ज्य़ादा पशु डॉक्टर हों, ज्य़ादा चिकित्सालय

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ज्य़ादा पशु डॉक्टर हों, ज्य़ादा चिकित्सालयगाँव कनेक्शन

लखनऊ। भले ही भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है लेकिन देश में श्वेत क्रांति लाने के लिए ग्रामीण स्तर पर पशुधन विकास के लिए तैनात किए गए कर्मचारियों की संख्या बहुत कम है। देश भले ही दुग्ध उत्पादकता में आगे बढ़ रहा हो लेकिन सुविधाओं के अभाव में पशुधन की गुणवत्ता लगातार कम होती जा रही है इसके लिए सरकार को आगे आना होना होगा। केन्द्रीय पशुपालन विभाग के अनुसार देश की 30 करोड़ गाय-भैंसों में से लगभग 70 फीसदी बहुत कम आय वाले परिवारों के पास हैं। देश के दुग्ध उत्पादन का लगभग 80 फीसदी हिस्सा इन्हीं छोटे परिवारों से आता है। 

पशु चिकित्सकों से हो ग्राम प्रधानों का तालमेल

चिकित्सालयों का समय सुबह 9.30 से दोपहर दो बजे है। डॉक्टर कब आते है कब जाते है इसका कोई भी पता नहीं लगा पाता है। पशुपालन विभाग से अभी पशुचिकित्सकों की उपस्थिति की जांच करने के लिए रजिस्टर उपलब्ध है पर उस रजिस्टर पर उपस्थिति दर्ज करने की निगरानी के लिए कोई नहीं है। ऐसे में गाँव कनेक्शन का यह सुझाव है कि हर पशुचिकित्सक को अपने पास के गाँव के प्रधान को आने-जाने से पहले सूचित करना चाहिए। ताकि अगर किसी पशुपालक का पशु अचानक बीमार हो तो वो झोला-झाप डॉक्टर का सहारा न लेकर सरकारी पशुचिकित्सालय से इलाज कराएं अथवा केन्द्रों में बॉयोमीट्रिक व्यवस्था सुनिश्चित कराई जानी चाहिए। पशुपालकों की सबसे बड़ी समस्या है सरकारी डॉक्टरों का न मिलना। शाहजहांपुर जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर कांट ब्लॉक के कुररौली गाँव के राम परवेश यादव बताते हैं, ''गर्रा नदी दूषित होने से गाँव में किसी न किसी का पशु बीमार पड़ता है ऐसे में जब हम डॉक्टर को फोन करते है तो वो मना नहीं करते है पर आ रहे, कह के टाल देते है और आते नहीं है। इसलिए हमें ज्यादा पैसे देकर इलाज कराना पड़ता है।" यह समस्या पूरे प्रदेश में लगभग सभी पशुपालक के साथ है। 

पशु डाक्टरों को अतिरिक्त कार्यों से मुक्त किया जाए 

चुनाव, राशन कार्ड का सत्यापन व विकास कार्यों के सत्यापन जैसे कार्यों में डॉक्टरों से लेकर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की ड्यूटी लगा दी जाती है। इन सब कार्यों के बजाय पशुपालकों को पशुओं से सम्बंधित समस्याओं को दूर करने के लिए जागरूक करें।

कर्मचारियों की कमी को दूर किया जाए

प्रदेश में डॉक्टरों, फार्मासिस्ट और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की काफी कमी है, पशुपालकों की बहुत सारी समस्याएं नियुक्ति से व आउटसोर्सिंग से  दूर हो सकती है।

प्रदेश  में पशु चिकित्सालयों की संख्या बढ़ाई जाए

पशु चिकित्सालय खोले जाएं, अस्पताल दूर होने के चलते अपने पशुओं को अप्रशिक्षित डॉक्टरों को दिखाते इसको रोक जा सकेगा, और वे सरकारी सुविधाओं का लाभ उठा सकेंगे।

गर्भाधान, निजी व सरकारी केंद्रों की हो सहभागिता

सरकारी कृत्रिम गर्भाधान केंद्र पर पशुपालकों को कभी सीमन की कमी और कभी डॉक्टर न मिल पाने से पशुपालकों का रुख निजी गर्भाधान केंद्रो पर हो रहा है। ऐसे में अगर सरकार निजी केंद्रों को बढ़ावा दे तो समय पर और उच्च गुणवत्ता वाले सीमन पशुपालकों को मिल सकेगा।

पशुपालकों को जागरूक किया जाए

चुनाव कार्य, राशन कार्ड का सत्यापन व विकास कार्यों का सत्यापन जैसे कई कार्यों में डॉक्टरों से लेकर चुतर्थ श्रेणी कर्मचारियों की ड्यूटी लगा दी जाती है। गाँव कनेक्शन का यह सुझाव है कि इन सब कार्यों के बजाय पशुपालकों को पशुओं से सम्बंधित समस्याओं को दूर करने के लिए जागरूक करें। बरेली जिले के इज्जतनगर स्थित भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान के पशु पोषण विभाग के वरिष्ठï वैज्ञानिक डॉ पुतान सिंह बताते हैं, ''जो छोटे पशुपालक है उनमें जानकारी का काफी अभाव है। पशुओं को इंफेक्शन से होने वाली बीमारियां जो पशुपालक अपने स्तर से ठीक कर सकता है उसकी जानकारी देनी चाहिए। छोटे पशुपालक अपने पशुओं के खाने-पीने से संबधित जानकारी दी जानी चाहिए।"

