सुभाजीत नस्कर और सायंतनी उपाध्याय
बरुईपुर (दक्षिण 24 परगना), पश्चिम बंगाल। आशा कार्यकर्ता रफीकुन नीशा (45) ने दक्षिण 24 परगना के बरुईपुर ब्लॉक में मुख्य चिकित्सा अधिकारी के कार्यालय के सामने अपने सहयोगियों के साथ एक बैनर ऊपर रखा था। वे अन्य फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के साथ विरोध प्रदर्शन कर रही थीं। इस साल जून से अक्टूबर तक पांच महीने से अधिक का उन्हें प्रोत्साहन राशि देने का वादा किया गया था, जो नहीं दिया गया। इसी के विरोध में ये सब इकट्ठा हुए थे।
रफीकुन पश्चिम बंगाल में 60,000 पंजीकृत आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) कार्यकर्ताओं में से एक हैं, जिनका ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा में योगदान अमूल्य रहा है, खासकर COVID19 महामारी में। भारत में लगभग दस लाख आशाएं हैं जो हमारी ग्रामीण स्वास्थ्य प्रणाली की रीढ़ हैं।
पिछले एक साल में देश के कई हिस्सों में छिटपुट विरोध प्रदर्शन हुए हैं क्योंकि आशा कार्यकर्ताओं ने अपने मानदेय में बढ़ोतरी के साथ खुद को सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने की मांग की है।
पश्चिम बंगाल में भी पिछले महीने 29 अक्टूबर को राज्य के 19 जिलों में आशा कार्यकर्ताओं ने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, पश्चिम बंगाल सरकार के अंतर्गत आने वाले स्वास्थ्य के मुख्य चिकित्सा अधिकारियों के कार्यालयों के बाहर विरोध प्रदर्शन किया। रफीकुन, जो विरोध का हिस्सा थे, बलबन प्राथमिक स्वास्थ्य उप केंद्र, दक्षिण 24 परगना के उप केंद्र में लगभग 12 वर्षों से आशा कार्यकर्ता हैं।
“आशा कार्यकर्ताओं को केवल 4,500 रुपए प्रति माह का मानदेय दिया जाता है। पश्चिम बंगाल यूनियन ऑफ आशा वर्कर्स की महासचिव इस्मत आरा खातून ने गांव कनेक्शन को बताया कि उन्हें उनके द्वारा किए गए बहुत सारे काम के लिए प्रोत्साहन का वादा किया जाता है, लेकिन प्रोत्साहन का भुगतान शायद ही कभी उन्हें समय पर मिलता है।
जैसा कि अभी है, आशा सरकार की स्थायी कर्मचारी नहीं हैं। इन स्वास्थ्य कर्मियों को उनके द्वारा किए गए काम के लिए एक मामूली भुगतान किया जाता है और पेंशन, चिकित्सा अवकाश, अवकाश वेतन, COVID19 के लिए चिकित्सा बीमा आदि जैसे बहुत कम या बिल्कुल भी लाभ प्राप्त नहीं होते हैं, विरोध करने वाली आशाओं ने शिकायत की। ” और, चूंकि उनके भुगतान ज्यादातर प्रोत्साहन-आधारित होते हैं, उनकी मासिक आय अनियमित होती है और महीने दर महीने उतार-चढ़ाव होती है,” महासचिव खातून ने समझाया।
इस्मत आरा ने कहा, “जोड़े गए COVID19 कर्तव्यों के साथ राज्य सरकार ने आशा को एक हजार रुपए प्रति माह अतिरिक्त देने का वादा किया, जिसका भुगतान किया जाना बाकी है।” उन्होंने कहा कि महामारी के दौरान आठ चरणों में आयोजित 27 मार्च से 29 अप्रैल, 2021 तक चुनाव ड्यूटी में शामिल आशाएं अभी भी उस 670 रुपए का इंतजार कर रही हैं, जिसके लिए उनसे वादा किया गया था।
अधिक काम और कम भुगतान
मार्च 2020 में महामारी की शुरुआत में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने देश भर में आशाओं को COVID19 मामलों की पहचान करने के लिए अपने समुदायों / गांवों में लोगों का सर्वेक्षण करने का काम सौंपा। उन्हें कोरोना वायरस पॉजिटिव मामलों को ट्रैक करना था, परीक्षण किट की व्यवस्था करनी थी और यदि कोई पॉजिटिव पाया गया तो आशा को यह सुनिश्चित करना था कि उन्हें घर पर ठीक से क्वारंटाइन किया गया था या निकटतम COVID अस्पताल में ले जाया गया था।
इसके अलावा इन महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने महामारी के बारे में सामुदायिक जागरूकता भी बढ़ाई, डेटा एकत्र किया और भारी दबाव के बीच अथक परिश्रम किया।
जब राज्य सरकार ने 2010 में आशा कार्यकर्ताओं की भर्ती की तो उनका काम अपने कार्यक्षेत्र में महिलाओं की प्रसव पूर्व और प्रसवोत्तर देखभाल करना, महिलाओं को सुरक्षित प्रसव के लिए स्थानीय अस्पताल ले जाने, स्वास्थ्य रिकॉर्ड बनावाने और लोगों के बीच स्वास्थ्य जागरूकता समुदाय को बढ़ाने का था।
