जब फ्रिज नहीं हुआ करते थे, लोग घड़ों में रखा पानी पीते थे ...
मिट्टी के ये बर्तन चलन से बाहर क्यों हो गए, इनका इस्तेमाल अब गिनती के लोग क्यों करते हैं ? मिट्टी के कलश अब नवरात्र समेत कुछ पूजा-पाठ और शादी ब्याह में ही नजर आते हैं।
Ashwani Kumar Dwivedi 12 April 2019 6:24 AM GMT
लखनऊ। जब फ्रीज नहीं हुआ करते थे, लोग घड़ों में रखा पानी पीते थे, ये न सिर्फ ठंडा होता था बल्कि इसका स्वाद भी कई गुना बेहतर होता था। लेकिन जैसे-जैसे मशीनरी हमारे घरों में आने लगी देसी फ्रीज कहे जाने वाले मटके, घड़े सुराही गायब हो गए। हमारी आप की उम्र के लोगों ने बचत का पहला तरीका भी मिट्टी की गुल्लक से सीखा होगा। लेकिन मिट्टी के ये बर्तन धीरे-धीरे कुछ साल पहले चलन से बाहर हो गए।
लेकिन कभी आपने कभी गौर किया है, मिट्टी के ये बर्तन चलन से बाहर क्यों हो गए, इनका इस्तेमाल अब गिनती के लोग क्यों करते हैं ? मिट्टी के कलश अब नवरात्र समेत कुछ पूजा-पाठ और शादी ब्याह में ही नजर आते हैं।
मिट्टी के बर्तन बनाने वालों की जिन्दगी को नजदीक से जानने के लिए गाँव कनेक्शन टीम ने जब लखनऊ जनपद का दौरा किया तो यात्रा का पहला चरण बेहद मायूस करने वाला था। अधिकांश गांवों में कुम्हार के चाक का घूमता पहिया थम चुका है। कभी अपनी तेज गति पर इतराने वाले चाक कही हाते (घर के बाहर का आंगन )में कोने में पड़े मिले तो कहीं भूसे की कोठरी में। लखनऊ की तराई में बसे गाँव अकड़रिया कलां के जंगली कुम्हार करीब एक दशक पहले ही पैतृक काम छोड़ शहर में चाट बेचते हैं। जंगली कुम्हार बताते हैं, " बहुत मेहनत का काम था, पिताजी करते थे उस समय सहालग (शादी ,ब्याह ,त्यौहार )में अच्छा काम मिलता था। साथ ही पैसे और जिसके यहाँ शादी हो इज्जत के साथ खाना भी मिलता था ,लेकिन धीरे धीरे समाज का नजरिया हमारे काम को लेकर बदलने लगा और कुल्हड़ की जगह फाइबर के सस्ते गिलास मार्केट में आ गये। अब तो हमलोग खुद शादी बारात में फाइबर के गिलास और पत्तल प्रयोग करते है।"
पूरे परिवार के साथ मिट्टी का काम करता हूँ दूसरो की मजदूरी करने से ये बेहतर है ..
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