यूपी में भी एक ऐसा गाँव जहां लोग घरों में नहीं लगाते दरवाजे

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यूपी में भी एक ऐसा गाँव जहां लोग घरों में नहीं लगाते दरवाजेगाँव का एक घर

प्रतापगढ़। महाराष्ट्र का शनि सिंगनापुर गाँव इस बात के लिए प्रसिद्ध है कि वहां किसी भी घर में दरवाज़ा नहीं है। यूपी में भी एक ऐसा गाँव जहां आज भी एक से बढ़कर एक आलीशान घरों में लोगों ने दरवाजे नहीं लगवाए हैं। लोक परम्परा की तरह इस प्रथा का निर्वहन कर रहें हैं। इसे अन्धविश्वास कहें या फिर कुछ और...।

जनपद प्रतापगढ़ की तहसील पट्टी में एक ऐसा गाँव है जहां लोग अपने घर के मुख्य द्वार पर दरवाजा नहीं लगाते। इसके बारे में ग्रामीणों का कहना है कि यदि किसी ने दरवाजा लगा दिया तो वह किसी न किसी रोग में ग्रसित हो जायेगा, जिससे उसकी वंश वृद्धि रुक जायेगी और आर्थिक क्षति होगी।

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इस सम्बन्ध में विजय नरायण मिश्र (66 वर्ष) सेवानिवृत्त रानी सूर्य किशोरी देवी इण्टर कॉलेज, उडैयाडीह का कहना है, ''1908 में उनके पूर्वज मनबोध मिश्र जिन्होनें गाँव के बाहर जंगल में मकान बनवाकर मुख्य द्वार पर दरवाजा लगवा दिया था। जिसके परिणाम स्वरूप उनके बाबा के भाई और पिता असमय काल के गाल में समा गये। घर के अन्दर रखे अनाज में पानी घुस गया जिससे परिवार भुखमरी की कगार पर पहुंच गया। जिससे क्षुब्ध होकर घर की महिलाओं ने घर में लगे दरवाजे को उखाड़कर फेंक दिया।"


सूड़ेमऊ के ही बेनी शंकर मिश्र का कहना है, ''सूड़ेमऊ में अधिकांश मिश्रा परिवार उत्तर प्रदेश के जनपद बस्ती से प्रतापगढ़ में नेवासा के रूप में रह रहे हैं। एक किंवदन्ती के अनुसार एक बार घर के मुख्य दरवाजे पर लगी शाह-चौखट के बीच एक नागिन बैठी थी, जो दरवाजा बन्द होने पर उसमें दबकर घायल हो गयी। उसने घायलावस्था में मनुष्य की आवाज में कहा कि अब जो भी अपने मुख्य द्वार पर दरवाजा लगायेगा, उसका सर्वनाश हो जायेगा। तब से यह प्रचलन चला आ रहा है।"

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जनपद बस्ती के बालाडीह गाँव के लोग जहां भी जाकर बसते हैं, वे अपने नवनिर्मित मकानों में लकड़ी या लोहे का दरवाजा नहीं लगाते हैं। बाँस के फट्टों का लगा सकते हैं। बेनी प्रसाद का कहना है, ''ब्रिटिश शासनकाल में स्व. शिवमूर्ति मिश्र हवलदार थे। उन्होंने परिवार से बगावत कर अपने घर में लोहें का जंगला लगवा दिया। स्व. मिश्र चार भाई थे जिसमें तीन बे-औलाद रहे। एक ने घर छोड़ दिया तो उनको एक लड़का हुआ।"

आशीष मिश्र (25 वर्ष) ज्योतिश वास्तु शास्त्र ने बताया, ''बालाडीह बस्ती से जुड़े हुए खानदान के लोग चाहे जितना शानदार घर बनाये उन्हें मुख्य द्वार पर दरवाजा नहीं लगाना है। यदि लगा दिया तो परिवार में मुसीबत आना तय है।" आशीष से जब यह पूछा गया कि आप पढ़े लिखे होकर भी इन अंधविश्वास पर भरोसा करते हैं तो उनका कहना था, ''यह अंधविश्वास नहीं सत्य है। इस पर कई सत्य घटनाओं का उदाहरण है।"

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बालाडीह गाँव के ही तारा शंकर मिश्र (45 वर्ष) का कहना है, ''हमारे गाँव के शंकर पुत्र राम राज मिश्र भुसावल रेलवे में गार्ड थे। वहां जमीन लेकर मकान बनवाया किन्तु परिवार के विनाश के डर से मुख्य द्वार पर दरवाजा नहीं लगाया।" इसी गाँव की बुजुर्ग महिला कस्तूरबा (65 वर्ष) का कहना है, ''जब से ब्याह कर आये हैं तब से आज तक यहां के मिश्र खानदान में चाहे वो बस्ती से आये हों या यहाँ के मूलनिवासी हों, किसी के घर के मुख्य द्वार पर दरवाजा लगा नहीं मिला।"

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यहीं के वयोवृद्ध आचार्य कमलाकान्त मिश्र बताते हैं, ''श्रीधर तिवारी ग्राम पंचायत विकास अधिकारी के बाबा स्व. गयादीन ने अपने घर के मुख्य द्वार पर दरवाजा लगाने के लिए मिस्त्री बुलाकर दरवाजा तैयार करा दिया, जिस दिन दरवाजा लगना था उसी दिन उनके पैरों में जोरदार असहनीय दर्द उठा। जिससे सहम कर उन्होंने दरवाजा लगाने की योजना स्थगित कर दी, तब जाकर उनके पैर का दर्द ठीक हो सका।

गाँव के सबसे बुजुर्ग प्रताप नरायण मिश्र का कहना है, ''हमारे गाँव के लिए मुख्य द्वार पर दरवाजा पूरी तरह वर्जित है। इस पर एक घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि ग्राम कुकुवार जो पट्टी तहसील के अन्तर्गत ही है वहां शारदा प्रसाद मिश्र ने अपने मुख्य द्वार पर दरवाजा लगा दिया, दरवाजा लगते ही दूसरे दिन उन्हें लकवा मार गया जिससे वो विकलांग हो गये।" इस गांव से दूसरे शहर में जाकर अपना मकान बनाने पर भी लोग मुख्य द्वार पर दरवाजा नहीं लगा रहे हैं।

रिपोर्टर - मेहताब खान

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