झारखंड की आदिवासी महिलाएं सौर ऊर्जा से कर रहीं अपने ख्वाबों को रोशन

Anusha MishraAnusha Mishra   14 April 2017 3:54 PM GMT

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झारखंड की आदिवासी महिलाएं सौर ऊर्जा से कर रहीं अपने ख्वाबों को रोशनसौर ऊर्जा चलित धान छीलने वाली मशीन पर काम करतीं आदिवासी महिलाएं

झारखंड के गुमला जिले के फोरी पंचायत क्षेत्र में 144 घरों का एक आदिवासी गांव है पासंगा। इस छोटे से गांव में एक साल में 576 टन धान का उत्पादन होता है जिसमें से 190 टन धान यहां के लोग अपने उपभोग के लिए रखते हैं और बाकी का 6 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिचौलिए को बेच देते हैं। इन किसानों के पास अपने माल को बेचने का और कोई दूसरा साधन या रास्ता नहीं है।

लेकिन हाल ही में ग्रामीण क्षेत्रों में सौर विद्युतीकरण के जरिए खेतों में काम करने वाली एक संस्था, म्लिंडा फाउंडेशन के रूप में इन आदिवासी किसानों को एक सहारा मिला है। इस संस्था ने पांच आदिवासी महिलाओं को सौर ऊर्जा चलित चावल छीलने वाली मशीन उपलब्ध कराई है जिससे महिलाएं धान से चावल निकालने का उद्यम स्थापित कर सकें।

ये महिलाएं 60 प्रतिशत धान से स्वयं ही चावल निकाल लेती हैं जो इससे पहले मजबूरी में बिचौलियों को बेच दिया जाता था। यह ताजा चावल बाजार में धान के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा कीमत में बिक रहा है। म्लिंडा फाउंडेशन की डिप्टी डायरेक्टर सुदेशना मुखर्जी बताती हैं कि यही नहीं धान से चावल बनाने के दौरान जो भूसी निकलती है वह भी बाजार में बेचकर ये महिलाएं पैसे कमा लेती हैं।

बीते वर्ष सितंबर से 5 महिलाओं के इस समूह ने काम करना शुरू किया है और अब इस समूह की हर सदस्य महीने में 6000 से 7000 रुपये कमा लेती है।
सुदेशना मुखर्जी, डिप्टी डायरेक्टर, म्लिंडा फाउंडेशन

म्लिंडा फाउंडेशन नवीकरणीय ऊर्जा से चलने वाले रोजगारों की दिशा में साल 2005 से काम कर रहा है। इस संस्था का वैश्विक हेडक्वार्टर पेरिस में है और भारत में इसने 2011 से काम करना शुरू किया है। म्लिंडा फाउंडेशन ने नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई), द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (टीईआरआई) व राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के साथ कुछ ओपन सोर्स क्लीन-ऊर्जा परियोजनाएं, जिनका उद्देश्य ससौर ऊर्जा को बढ़ाना है, पर पार्टनरशिप भी की है।

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