इस्मत आरा ने आरोप लगाया कि जब वे महामारी के दौरान सामुदायिक जागरूकता कार्यक्रम आयोजित नहीं कर सके, तो लॉकडाउन और महामारी प्रतिबंधों के कारण उनके वेतन में भारी कटौती की गई।
पम्पा नस्कर धापा में काम करती हैं जो कोलकाता नगर निगम के अंतर्गत आता है। 38 वर्षीय आशा कार्यकर्ता ने कहा कि उन्हें जिस तरह के काम की उम्मीद थी, उसके लिए उन्हें जो प्रोत्साहन मिला, वह निराशाजनक था।
“प्रशासन ने हमें टीकाकरण के लिए दो सौ रुपए दिए थे, जो हम तीनों के बीच बांटने के लिए थे। आमतौर पर उसका भी समय पर भुगतान नहीं किया जाता है,” उन्होने गांव कनेक्शन को बताया।
पोलियो अभियान के लिए प्रतिदिन 75 रुपए
ये फ्रंटलाइन कार्यकर्ता राज्य में बच्चों को पोलियो के टीके लगाने से लेकर COVID19 टीकाकरण तक हर वैक्सीन अभियान का हिस्सा हैं। वे स्वच्छ भारत अभियान और निर्मल बांग्लांटू जैसी योजनाओं में शामिल हैं। फिर भी उन्हें एक मामूली भुगतान किया जाता है, इस्मत आरा ने कहा।
हाल ही में दक्षिण 24 परगना के कैनिंग कस्बे में एक आशा कार्यकर्ता को पोलियो का टीका लगवाने की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी। “वह एक बच्चे को पोलियो का टीका दे रही थी जो बाढ़ में डूबे कैनिंग में खाना पकाने के बर्तन में था। डोर-टू-डोर पोलियो अभियान के लिए हमें प्रतिदिन 75 रुपए का भुगतान किया गया था, ” इस्मत आरा ने कहा।
“कभी-कभी हमें उन परिवारों की तलाश करने के लिए कहा जाता है जिनके घरों में शौचालय नहीं है! क्या यही हमारा काम है?” दक्षिण 24 परगना में मदरत पीएचसी के तहत काम करने वाली फिरोजा बेगम ने गांव कनेक्शन से पूछा, 48 वर्षीय आशा कार्यकर्ता ने शिकायत की, “और इन सब के बाद भी हमारे साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है कि जैसे हम कुछ हैं ही नहीं।”
विरोध कर रही आशा कार्यकर्ताओं ने कहा कि यह आम बात है कि जब वे ड्यूटी पर होती हैं तो वे बिना भोजन या शौचालय की सुविधा के घंटों तक चले जाते हैं। फिर भी उन्हें सम्मान नहीं मिलता। जॉयनगर, ब्लॉक -1 की मीता दास ने गुस्से में कहा कि अस्पतालों में नर्सों ने उनके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया।
शहरी स्वास्थ्य कर्मियों की व्यथा
शहरी केंद्रों में मानद स्वास्थ्य कार्यकर्ता (HHW) हैं, जिन्हें प्रशिक्षण के बाद आशा के पद पर पदोन्नत किया जाता है। उनका संकट उनकी ग्रामीण बहनों से अलग नहीं है। उन्हें भी टीकाकरण आदि की व्यवस्था करने का जिम्मा सौंपा गया है, लेकिन वे भी एक कम वेतन और कम सराहना की गई कार्यबल हैं।
कोलकाता नगर निगम की एक सेवानिवृत्त मानद स्वास्थ्य कार्यकर्ता प्रतिमा हलदर ने गांव कनेक्शन को बताया, “रहने का खर्च बढ़ गया है और मुझे अपना गुजारा करना मुश्किल हो रहा है।” प्रतिमा अपने परिवार की एक मात्र कमाने वाली सदस्य थीं और उन्होंने कहा कि जब वह सेवानिवृत्त हुईं तो उन्हें कोई आर्थिक लाभ नहीं मिला।
एक अन्य सेवानिवृत्त मानद स्वास्थ्य कार्यकर्ता 60 वर्षीय लक्ष्मी सरदार के साथ भी ऐसा ही है, जिन्होंने शिकायत की थी कि उनकी सेवानिवृत्ति के बाद उनके पास अपना घर चलाने के लिए बहुत कम पैसे बचे थे।
जब पश्चिम बंगाल की उप राज्य स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य से स्थिति के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उन्हें विरोध करने वाले आशा कार्यकर्ताओं के प्रतिनिधित्व के बारे में कोई जानकारी नहीं है। हालाँकि महामारी के दौरान उन्होंने जो काम किया, उसके लिए वह प्रशंसा से भरी थी।
स्वास्थ्य भवन कोलकाता के एक स्वास्थ्य अधिकारी अजय चक्रवर्ती ने गांव कनेक्शन को बताया, “मुख्यमंत्री और प्रमुख सचिव COVID19 महामारी के दौरान आशा कार्यबल के काम से बहुत प्रभावित हैं।” उन्होंने आश्वासन दिया कि सरकार आशा कार्यकर्ताओं की मांगों पर ध्यान देगी।
इस बीच कोलकाता नगर निगम के मुख्य चिकित्सा अधिकारी सुब्रत रॉय चौधरी ने कहा कि कोलकाता में अधिकांश आशा कार्यकर्ताओं को उनका बकाया मिल गया है। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, “अगर कुछ भुगतान लंबित हैं, तो उन्हें जल्द ही मिल जाएगा।”
अनुवाद- संतोष कुमार