे के अभाव में स्नातक की पढ़ाई बीच में ही बंद न हो इसके लिए जबना ने पार्टटाइम पत्रकार बन ख़बरें लिखने लगी, कुछ समय बाद न्यूज एंकर बन गयी। महीने के ढाई हजार रुपए कमा लेती थी जिससे जबना की पढ़ाई बाधित नहीं हुई। जबना के परिवार का राजनीति से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था। जबना बताती हैं, "मैंने आर्मी का टेस्ट भी क्लीयर किया था पर ज्वानिंग लेटर नहीं आया। कुछ करना है ये ठान लिया था, मैं अपनी पंचायत में गरीब घर की पहली बेटी थी जिसने 40 किलोमीटर जाकर स्नातक की पढ़ाई की हो।"
आठवीं कक्षा से ही हल जोतकर जबना खेती करती है
जबना दो बहनें और एक भाई है, पिता जी बुजुर्ग हैं जो कुछ कर नहीं सकते। बड़े भाई को आँखों से दिखाई नहीं देता, माँ हल चला नहीं पाती। घर का खर्चा कैसे चले इसके लिए जबना ने आठवीं कक्षा से ही हल जोतना शुरू कर दिया। जबना और इनकी छोटी बहन बीना चौहान ये दोनों आज भी हल जोतकर अपनी आठ बीघा की खेती खुद सम्भालती हैं।
बेटी के जन्म पर 11 पौधे लगाए जाते और ग्रीटिंग कार्ड दिया जाता
बेटी के जन्म पर इस पंचायत में ग्रीटिंग कार्ड दिए जाते और 11 पौधे लगाए जाते। गाँव में उत्सव मनाया जाता, सब एक साथ बैठकर खाना खाते। जिससे जिसके घर बेटी हुई है उसे खुशी हो। जबना अपनी पंचायत के साथ-साथ अपने जिले में भी महिलाओं और लड़कियों के लिए काम करना चाहती हैं इसके लिए इन्होंने अभी हाल में ही ओरियंटल फाउंडेशन नाम की एक गैर सरकारी संस्था का रजिस्ट्रेशन कराया है। अब ये पूरे जिले में अपने कामों को विस्तार देंगी।
जबना को मिल चुके हैं कई सम्मान
पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने जबना को बेस्ट प्रधान के लिए सम्मानित किया, स्वच्छता का अवार्ड भी इस ग्राम पंचायत को मिल चुका है। पिछले वर्ष अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर प्रधानमंत्री ने जबना को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। पंजाब सरकार भी इनके सराहनीय कार्यों के लिए इन्हें सम्मानित कर चुकी है। इंटरनेशनल कांफ्रेंस रांची में इन्हें उज्ज्वला योजना बेहतर तरीके से कैसे चल सकती है बतौर स्पीकर बुलाया गया। इस वर्ष महिला दिवस पर हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने 21 हजार रुपए देकर जबना को सम्मानित किया।
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