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रिपोर्ट: राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम की सुस्त रफ्तार ने स्वच्छ हवा के सपने को पटरी से उतारा

प्रदूषण को कम करने और हवा की गुणवत्ता में सुधार के लिए साल 2019 में शुरु हुए इस कार्यक्रम के तीन साल पूरे होने पर रिसर्च संस्था सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर ने एक रिपोर्ट जारी है, जो बताती है कि सरकार लक्ष्य से काफी दूर है।
#polluted air

नई दिल्ली। सिर्फ भारत ही नहीं दुनियाभर में देश के बढ़ते वायु प्रदूषण के मुद्दे पर खबरों और चर्चा के बाद भारत सरकार ने जनवरी 2019 में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) की शुरुआत की थी। प्रोग्राम के तीन साल पूरे होने पर रिसर्च संस्था सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) ने अपनी रिपोर्ट -“ट्रेसिंग द हैज़ी एयर: राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) पर प्रगति रिपोर्ट” में पाया की पिछले तीन साल में प्रगति दुर्लभ और कमज़ोर रही है।

सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर के मुताबिक यह भारत का पहला ऐसा कार्यक्रम था जिसके तहत युद्ध स्तर पर देश की वायु गुणवत्ता में सुधार करने के कदम उठाने का ढांचा बनाया गया था। कार्यक्रम के तहत देश के 132 शहरों में 2017 के स्तर के सापेक्ष 2024 तक पीएम 2.5 के स्तर को 20% से 30% तक घटाने के लक्ष्य निर्धारित किए गए थे। लेकिन पिछले तीन साफ में कार्यक्रम की प्रगति काफी सुस्त और लचर रही है।

“ट्रेसिंग द हैज़ी एयर: राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) पर प्रगति रिपोर्ट” के लेखक रिपोर्ट के लेखक और CREA के एक विश्लेषक सुनील दहिया ने कहा कि, “पिछले दो साल COVID19 महामारी के कारण असामान्य रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय और क्षेत्रीय लॉकडाउन के कारण औद्योगिक और आर्थिक गतिविधियों पर रोक लग गयी थी, इसलिए NCAP की प्रभावशीलता और कार्यान्वयन को ट्रैक करने के लिए एक बेहतर संकेतक NCAP कार्यक्रम के तहत पहचाने गए प्रगति संकेतकों को ट्रैक करना होगा।”

रिपोर्ट में प्रस्तुत विश्लेषण आरटीआई आवेदनों, संसदीय कार्यवाही,अन्य संगठनों की रिपोर्टों और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आंकड़ों के माध्यम से एकत्र की गई जानकारी पर आधारित है।

रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि शहर के विशिष्ट क्लीन एयर एक्शन प्लान को छोड़कर, NCAP के अंतर्गत निर्धारित समय सीमा के तहत कोई भी अन्य प्लान पूरा नहीं किया गया है, जिसमें स्टेट क्लीन एयर एक्शन प्लान (राज्य कार्य योजना), रीजनल क्लीन एयर एक्शन प्लान (क्षेत्रीय कार्य योजना) और ट्रांस बाउन्डरी क्लीन एयर एक्शन प्लान (सीमापार कार्य योजना) इत्यादि शामिल हैं ।

दहिया के अनुसार, “NCAP और शहरी क्लीन एयर एक्शन प्लान गतिशील दस्तावेज थे जिन्हें अधिक जानकारी आने पर और भी सुदृढ़ एवं मजबूत बनाया जाना था जिससे कि उनको बढ़ते वायु प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित करने में अधिक कुशल बनाया जा सके। लेकिन अफसोस की बात है कि राज्य और क्षेत्रीय स्तर की कार्य योजनाओं के निर्माण के साथ-साथ एमिशन इन्वेंटरी (उत्सर्जन सूची) और सोर्स-अपपोरशंमेंट स्टडी (स्रोत विभाजन अध्ययन) के लिए सभी समयसीमा बीत चुकी है और उनमें से कोई भी अब तक तैयार नहीं किया गया है।”

