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‘महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा रोकने के लिए सिर्फ अंतर्राष्ट्रीय दिवस से बात नहीं बनेगी’

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक हर तीन महिलाओं में से एक ने अपने जीवन में यौन हिंसा का सामना जरूर किया है। बढ़ती घटनाओं को देखते हुए महिला अधिकारों के लिए काम कर रहे संगठन और सख़्त कानून बनाने की बात कर रहे हैं।
#domestic violence

शादी करके जब पूर्णिमा पहली बार ससुराल आईं तो कुछ महीने तक सब ठीक था, लेकिन करीब छह महीने बाद उनके पति और ससुराल वालों ने मारपीट शुरू कर दी, पूर्णिमा को लगा की कुछ दिनों में सब सही हो जाएगा,लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

पूर्णिमा गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “पहले लगा कि कुछ दिन में सब सही हो जाएगा, अपने घर पर जब बताया तो यही कहा गया कि सब ठीक हो जाएगा; एक साल तक सब सहती रही, लेकिन जब बर्दाश्त नहीं हुआ तो 181 पर फोन करके मदद मागी।”

ये कहानी सिर्फ एक पूर्णिमा की नहीं है, हर दिन न जाने कितनी महिलाएँ शारीरिक और यौन हिंसा का शिकार होती हैं।

हर साल 25 नवंबर को महिलाओं और लड़कियों के ख़िलाफ़ हिंसा के निवारण के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है। किसी भी सामाजिक समस्या के लिए एक दिन को दिवस के तौर पर मनाने की क्यों जरूरत पड़ी, इसका जवाब आकड़े देते हैं।

दुनियाभर में, लगभग तीन महिलाओं में से एक, यानी लगभग 736 मिलियन, ने अपने जीवन में किसी संबंधित व्यक्ति या उनके करीबी से कम से कम एक बार शारीरिक और यौन हिंसा का सामना किया है। इस तरह की अधिकांश हिंसा वर्तमान या पूर्व के पतियों या इंटीमेट पार्टनर द्वारा की जाती है।

निर्भया को न्याय दिलाने वाली अधिवक्ता सीमा समृद्धि कुशवाहा गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “अगर लैंगिक हिंसा के शिकार लोगों को न्याय दिलाना है तो न्यायिक प्रणाली में निश्चित रूप से सुधार की जरूरत है ; ज़्यादातर, अदालतें आरोपियों को जमानत देती हैं और सजा की दर बहुत कम है।”

वो आगे कहती हैं, “आपराधिक मानसिकता वाले अपराधियों को समाज में खुलेआम घूमने के लिए छोड़ दिया जाता है जो बड़े पैमाने पर नागरिकों की सुरक्षा को ख़तरे में डालता है। न्यायपालिका में इस तरह से सुधार किए जाने की जरूरत है कि अदालती कार्यवाही समय पर सुनिश्चित हो।”

यूनाइटेड नेशन के आंकड़ों के अनुसार आधिकांश 640 मिलियन महिलाएँ, जो 15 वर्ष और उससे अधिक आयु की हैं उन्होंने अपने इंटिमेट पार्टनर से हिंसा का सामना किया है। जिसमें से लगभग एक-चौथाई किशोरी लड़कियों की आयु 15 से 19 वर्ष है यानी 24 प्रतिशत ने अपने इंटिमेट पार्टनर या पति से शारीरिक और या यौन हिंसा का सामना किया है। इस हिंसा का सामना पिछले 12 महीनों में 15 से 24 वर्ष की आयु वर्ग की 16 प्रतिशत युवतियों ने किया है।

आखिर कैसे कोई हिंसक प्रवृत्ति का हो जाता है, के सवाल पर मनोवैज्ञानिक और सलाहकार डॉ. नेहा आनंद गाँव कनेक्शन को बताती हैं, “जो इंसान मानसिक रूप से स्वस्थ्य होता है वो किसी भी व्यक्ति को चोट नहीं पहुँचा सकता है; कोई इंसान अगर खुद असुरक्षित है तो हमेशा अपने से कमज़ोर को नुकसान पहुँचाने की कोशिश करेगा। यहाँ पर महिला उसको कमज़ोर दिखती हैं जिसको वो हिंसा पहुँचाता है, इसलिए जो भी इंसान मानसिक रूप से बीमार होगा तो वो इस तरह की हरकतें जरूर करेगा।”

