नोटबंदी के 50 दिन: ठंडा पड़ा गर्म रजाई का धंधा, मजदूरों की कम हुई मजदूरी

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
नोटबंदी के 50 दिन:  ठंडा पड़ा गर्म रजाई का धंधा, मजदूरों की कम हुई मजदूरीलखनऊ में अपनी दुकान में ग्राहकों का इंतजार करते चांद अली।

बसंत कुमार

लखनऊ। गोंडा के रहने वाले चाँद अली रजाई बेचने और रजाई भरने का काम करते हैं। नोटबंदी के बाद चाँद अली का काम ठप पड़ गया। अब जब रजाई बनवाने का समय खत्म हो रहा है तब तक चाँद अली ने सर्दी में कमाई के लिए जो पैसा लगाया था उसका मूलधन तक नहीं निकल पाया है।

लखनऊ में भरवारा क्रासिंग के पास कई वर्षों से जाड़े के दिनों मे रजाई भरने और रजाई बेचने का काम करने वाले चाँद अली बताते हैं, “नोटबंदी से पहले ही मैंने लगभग 40 हज़ार रुपए का माल खरीद लिया था, लेकिन अब तक सिर्फ 35 हज़ार की बिक्री हुई है। अब तक हमारा मूलधन ही नहीं निकला है। मुनाफा के बारे में तो हम सोच ही नहीं रहे है।”

राजधानी से 20 किलोमीटर दूर लौलाई गाँव में रजाई भरने का काम करने वाले जाबिर अली की स्थिति भी चाँद अली जैसी ही है। जाबिर अली बताते हैं, “जितना माल खरीदा था वहीं अब तक नहीं बिका है। लोग रजाई बनवाना चाहते हैं लेकिन ग्राहक के पास पैसे होंगे तभी तो खरीदेगा। नोटबंदी से बहुत नुकसान हो गया।”

नोटबंदी के दौरान दिहाड़ी मजदूरों को 50 दिनों में कई बार मुश्किल 25-30 दिन ही काम मिला है।

पचास दिन में सिर्फ 20-25 दिन काम मिला

नोटबंदी का असर बड़े-छोटे व्यापारियों के साथ मजदूरों पर भी पड़ा है। लखनऊ के जयपाल खेडा गाँव में एक भवन पर रंगाई का काम कर रहे दिनेश कुमार बताते हैं, “नोटबंदी के कारण काम मिलना बिलकुल बंद हो गया है। बीते पचास दिनों में 20 से 25 दिन ही हमें काम मिला है।” दिनेश आगे बताते हैं, “इन दिनों में पूरी मजदूरी भी नहीं मिली है। ठेकेदार खर्च के लिए 100-200 रुपए दे देते है और बाकी जब मजदूरी 2000 रुपए हो जाती है तब हमें 2000 का नोट पकड़ा देते है। मार्केट में 500 से कम का समान खरीदने पर 2000 हज़ार छूटे नहीं देते है।”

मजदूरी कम हो गई

मिस्त्री का काम करने वाले विपिन बताते हैं कि नोटबंदी के बाद सिर्फ काम मिलना ही बंद नहीं हुआ, काम कम मिलने के साथ-साथ मजदूरी भी कम हो गयी है। पहले जहाँ एक मजदूर को 350 रुपए मिलते थे नोटबंदी के बाद 300 रुपए मिलने लगे हैं। विपिन की बातों से इतफाक रखते हुए दिहाड़ी मजदूर अर्जुन बताते हैं, “काम कम मिलने के कारण हम कम पैसे में भी काम करने को मजबूर है। अगर काम नहीं करेंगे तो हमारा परिवार कैसे चलेगा।”

“कैशलेस व्यवस्था के लिए सरकार की कोई तैयारी नहीं”

जयपाल खेड़ा मे शिवराम धाम में लावारिस पशुओं की देखभाल करने वाले अनुराग मिश्रा बताते हैं, “नोटबंदी और उसके बाद सरकार द्वारा पैसे निकालने की लिमिट तय करने के कारण हमें पशुओं के लिए चारा लाने में दिक्कत हो रही है। हमारे यहाँ 55 गायें-भैसें हैं। उनके लिए हमें हरा चारा, चोकर आदि खरीदना होता है, जिसमें हमें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।”

अनुराग आगे कहते हैं, “सरकार देश को कैशलेस बनाना चाहती है, लेकिन कैशलेस व्यवस्था के लिए सरकार द्वारा कोई तैयारी नहीं की गई है। अभी भी बड़े-बड़े दुकानदारों के पास स्वैप मशीन नहीं है। सरकार ने यह फैसला जल्दबाजी में लिया जिसके चलते आम लोगों को काफी तकलीफों से गुजरना पड़ा और अभी भी गुजरना पड़ रहा है।”

   

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.