वायु निगरानी स्टेशन का अधूरा लक्ष्य

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कार्यक्रम के शुरू होने के तीन वर्षों के अंत में देश भर में स्थापित किए जाने वाले लक्षित 1500 मैनुअल निगरानी स्टेशनों में से आज केवल 818 ही मौजूद हैं । यह 2019 में मौजूद 703 से सिर्फ 115 स्टेशनों की वृद्धि है। सभी मैनुअल स्टेशनों को पीएम 2.5 निगरानी से लैस करने में प्रगति और भी सुस्त है , जहां केवल 261 स्टेशनों पर पीएम 2.5 निगरानी सुविधाएं उपलब्ध हो पायी हैं।

इसके अलावा 132 नॉन-अटेन्मेंट शहरों में से किसी भी शहर ने कैरिंग कैपेसिटी (वहन क्षमता) स्टडी/ आंकलन पूरा नहीं किया है। ‘वहन क्षमता’ किसी भी क्षेत्र की प्रदूषण उत्सर्जन को सहन करने की क्षमता है जिसके अधिक उत्सर्जन होने पर शहर की हवा की गुणवत्ता साँस लेने के लिए हानिकारक हो जाती है । 93 शहरों में यह अध्ययन या तो चल रहा है या प्रस्तावित स्तर पर।

आंकलन के अनुसार NCAP के तहत वित्तपोषण में विसंगतियां हैं और आवंटन के मामले में पारदर्शिता का अभाव पाया गया है, इस राशि का उपयोग प्रदूषकों के उत्सर्जन को कम करने के लिए सार्थक कार्रवाइयों के लिए किया जाना है |

रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि NCAP को अगले दशक में विश्व स्वास्थ्य संगठन ( WHO) दिशानिर्देश स्तरों के बराबर सांस लेने वाली हवा को प्राप्त करने के लिए अंतरिम (WHO अंतरिम लक्ष्य) और दीर्घकालिक लक्ष्य निर्धारित करते समय जिम्मेदार अधिकारियों पर कानूनी रूप से कार्यवाही को बाध्यकारी बनाया जाना चाहिए । रिपोर्ट में की गई सिफारिशों में सीपीसीबी द्वारा विकसित PRANA पोर्टल के तहत सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी के माध्यम से आवंटन और वित्त के उपयोग में पारदर्शिता को बढ़ाना और NCAP इंडीकेटर्स/संकेतकों को पारदर्शी तरीके से ट्रैक करना भी शामिल है।

वायु प्रदूषण से भारत में हर साल रिकॉर्ड संख्या में भारतीयों की मौत होती है हम NCAP को अन्य आधिकारिक दस्तावेज की तरह सिर्फ कागज पर रह जाने का जोखिम नहीं उठाया जा सकता। सुनील दहिया का कहना है कि, “NCAP में आधारित इंडीकेटर्स का पालन न करने वालो के खिलाफ एवं दिशा निर्देशों और लक्ष्यों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कड़े कानून लागू करते हुए आज के समय स्थानीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय सरकारी एजेंसियों के बीच समन्वय को तेजी से बढ़ाते हुए हवा को साफ़ करने की अत्यंत आवश्यकता है।”

दिल्ली में घरों के अंदर भी हवा प्रदूषित

दिसंबर 2021 में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक देश की राजधानी में बाहर ही नहीं घरों के अंदर भी हवा प्रदूषित है। शिकागो विश्वविद्यालय के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट के नए शोध ने संकेत दिया है कि भारत की राजधानी के लोगों के बीच वायु प्रदूषण की जानकारी और इससे बचाव के लिए जागरूकता की कमी है।

अध्ययन में पाया गया कि दिल्ली में कम और अधिक आमदनी वाले परिवारों के लिए इनडोर PM2.5 का स्तर सर्दियों के दौरान बहुत अधिक था। इस दौरान उपरोक्त परिवारों में औसत सांद्रता (मीन कंसंट्रेशन) WHO द्वारा तय सुरक्षित सीमा 10μg/ m³ से क्रमश: 23 और 29 गुना अधिक थी। अध्ययन के निष्कर्ष में पाया गया कि उच्च-आय वाले घरों में कम-आय वाले घरों की तुलना में एयर प्यूरीफायर रखने की संभावना 13 गुना अधिक है। इसके बावजूद उच्च-आय वाले घरों में इनडोर वायु प्रदूषण का स्तर कम-आय वाले घरों की तुलना में केवल 10% कम था। पूरी खबर यहां पढ़ें- 

ये भी पढ़ें- दिल्ली: बाहर ही नहीं घरों के अंदर की हवा भी है दूषित, लेकिन फिर भी लोगों में है जागरूकता की कमी : स्टडी

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