फार्मासिस्ट व चतुर्थ श्रेणी कर्मियों की भर्ती की जाए 

पशुचिकित्सालय में एक डॉक्टर, एक फार्मासिस्ट और दो चतुर्थ श्रेणी इतना स्टाफ होता है और पशु सेवा केंद्र में एक पशुधन प्रसार अधिकारी होना अपेक्षित है पर वर्तमान समय में अगर देखे तो किसी केंद्र में डॉक्टर है तो फार्मासिस्ट नहीं अगर फार्मासिस्ट है तो चतुर्थ श्रेणी स्टाफ मौजूद नहीं है, जिससे पशुपालकों को समस्या होती है। ऐसे में गाँव कनेक्शन का यह सुझाव है किडॉक्टरों, फार्मासिस्ट और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की नियुक्ति की जानी चाहिए। पीलीभीत के पशुचिकित्साधिकारी डॉ एसके. राठौर बताते हैं, "स्टाफ की कमी से हम लोगों के सामने समस्या आती है क्योंकि कहीं पर डॉक्टर के साथ चतुर्थ श्रेणी का स्टाफ होता है तो अगर किसी पशु को देखने जाना है तो हम चतुर्थ श्रेणी के ऊपर कार्यालय नहीं छोड़ सकते है।" 

कृत्रिम गर्भाधान केंद्रों की मरम्मत के लिए बढ़ाया जाए बजट

उत्तर प्रदेश पशुपालन विभाग की वेबसाइट से उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में 2,200 पशुचिकित्सालय, 2,575 पशुसेवा केंद्र और 5,043 कृत्रिम गर्भाधान केंद्र है पर इन केंद्रों को जाकर देखे तो कुछ की ही स्थिति ठीक मिलेगी। दाएं में लगी जिस तस्वीर को आप देख रहे है वो प्रतापगढ़ के दक्षिण दिशा में 20 किलोमीटर दूर शिवगढ़ ब्लॉक के देल्हूपुर गाँव में पशुसेवा केंद्र की है कुछ वर्षों से यह सेवा केंद्र बंद चल रहा है। दरवाजे, खिड़कियां तो गायब हो गए है और चारों तरफ बड़ी-बड़ी घास उगी हुई है। ऐसे मे गाँव कनेक्शन का यह सुझाव है कि, विभाग का वर्तमान बजट बढ़ाया जाए, जिससे केंद्रों की मरम्मत हो। जब जर्जर स्थिति में पड़े केंद्रों के बारे में पशुपालन विभाग के निदेशक डॉ राजेश वाष्र्णेय से बात की तो उन्होंने बताया,''पिछले साल 297 करोड़ बजट आया था इतने कम बजट में सभी कार्य नहीं किए जा सकते है। एक हजार करोड़ रुपए का बजट आए, जिससे हम सभी केंद्रों की मरम्मत करा सके इससे पशुपालकों के हित में और भी कार्य किए जा सकते हैं।"

पांच ग्राम पंचायतों के बीच हो एक पशुचिकित्सालय

राष्ट्रीय कृषि आयोग के अनुसार 5,000 पशुओं पर एक पशु चिकित्सालय को होना चाहिए जबकि वर्तमान समय में प्रदेश में 21,000 पशुओं पर एक चिकित्सालय उपलब्ध है। ऐसे में गाँव कनेक्शन का सुझाव है कि पशु चिकित्सालय खोले जाएं ताकि जो पशुपालक अस्पताल दूर होने के कारण अपने पशुओं को झोला-झाप डॉक्टरों को दिखाते इसको रोक जा सके और वे सरकारी सुविधाओं का लाभ उठा सकें।

हर पंचायत में बने दूध संग्रहण केन्द्र

संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (एफ एओ) की 2013-14 की रिपोर्ट के अनुसार अंतरराष्ट्रीय दुग्ध व्यापार में भारत में सबसे ज़्यादा 21.7 करोड़ दूध उपभोक्ता हैं। देश में हर वर्ष औसतन 13 करोड़ टन दूध उत्पादन होता है। लेकिन रखरखाव के अभाव में इस मात्रा का एक चौथाई हिस्सा खराब या इस्तेमाल करने लायक नहीं होता है। इस समस्या को दूर करने के लिए दूध को एकत्रित करने के लिए संग्रहण केंद्र बनाए जाएं ताकि शहरों तक दूध लाने में पशुपालकों को जो समस्या होती वह दूर हो सके। देश में सालाना 10 लाख से ज़्यादा लोग अशुद्ध डेयरी उत्पादों के संक्रमण से बीमार पड़ते हैं। इसका मुख्य कारण डेयरी उत्पादों का खराब भंडारण व वितरण है।

 

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