राष्‍ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्‍यूरो के आंकड़ों के अनुसार साल 2020 जहाँ पूरे देश में महिलाओं के साथ अपराध के कुल 3,71,503 मामले दर्ज किये गये थे वही 2021 में ये मामले 15.3 प्रतिशत की दर से बढ़ कर 4,28,278 हो गए। इन आकड़ों में बलात्कार, घरेलू हिंसा, पति और उसके परिवार द्वारा की गयी हिंसा के मामले शामिल हैं। वहीं साल 2021 में पॉक्सो यानी यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम (प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ओफ्फेंसेस एक्ट – पोक्सो ) के कुल 53,874 मामलें दर्ज़ किए गए।

हिंसा कई प्रकार की हो सकती है लेकिन लोगों ने इसकी परिभाषा को बहुत सीमित कर दिया है; हालाँकि इसके और भी प्रकार हो सकते हैं जैसे – शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, लैंगिक, मौखिक या फिर भावनात्मक।

अधिवक्ता अंचल गुप्ता ने गाँव कनेक्शन से बताया, “घरेलू हिंसा से महिलाओं को संरक्षण देने के लिए ‘घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 ‘ लाया गया है, जिसमें घरेलू हिंसा की परिभाषा को और विस्तृत किया गया है। अधिनियम कहता है, घरेलू हिंसा के मामलों में शिकायत करने वाली पीड़िता कौन है, और वो विपक्षी के साथ साझा गृहस्थी में और घरेलू नातेदारी में रह रही हो।”

वो आगे कहती हैं, “इस कानून के तहत घरेलू हिंसा के दायरे में कई प्रकार की हिंसा और दुर्व्यवहार आते हैं; किसी भी घरेलू संबंध या नातेदारी में किसी प्रकार का व्यवहार, आचरण या बर्ताव जिससे आपके स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन, या किसी अंग को कोई नुकसान पहुँचता है या मानसिक या शारीरिक हानि होती है, घरेलू हिंसा है।”

महिलाओं के साथ हिंसा होने पर उन्हें क्या करना चाहिए इस पर नेहा आनंद कहती हैं, “लड़कियों को जिस दिन भाव को व्यक्त करना आ जाएगा उन्हें बोलना आ जाएगा तब ये हिंसा कम हो सकती है; उन्हें समझ आ जाएगा कि हम सहते रहेंगे तो हमे हमेशा सहते ही रहना पड़ेगा। उन्हे अब खुल कार आगे आना पड़ेगा, जो भी अत्याचार उनके ख़िलाफ़ हो रहे हैं अगर उनके ख़िलाफ़ उन्हें लड़ना आ जाएगा उस दिन ये घरेलू हिंसा कम हो जाएगी।”

किसी महिला को घर, ऑफिस या काम पर आते-जाते परेशान किया जाता है, लेकिन वो समझ नहीं पाती कि कहाँ और किसके पास मदद के लिए जाए, ऐसे में सखी – वन स्टॉप सेंटर उनकी मदद की लिए हमेशा तैयार है।

वन स्टॉप सेंटर की प्रभारी अर्चना सिंह गाँव कनेक्शन को बताती हैं, “अक्सर कुछ महिलाएँ घरेलू हिंसा से पीड़ित होने पर तय नहीं कर पाती हैं कि क्या करे? क्योंकि उसे मायके में बोला गया है कि हम आपको वापस नहीं रख पाएँगे और ससुराल में हिंसा का शिकार होते हुए भी वहाँ रहना पड़ता है। ऐसी महिलाओं की मदद के लिए देश भर में चलाए जा रहे हैं सखी वन स्टॉप सेंटर।”

वो आगे कहती हैं, “यहाँ पीड़िता को हर तरह की मदद मिलती है। यहाँ एक ही छत के नीचे पीड़ित महिला को वो सारी सुविधाएँ दी जाती हैं, जिसकी उसे तुरंत ज़रूरत होती है; जैसे रेस्क्यू करना, मेडिकल सहायता, कानूनी सलाह, काउंसलिंग और साथ ही कुछ दिनों के लिए रखा भी जाता है, जब तक उसकी पूरी मदद नहीं हो जाती है। यहाँ जो केस आते हैं, उनमें हिंसा से पीड़ित महिला, वो चाहे घरेलू हिंसा हो या छेड़खानी या फिर दहेज को लेकर प्रताड़ना, यही नहीं कार्यस्थल पर भी अगर हिंसा हो रही है तो महिलाएँ यहाँ आ सकती हैं।”

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