किसी शायर ने कहा है – चाँद सितारों से कहा है मैंने
आओ मेरा हसीं भोपाल नगर तो देखो
दिन ढल रहा हो, सिंदूरी आसमान पर ढेरों पंछी शोर मचा रहे हों, और धीमी बहती हवा से दूर तक फैले अंतहीन पानी में छोटी छोटी लहरें उठ रही हों तो समझ लीजिए आप भोपाल के बड़े तालाब के किनारे हैं। वही तालाब जिसके लिए कहा जाता है कि “तालों में ताल भोपाल ताल, बाक़ी सब तलैया”।
हर शहर का अपना नॉस्टैल्जिया होता है। लोग जब उस शहर की बात करते हैं तो वहाँ की भाषा वहाँ के लहजे की बात होती हैं, वहाँ के खानपान, गालियों, इमारतों का ज़िक्र छिड़ता है। पर अगर भोपाल की बात हो तो यहाँ के ताल की बात होती है। समंदर की तरह उछालें मारते इस ताल के अपने ही जलवे हैं।
भोपाल का बड़ा ताल परमार वंश के राजा भोज ने बनवाया था और इसलिए इसे अब भोज-ताल कहते हैं।
शहर की चालीस प्रतिशत आबादी को पानी इसी से सप्लाई होता है। तीस वर्ग किलोमीटर से भी ज़्यादा फ़ैले बड़े तालाब में यहाँ के बाशिंदों की रूह बसती है। कोई परेशान हो तो उसे तालाब के खामोश किनारों पर जाकर सुकून मिलता है और जब मन खुश हो तब भी वो लेक व्यू की तरफ़ दौड़ता है। डूबते सूरज की तस्वीरें खींचनी हो या पानी में घुलते चाँद को कैमरे में क़ैद करना हो तो भोपाल के तालाब से प्यारी लोकेशन क्या होगी। कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि शहर के बीचों-बीच ऐसा अथाह समंदर जैसा ताल होगा और इसके किनारे किनारे बना खूबसूरत वनविहार। दूर दराज से न जाने कितने प्रवासी पंछी हर साल इस ताल की मोहब्बत में खींचे चले आते हैं। वैज्ञानिक भाषा में कहा जाए तो इस तालाब ने शहर के पर्यावरण को सम्हाल रखा है और इसी के कारण हम यहाँ एक विशाल बायोडाइवर्सिटी देख पाते हैं। और पोएटिक भाषा में कहूँ तो इस तालाब के कारण शहर के लोगों की ज़िंदगियों में नमी है, रंग है महक है एक अनोखी आब है।
361 वर्ग किलोमीटर कैचमेंट एरिया वाले भोज-ताल को देखें तो दूर दूर तक बस पानी… न कोई ओर न छोर। और चाँद सरीखे किसी चेहरे के माथे पर जैसे बिंदी का शृंगार होता है ना वैसे तालाब के बीच है एक तकिया टापू, जिस पर शाह अली शाह की मज़ार है, तो मानों वहाँ से होती दुआएं ताल के कोने कोने पहुँचती हों। और ताल ने कोनों से शहर के कोनों तक …
पर इस तालाब ने कई बुरे दिन भी देखे हैं। एक साल तो ऐसा हुआ कि तालाब का बहुत बड़ा हिस्सा सूख गया। टापू तक ज़मीन दिखाई देने लगी। उफ्फ़ बहुत तकलीफ़देय था ताल को यूं देखना, जैसे कोई अपना दम तोड़ रहा हो।
भोपाल का हर बाशिंदा रो पड़ा था, पर आंसुओं से ताल थोड़े भरा करते है। उस बरस सबने मिलकर अपने प्यारे ताल को बचाने की कोशिशें शुरू कीं। खुदाई करके गहरा करने और सफ़ाई के लिए कई कदम उठाए गए। इसे संरक्षित करना कितना ज़रूरी है ये समझ आया। हालांकि अब भी हालात पूरे ठीक नहीं है। और भी सख्त कदम उठाने होंगे, जीतोड़ कोशिशें करनी होंगी। सच तो ये है कि अपने शहर को अपने ताल को प्यार करने भर से काम थोड़े चलेगा इसकी देखभाल भी तो करनी होगी, इसके नखरे भी उठाने होंगे।
ऐसे ही बीते दिन तेज़ बारिश से उफ़ान मार गया ये तालाब। इस पर बने भदभदा डैम के सभी ग्यारह गेट खोल दिए गए। तालाब में समंदर की तरह ऊंची लहरें उठती रहीं और शहर पानी पानी हो गया। अस्पताल, बाज़ार, स्टेशन, सड़कें सब जगह पानी। लोग परेशान रहे, बहुत नुकसान हुआ। पर सबने मिल कर सम्हाल लिया।
इस बेहिसाब बारिश के पीछे भी तो किया धरा हम इंसानों का ही है। इसलिए अब लोग जागरूक हो रहे, शुक्र है कि समझ रहे हैं अपनी ज़िम्मेदारियाँ।
तालाब के किनारे किनारे चलती वीआईपी रोड पर गाड़ियां दौड़ाते या चहलकदमी का मज़ा लेते हर भोपाली को ये याद रहता है कि ये एक कर्ज़ है ताल का जो हमें चुकाते रहना है।
हमें बचाए रखना है इसे अपने लिए, क्यूंकि जब बूँदा बाँदी हो तब या सरसराती हवा वाली रातें हों तब या तपती गर्मियों हों, हमारा साथी हमारा राजदार ये ताल ही तो बनता है ना।
न जाने कितने जोड़ों की प्रेम कहानियों का गवाह बना है ये तालाब!
तभी तो इसकी अपनी कहानी हमारे दिलों में धड़कती है …