बढ़ती ज़हरीली हवा से कम हो रही है देश में इंसान की उम्र

देश में प्रदूषण का बढ़ता स्तर कितना घातक है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इंसान की औसत आयु में लगभग 3 साल की कमी आई है।
#Air pollution

भारत में बढ़ता प्रदूषण कितना जानलेवा हो चुका है इसे पिछले साल लेंसेट कमीशन ऑन पॉल्यूशन एंड हेल्थ रिपोर्ट ने साबित कर दिया। लेंसेट रिपोर्ट में कहा गया कि साल 2019 में विश्व में हुई कुल मौतों में से 6.7 मिलियन मौतों का कारण वायु प्रदूषण रहा। जबकि 1.4 मिलियन मौतें जल प्रदूषण से हुई। 9 लाख मौतों का कारण लेड प्रदूषण बताया गया है।

इस रिपोर्ट को देखें तो भारत में हालात अधिक भयावह हैं। भारत में 6 में से एक मौत का कारण प्रदूषण हैं। रिपोर्ट में पाया गया कि भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है जहां प्रदूषण का स्तर सर्वाधिक है। इसलिए पिछले दशकों में भारतीयों की औसत आयु में लगभग 3 साल की कमी आई है। भारत में साल 2019 में 2.3 मिलियन से अधिक नवजातों की प्रीमेच्योर डेथ प्रदूषण के कारण हुई है।

चिमनियों से निकलती हानिकारक गैसों के कारण हवा में कार्बन डाई ऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड, नाइट्रस आक्साइड, मीथेन का सांद्रण बढ़ गया है।

आईपीसीसी के 2020 में जारी आंकड़ों के अनुसार साल 1990 से 2019 के बीच ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में 45 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। ये तमाम गैसें सूरज से आने वाली लघु तरंगों को पृथ्वी पर प्रवेश कराती हैं। लेकिन पृथ्वी से उत्सर्जित दीर्घ तरंगों को सोख लेती हैं। नतीजतन इस बढ़ते तापमान से कई विकट हालात देखने मिलते हैं। जो इंसान के जीवन वर्षों का क्षरण कर रहे हैं।

धरती के बढ़ते तापमान से जलवायु परिवर्तन होता है। अब गर्मियाँ लंबी होने लगी हैं । मानसून असमय हो रहा है। सर्दियों का हिस्सा घटता जा रहा है। मौसम के इस बदलते मिज़ाज से फसलों की पैदावर प्रभावित हो रही है। देशों के सामने खाद्य असुरक्षा का संकट खड़ा हो रहा है। भुखमरी, गरीबी, कुपोषण के हालात बन रहे हैं।

वैश्विक गर्मी से ध्रुवों पर जमी बर्फ पिघल रही है। समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। इससे सामुद्रिक पारितंत्र बदल रहा है। सुनामी, चक्रवात जैसी समुद्री आपदाओं की आवर्ती बढ़ रही है।

इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस एंड रिसर्च भोपाल द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले एक दशक में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में आने वाले चक्रवातों की संख्या बढ़ने के साथ इनकी आवर्ती में भी इजाफा हुआ है। भारत की 7500 किमी लंबी तट रेखा में 9 राज्य समुद्र तट से सीमा लगाते हैं। ऐसे में समुद्री उथल पुथल बढ़ने का मतलब है बढ़ी आबादी का इससे प्रभावित होना।

विशेषज्ञों के अनुसार भारत में प्रदूषण से होती मौतों का मुख्य जिम्मेदार पीएम 2.5 और पीएम 10 है। वायुमंडल में घूमते ये नैनो पार्टिकुलेट मैटर ऑटोमोबाइल उत्सर्जन, कंस्ट्रक्शन साइट से निकली धूल और धुएँ में हैं। हवा में फैले ये पीएम 2.5 और पीएम 10 के कण सिर के बालों के 30वें हिस्से से भी महीन और बारीक हैं। जो आसानी से साँस से फेफड़ों में जाते हैं। रक्तवाहिकाओं में घुसकर दिल का दौरा, उच्च रक्तचाप और दूसरी बीमारियां बनाते हैं। नतीजा इंसान की असमय मृत्यु होना।

एनवायरमेंट थिंक टैंक सीएसई के ताजा आंकड़ों के अनुसार पिछले 20 सालों में भारत में पीएम 2.5 के कारण मौतों में ढाई गुना इजाफा हुआ है तथा इससे भारतीयों की जीवन प्रत्याशा 2.6 वर्ष कम हो गयी है, जो वैश्विक औसत से अधिक है। 1990 में 2,79,000 मौतें पीएम 2.5 के कारण हुई थी। 2019 में ये संख्या 9, 79,000 तक जा पहुँची। इस अंतर को देखकर वायु प्रदूषण की घातकता को समझा जा सकता है। रिपोर्ट में यह भी जस्टिफाई किया गया है कि भारत में जितने लोग धूम्रपान से नहीं मरते उससे ज्यादा जनता प्रदूषण से मर रही है। प्रदूषण अब भारत में मृत्यु के लिए जिम्मेदार तीसरा बड़ा कारक है।

अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन ने साल 2019 में दिल के स्वास्थ्य और मृत्युदर पर पीएम 2.5 के प्रभाव के बारे में चेतावनी देते हुए कहा था कि इन कणों के हफ्तों या कुछ घंटे संपर्क में रहने से जीवन प्रत्याशा में कई महीनों की कमी आ सकती है।

निश्चित तौर पर ये सभी आंकड़े वायु प्रदूषण के बहुआयामी प्रभाव को न केवल उजागर करते हैं बल्कि उसकी भयावयता को भी दर्शाते हैं।

गौरतलब है कि भारत की बड़ी आबादी विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्देशित पीएम 2.5 के हाई रिस्क जोन में रहती है। तमाम आंकड़ो से स्पष्ट है कि वायु प्रदूषण 21वी शताब्दी की एक प्रमुख समस्या है और इसे दूर करने के लिए एक एकीकृत और व्यापक रणनीति की आवश्यकता है।

(सीमा अग्रवाल स्वतंत्र लेखक एवं स्तम्भकार, ये उनके निजी विचार हैं)

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