केंद्रीय बजट 2022-23 में सरकार ने एक डिजिटल विश्वविद्यालय शुरू करने की घोषणा की गई है। इसके साथ ही PM eVidya के वन क्लास वन टीवी चैनल कार्यक्रम को 12 से 200 टीवी चैनलों तक विस्तारित किया जाएगा।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि कोरोना काल में पढ़ाई का काफी नुकसान हुआ है इसलिए ई-कंटेंट और ई-लर्निंग को प्रोत्साहन दिया जाएगा। देश में डिजिटल विश्वविद्यालय की स्थापना होगी। इस यूनिवर्सिटी के जरिए स्टूडेंट्स को विश्वस्तरीय शिक्षा दी जाएगी। कौशल विकास के लिए एक ई-पोर्टल भी शुरू होगा।
उन्होंने कहा कि पीएम ई विद्या के ‘वन क्लास, वन टीवी चैनल’ कार्यक्रम को 12 से 200 टीवी चैनलों तक बढ़ाया जाएगा। यह सभी राज्यों को कक्षा 1 से 12 तक क्षेत्रीय भाषाओं में सप्लीमेंट्री शिक्षा प्रदान करने में सक्षम बनाएगा।
‘One Class One TV Channel’ will be increased from 12 to 200 TV Channels to provide supplementary education in regional languages for class 1-12: Finance Minister @nsitharaman
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इसके अलावा इंटरनेट, टीवी और स्मार्टफोन के जरिए कई नए ई-लर्निंग कंटेंट प्लेटफॉर्म शुरू किए जाएंगे। ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों के छात्रों को पढ़ाई में इनसे काफी मदद मिलेगी। शिक्षकों को डिजिटल टूल्स बेहतर ढंग से उपयोग करने के सक्षम बनाया जाएगा ताकि ऑनलाइन लर्निंग के बेहतर नतीजे आ सके।
उन्होंने कहा कि आईटीआई संस्थानों में नए डिजिटल स्किल कोर्स शुरू होंगे। कोरोना के चलते पिछड़े वर्गों के बच्चों की शिक्षा प्रभावित हुई है। अनुपूरक शिक्षा और उत्थान तंत्र की जरूरत है। क्षेत्रीय भाषा में बच्चों को शिक्षा उपलब्ध कराई जाएगी। कॉमर्शियल कोर्स के लिए ई-लैब की स्थापना करेंगे। 2 लाख आंगनबाड़ी को सक्षम आंगनबाड़ी बनाएंगे।
मई 2020 में, छात्रों के लिए PM eVidya कार्यक्रम शुरू किया गया था, जिसके माध्यम से लॉकडाउन के कारण ऑफ़लाइन शिक्षा से वंचित छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए विभिन्न प्रकार के ऑनलाइन मॉडल लॉन्च किए गए थे।
2022 के बजट का फोकस महामारी के कारण स्कूलों के बंद होने के कारण डिजिटल लर्निंग है। ये घोषणाएं इस तथ्य के बावजूद की गई हैं कि कई रिपोर्टों और सर्वेक्षणों ने बताया है कि इंटरनेट और स्मार्टफोन की उपलब्धता ने बच्चों की स्कूली शिक्षा बाधा पहुंच रही है।
भारत में केवल 8.5 प्रतिशत स्कूली छात्रों की इंटरनेट तक है पहुंच : यूनिसेफ
यूनाइटेड नेशंस चिल्ड्रेन इंमरजेंसी फंड (यूनिसेफ) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में स्कूल जाने वाले अधिकांश छात्र शिक्षा प्राप्त करने में असमर्थ हैं क्योंकि उनके पास ऑनलाइन कक्षाओं तक पहुंचने के लिए डिजिटल उपकरणों की कमी है।
यूनिसेफ की एक रिपोर्ट ‘ कोविड-19 एंड स्कूल क्लोजर: वन ईयर ऑफ एज्युकेशन डिस्रप्शन” को 2 मार्च, 2021 को प्रकाशित किया गया था। इसके अनुसार, भारत में केवल 8.5 प्रतिशत छात्रों के पास ही इंटरनेट की सुविधा है – शिक्षा के उनके संवैधानिक अधिकार तक पहुंचने में यह एकतकनीकी बाधा है।
महामारी के परिणामस्वरूप, लॉकडाउन और उसके बाद स्कूलों के बंद होने से दुनिया भर में 201 मिलियन छात्र प्रभावित हुए। इनमें से 170 मिलियन छात्रों की पिछले एक साल से शिक्षा तक पहुंच नहीं थी।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दक्षिण एशियाई देशों में, श्रीलंका में 74.6 प्रतिशत छात्रों, बांग्लादेश में 69.7 प्रतिशत छात्रों, नेपाल में 36.6 प्रतिशत, पाकिस्तान में 9.1 प्रतिशत, अफगानिस्तान में 0.9 प्रतिशत, भारत में 8.5 प्रतिशत छात्रों की इंटरनेट तक पहुंच है।
“ग्रामीण भारत में महामारी के दौरान स्मार्टफोन की संख्या बढ़ी; लेकिन इससे अधिकांश बच्चों को कोई फायदा नहीं हुआ है।”
नवंबर 2021 में जारी की गई शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत में 67.6 प्रतिशत बच्चों के पास घर पर स्मार्टफोन उपलब्ध थे, लेकिन 26.1 प्रतिशत, यानी लगभग हर चौथे बच्चे के पास इसकी पहुंच नहीं थी।
सर्वेक्षण रिपोर्ट से पता चला है कि जहां ग्रामीण भारत में स्मार्टफोन की संख्या बढ़ी है, वहीं बच्चों की पहुंच एक मुद्दा बनी हुई है। COVID19 महामारी के दौरान स्मार्टफोन शिक्षण-सीखने का प्रमुख जरिया बन गया है
महामारी पूर्व वर्ष 2018 में, 36.5 प्रतिशत बच्चों के पास घर पर स्मार्टफोन उपलब्ध था। 2021 में यह संख्या दोगुनी होकर 67.6 प्रतिशत हो गई।