भोपाल गैस हादसे के 35 साल: 'जो मर गए वो बेहतर थे, हम तो मर-मर के जी रहे हैं'

"डॉक्टरों का कहना है कि यह जहर सात पुश्तों तक रहेगा। जब हम में ही जहर भरा है तो बच्चे कहां से अच्छे होंगे, उनमें भी जहर पहुंचेगा"

Manish MishraManish Mishra   3 Dec 2019 6:12 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo

भोपाल (मध्य प्रदेश)। यूनियन कार्बाइड से निकली जहरीली गैस आज 35 साल बाद भी पैदा होने वाले बच्चों पर असर डाल रही है। पैदा होते ही दवाई के भरोसे जीने लगते हैं।

"डॉक्टरों का कहना है कि यह जहर सात पुश्तों तक रहेगा। जब हम में ही जहर भरा है तो बच्चे कहां से अच्छे होंगे, उनमें भी जहर पहुंचेगा, "भोपाल गैस कांड पीड़ित लीला बाई शर्मा ने बताया।


लीलाबाई शर्मा की ही तरह भोपाल गैस कांड में पीड़ित हजारों महिलाएं आज भी कई बीमारियों से जूझ रही हैं। उस समय बहुत लोगों का गर्भपात हो गया तो कई में माहवारी के जुड़ी कई समस्याएं आ गईं।

भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से निकली मिथाइल आइसो सायनाइड गैस ने सरकारी आंकड़ों के अनुसार करीब 2300 लोगों की ज़िंदगी छीन ली थी, और करीब 5000 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे।

इन गैस पीड़ितों का इलाज करने वाले डॉ. मृत्युंजय मालवीय बताते हैं, "हादसे के 34 साल बाद एक रिसर्च के द्वारा गैस पीड़ितों में हमने देखा कि उनकी सेहत की स्थिति क्या है, तो पता चला कि अन्य की अपेक्षा गैस पीड़ित 60 प्रतिशत ज्यादा बीमार रहते हैं और उनकी मृत्यु दर एक सामान्य इंसान की अपेक्षा दोगुनी है।"

यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री में रासायनिक खाद बनाई जाती थी। दो दिसंबर, 1984 जो गैस निकली उसका पांच प्रतिशत उसमें मिलाया जाता था। इस तरीके से समझा जा सकता है कि जब 100 प्रतिशत रसायन निकला होगा तो कितना जहरीला रहा होगा।

"मेरा सात साल का बच्चा था, उसका हमीदिया अस्पताल में कोई इलाज नहीं था। 15 दिन घर रहते थे तो एक महीना अस्पताल में," लीलाबाई शर्मा बताती हैं, "दवाएं खाते हैं तो हाथ-पैर चलते हैं नहीं तो कुछ कर नहीं पाते। 34 साल हो गए लड़ते-लड़ते लेकिन कुछ नहीं हुआ। सरकार की तरफ से कोई फर्क नहीं पड़ रहा।"


भोपाल में गैस पीड़ितों का इलाज करने वाले डॉक्टर मृत्युंजय मालवीय हर रोज 80 मरीज ही देख पाते हैं। "आज भी सबसे ज्यादा कैंसर, ब्लड सुगर, टीबी, त्वचा, सांस और बच्चों में जन्मजात विकृतियां दिख रही हैं," डॉ मालवीय ने बताया, "गैस पीड़ितों का अस्पताल में इलाज कराने का प्रतिशत एक सामान्य आदमी से अधिक है।"

गैस पीड़ितों के हक की लड़ाई लड़ने वाली संस्था सद्भावना की प्रमुख रचना ढींगरा कहती हैं, "यह विश्व की सबसे बड़ी आद्योगिक त्रासदी मानी जाती है और विश्व का सबसे बड़ा कारपोरेट क्राइम भी। हादसा भले 34 साल पहले हुआ, लेकिन आज भी ये जारी है, ये कभी खत्म ही नहीं हुआ।"

इस बात का डॉ. मृत्युंजय मालवीय भी समर्थन करते हुए कहते हैं, "एक तो वो पीड़ित थे जिन्हें वास्तव में गैस लगी, दूसरे वो जो उस वक्त गर्भ में थे, उनमें विकृतियां ज्यादा आईं। अब तीसरी पीढ़ी में भी विकृतियों के लक्षण दिखने लगे हैं।"

गैस पीड़ित आज भी मुआवजे और हक के लिए लाठी खा रहे हैँ। "अस्पताल तो खोल दिए बड़े-बड़े लेकिन वहां इलाज ही नहीं मिलता। गैस पीड़ितों के लिए मिले पैसे से सड़कें बनवा दीं, पुल बनवा दिए लेकिन हम लोगों को हक नहीं दिया गया," लीलाबाई शर्मा ने बताया, "धरना देते हैं, लाठी खाते हैं, भूख हड़ताल करते हैं, एक महीने तक दिल्ली तक पदयात्रा की। लेकिन हुआ क्या जेल में पटक दिया।"

वह आगे कहती हैं, "हमारी ज़िंदगी कैसी ज़िंदगी है, जो मर गए वो ज्यादा बेहतर थे, हम तो मर-मर के जी रहे हैं।"

भोपाल गैस त्रासदी के ३४ साल सीरीज के दूसरे भाग यहां पढ़िए

ये भी पढ़ें : भोपाल गैस कांड के 34 साल: 'आधे गैस पीड़ित मर चुके, आधे का इंतजार, फिर किस्सा खत्म'

ये भी पढ़ें : भोपाल गैस त्रासदी: 'जो हवा के विपरीत भागे, बच गए, उसी दिशा में भागे वो नहीं बचे'

ये भी पढ़ें : भोपाल गैस त्रासदी: 'गैस ने दी मौत और बीमारी, पुलिस से मिली लाठी और मुकदमे'

ये भी पढ़ें : भोपाल गैस त्रासदी : दोबारा मां नहीं बन पाईं कई महिलाएं!



   

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.