एक गांव ऐसा भी : रालेगण सिद्धि जिसे दुनिया अन्ना के गांव के नाम से जानती है
Anusha Mishra 20 Sep 2017 3:17 PM GMT
भारत गांव में बसता है लेकिन देश के ज्यादातर गांवों की हालत बेहतर नहीं हैं और मूलभूस सुविधाओं से महरूम हैं, लेकिन कुछ गांव ऐसे हैं जिन्होंने उन्हीं संसाधनों में ऐसा काम किया है कि दुनियाभर में उनका नाम हो गया है। ऐसा ही एक गांव है रालेगण सिद्धि
लखनऊ। भारत गाँवों में बसता है। गाँवों में जब तक शहरों जैसी सुविधाएं विकसित नहीं की जाएंगी, तब तक समग्र भारत का विकास नहीं होगा। गाँवों को लेकर यह अवधारणा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की थी, जिसे आज भी पूरी तरह से आत्मसात नहीं किया गया है।
लेकिन आज हमारे देश में एक गाँव ऐसा हैं, जो पंचायती राज के तहत बेहतरीन तरीके से विकसित किया गया है। यह गाँव उदाहरण है आदर्श गाँव का। तमाम सरकारी योजनाओं का सदुपयोग करके, पर्यावरण संरक्षण की ओर ध्यान देकर और आधुनिक सुविधाओं को समाहित कर इस गाँव को आदर्श गाँव बनाया गया है। किस तरह पेड़ों और हरियाली के इर्द-गिर्द एक सामाजिक आर्थिक विकास का मॉडल खड़ा किया जा सकता है, वह कोई भी इस गाँवों से सीख सकता है।
महाराष्ट्र में अहमद नगर जिले के पारनेर तालुका का रालेगण सिद्धि दुनिया भर में जाना जाता है। कुछ दशक पहले तक ये भी महाराष्ट्र के हजारों गाँवों की तरह बूंद-बूंद के लिए तरस रहा था, लेकिन अब ये दूसरों के आगे उदाहरण है। दुनिया इसे अन्ना के गाँव के नाम भी जानती है।
महाराष्ट्र के ज्यादातर गाँवों की तरह इस गाँव में भी बारिश बहुत कम होती है, लेकिन यहां वृक्षों की पंक्तियां हैं, फलों के बागान हैं, फसलों से खेत लहलहाते हैं। ऐसा लगता है जैसे रेगिस्तान के बीच हरियाली की खूबसूरत छटा बिखर रही है।
इस गाँव के आश्चर्यजनक बदलाव का श्रेय जाता है सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे को। जब अन्ना हजारे फौज में थे तो दो बार वह मरते-मरते बचे। इसके बाद उन्होंने सोचा कि मेरे जीवन का कोई भरोसा नहीं है इसलिए मैं अपनी बची हुई जिंदगी को जनता की सेवा में लगाऊंगा और जनता की सेवा करने का यह सफर उन्होंने रालेगण सिद्धी से शुरु किया।
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रालेगण सिद्धी अकाल पीड़ित गाँव था और यहां पूरे साल में सिर्फ 10-12 इंच वर्षा होती है और जितनी भी बारिश होती थी उसका सारा पानी बह जाता था क्योंकि पानी की रोकथाम के कोई उपाय नहीं थे। 1975 में यहां अकाल पड़ा था। दरअसल, जिस बांध से गांव में पानी आता था उसमें दरार पड़ गई थी जिससे गांव को पानी बिल्कुल नहीं मिल पाया। 1976-77 तक इस गांव में आलम यह था कि 15 से 20 फीसदी लोग एक समय का खाना खाकर ही दिन काट रहे थे। 55 से 60 प्रतिशत लोग ऐसे थे जो बाहर से अनाज लेकर खाना खाते थे। यहां के ज्यादातर लोग शराब की लत में घिरे हुए थे और गांव शराब की भट्टियों के लिए बदनाम था।
बदल दी गांव की सूरत
इस गांव में बारिश का पानी रोकने के लिए कोई उपाय नहीं था जिस पर अन्ना ने सबसे पहले काम शुरू किया। उन्होंने इसकी रोकथाम के लिए सीढ़ीदार खेत बनवाए, पौधारोपण किया, यहां 45 नाले और एक नहर बनवाई। जगह-जगह छोटे-छोटे बंध बनाए गए जिससे बारिश का पानी बहने के बजाय जमीन में समा गया और उपजाऊ मिट्टी का क्षरण भी बंद हो गया। गांव में बिजली लाने के लिए पवन चक्की, सौर ऊर्जा और बायोगैस का इस्तेमाल किया गया।
यहां अब 24 घंटे बिजली रहती है। गांव में एक अनाज और दूध बैंक भी बनाया गया है। जहां अनाज और दूध इकट्ठा किया जाता है और फिर शहर की बाजार में बेचा जाता है। कहा जाता है, इस गांव के लोग अधिकारियों के पास नहीं अधिकारी और सरकार उनके गांव चलकर आते हैं।
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