समय पर पैसे न मिलने और नकदी की कमी से मनरेगा सुस्त

Swati ShuklaSwati Shukla   5 Jan 2017 12:58 PM GMT

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समय पर पैसे न मिलने और नकदी की कमी से मनरेगा सुस्त10 साल के कार्यकाल में मनरेगा ने करोड़ों मजदूरों को दिया है रोजगार।

स्वाती शुक्ला (स्वयं डेस्क)

समय पर पैसा न मिलने की वजह से मनरेगा मजदूर काम छोड़ रहे हैं। गाँव कनेक्शन ने लखनऊ, बलिया, हरदोई और बाराबंकी में सम्बंधित अधिकारियों और प्रधानों से बात की जिन्होंने माना कि पैसा न मिलने के कारण काम प्रभावित हो रहा है।

लखनऊ

जिला मुख्यालय से 38 किलोमीटर दूर अरम्बा गाँव के प्रधान राजेन्द्र कुमार बताते हैं, “अगस्त और जुलाई महीने में काम कराया था, जिसका पैसा अब मिला है। मनरेगा का काम बीच में बन्द कराना पड़ा क्योंकि पैसा नहीं मिला रहा था। नियम के अनुसार मनरेगा मजदूरों को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराना है लेकिन पैसा न आने के कारण 40 से 50 दिन का काम ही मिला है सत्र पूरा होने वाला है।”

पिछले दस वर्षों में इस योजना पर प्रदेश में पचास हजार करोड़ से अधिक रुपए खर्च किए गए और 27 करोड़ लोगों को मनरेगा के तहत रोजगार उपलब्ध कराया गया। जहां सभी तबके के लोग शामिल रहे। रोजगार पाने वालों में 19.6 प्रतिशत दलित व 15.22 फीसदी आदिवासी परिवार के सदस्य भी शामिल हैं। यही नहीं आधी आबादी यानी महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने पर भी इस योजना में खास ध्यान रखा गया। मनरेगा में महिलाओं को सबल बनाने के लिए रोजगार के अच्छे अवसर उपलब्ध कराए गए और उनमें समानता का भाव बढ़ाया गया। इस योजना में अब तक 2.10 करोड़ ग्रामीण परिवारों को रोजगार प्रदान किया गया है।

अपने दस साल के सफर में मनरेगा ने दिहाड़ी रोजगार के जरिए ग्रामीण परिवारों की आजीविका सुरक्षा को बढ़ावा देने के साथ ही ग्रामीण सशक्तिकरण के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इस कानून के तहत ग्रामीण आय को बढ़ाने में भी मदद मिली है। रोजगार की तलाश में सैकड़ों किलोमीटर का सफर करने वालों को मनरेगा में अब पांच किलोमीटर के दायरे में ही आसानी से काम मिल जाता है। पैतृक स्थान पर रहते हुए मनरेगा मजदूर 161 रुपए प्रतिदिन कमा लेता है। वहीं किन्हीं परिस्थितियों में अगर जॉबकार्ड धारकों को गाँव से दूर जाकर काम करना पड़ता है तो उसे दस प्रतिशत अलग से भुगतान किया जाता है। 2014 के वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट में विश्वबैंक ने भी मनरेगा की तारीफ करते हुए उसे ग्रामीण क्षेत्र में विकास का बेहतरीन उदाहरण बताया था।

बलिया

बलिया जिला मुख्यालय से 27 किलोमीटर दूर रक्तसर ग्राम पंचायत कि प्रधान होने के साथ-साथ प्रधानसंघ की अध्यक्ष स्मृति सिंह बताती हैं, “हम लोगों को पहले से पता था कि मनरेगा का पैसा नहीं आ रहा है। इसलिए मनरेगा का काम करवाना बन्द कर दिया। बहुत से प्रधानों ने काम नहीं करवाया क्योंकि काम करने के बाद पैसा समय पर नहीं दिया तो वोट खराब होंगे। अपने वोट कौन खराब करना चाहता है। मैंने अपने गाँव में सिंर्फ एक काम करवाया, जिसका पैसा चार महीने में आदा कर पाए।

हरदोई

हरदोई जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर भरावन गाँव के प्रधान सुधीर कुमार पाण्डेय (34 वर्ष) बताते हैं, “मेरे गाँव में मनरेगा मजदूर काम नहीं करना चाहते क्योंकि समय पर पैसा नहीं मिलता। नोट बन्दी से इसका कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि पैसा मई से नहीं मिला है, रोज मजदूर अपने पैसों की मांग कर रहे हैं। हम प्रधान हैं कहां से इतना पैसा लेकर आएं।”

बाराबंकी

बाराबंकी जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर बबुरी गाँव में रहने वाले रमेश चन्द्र यादव (55 वर्ष) बताते हैं, ‘’तीन साल से इस गाँव का विकास हो रहा है पर बहुत दिनों से पैसा नहीं मिल रहा है। छोटी-मोटी समस्या का निराकरण कर दिया जाता है। मनरेगा का काम इस समय न के बराबर है।” बाराबंकी जिला ग्राम्य विकास अधिकारी बताते हैं, “बहुत से गाँव में लोहिया कालोनियां तैयार की गई हैं। सड़क निमार्ण, तालाब बनवाने का कार्य तो किया पर पैसा अभी तक नहीं मिला।”

मनरेगा में महिलाओं को सबल बनाने के लिए रोजगार के अच्छे अवसर उपलब्ध कराए गए और उनमें समानता का भाव बढ़ाया गया।

महिलाओं की बढ़ी भागीदारी

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना यानी मनरेगा ने महिलाओं के लिए भी रोजगार के अवसर पैदा किए हैं। मनरेगा से महिलाओं के जीवनस्तर में भी सुधार आया है। बाराबंकी जिले के फतेहपुर ब्लाक के गाँव बिशनपुर में रहने वाली जमुना देवी गाँव में धाई मां का काम करती थीं। वह बताती हैं, “जो काम हम पहिले करित रहे, वह काम अब धीरे-धीरे अस्पताल में होए लाग है। लोग अब डॉक्टर के पास जाए लगे हैं। अइसे में हमरे पास काम नहीं बचा। एक दिन परधान जी मनरेगा में काम की बात बताइन और हमार कार्ड बनवा दिहिन। तबसे अब हमका गाँव मा ही काम मिल जात है और नोन, रोटी, दवा की खातिर पैसा भी मिल जात है।” जमुनादेवी आगे बताती हैं, “पिछले बरस सौ दिन का काम मिला रहा। अबकी तालाब खुदवाई का नवा काम शुरू हुआ है जहां हम सात दिन से काम कर रहेन है। जहां हमारे गाँव की बहुत सी औरतें काम करती हैं। ये तालाब कई दिन से बन रहा है, तालाब हमारे घर के पास है दोनों लोग यहां काम कर रहे हैं। अब रोज शाम चूल्हा जलता है। दो बच्चे हैं जो सरकारी स्कूल में पढ़ने जाते हैं। एक लोग कमाई का पैसा खत्म करते हैं एक लोग बचा लेते हैं।” जमुनादेवी की तरह ही प्रदेश में वर्ष 2015-2016 में 1473737 महिलाओं को मनरेगा के तहत काम उपलब्ध कराया गया है।

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This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

   

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