उपरबेड़ा (मयूरभंज), ओडिशा। आदिवासी गाँव उपरबेड़ा में प्रार्थनाओं का दौर जारी है। लोगों में गजब का उत्साह है। राष्ट्रपति चुनाव तो हो चुका है। अब सबको इंतजार है 21 जुलाई का जिस दिन परिणाम घोषित होगा। भारत के नए राष्ट्रपति 25 जुलाई को शपथ लेंगे।
द्रौपदी मुर्मू यशवंत सिन्हा के खिलाफ चुनाव लड़ रही हैं। मुर्मू का जन्म ओडिशा के मयूरभंज जिले के उपरबेड़ा गाँव में 20 जून, 1958 को हुआ था। आदिवासियों का ये गाँव अपने भगवान सिंहबोंगा से अपनी बेटी की जीत के लिए आशीर्वाद मांग रहा।
गाँव के संथाल आदिवासी जहरस्थान पेड़ के पास जुटे हैं और वहां पूजा कर रहे हैं। पुरुष ढोल बजा रहे हैं और महिलाएं पारंपरिक नृत्य कर रही हैं। नजदीकी गाँव हटनबेरा में भी इसी तरह की नमाज अदा की जा रही थी।
ऊपरबेड़ा के लोगों को उम्मीद है कि मुर्मू राष्ट्रपति बनेंगे। मुर्मू इससे पहले 18 मई, 2015 और 12 जुलाई, 2021 के बीच झारखंड की राज्यपाल रहीं। हाल ही में उनका कार्यकाल खत्म हुआ।
उपरबेड़ा की रहने वालीं दुलारी टुडू ने गाँव कनेक्शन को बताया, “वह रसोई के काम में मदद करना पसंद करती हैं और साग के साथ पाखल (दिन भर का पका हुआ चावल जो रात भर पानी में भिगोया जाता है, और पूरे ओडिशा में स्वाद के साथ खाया जाता है) खाने का आनंद लेती हैं।” दुलारी द्रौपदी मुर्मू के बड़े भाई भगत चंद्र की बहू हैं जो उसी घर में रहते हैं जहां मुर्मू पली-बढ़ी हैं।
इसी गाँव के खेलराम हांसदा के अनुसार भारत के राष्ट्रपति पद के लिए मुर्मू की उम्मीदवारी की घोषणा के बाद से उपरबेड़ा में जश्न जोरों पर है। हांसदा कहते हैं, “गाँव लोगों को सुखद आश्चर्य हुआ जब उम्मीदवारी की घोषणा के 24 घंटे के अंदर ही उपरबेरा गांव के एक हिस्से डुम्ब्रिसाई में बिजली आ गई।”
यह पहली बार नहीं है जब उपरबेड़ा के किसी आदिवासी ने उच्च पद संभाला है। 1962 में, उसी गाँव के द्रौपदी मुर्मू के चाचा, कार्तिक चंद्र मुर्मू ओडिशा सरकार में पहले आदिवासी वित्त मंत्री थे। उपरबेरा के एक अन्य निवासी, सलखान मुर्मू 1998 में और फिर 1999 में दो बार मयूरभंज से सांसद चुने गए। उनके पिता और दादा अपने समय में उपरबेड़ा पंचायत के मुखिया थे।
उपरबेड़ा गाँव और द्रौपदी मुर्मू का प्रारंभिक जीवन
उपरबेड़ा के खेलराम हांसदा ने गाँव कनेक्शन को बताया, “द्रौपदी मुर्मू ने सातवीं तक गाँव के सरकारी अपग्रेडेड प्राइमरी स्कूल में पढ़ाई की जिसके बाद उन्होंने भुवनेश्वर के गोप गर्ल्स हाई स्कूल में अपनी पढ़ाई जारी रखी।” वहां, वह आदिवासी बच्चों के लिए छात्रवृत्ति की मदद से एक छात्रावास में रहती थी, “वे आगे बताते हैं।
गाँव के एक बुजुर्ग नाथू राम हेम्ब्राम के अनुसार, द्रौपदी मुर्मू के माता-पिता किसान थे और वे उसकी उच्च शिक्षा का खर्च नहीं उठा सकते थे। हेम्ब्राम ने गाँव कनेक्शन को बताया, “उनके शिक्षक, बासुदेव बेहरा ने उनके चाचा, पूर्व वित्त मंत्री, कार्तिक चंद्र टुडू को भुवनेश्वर के रामादेवी महाविद्यालय में कॉलेज में प्रवेश दिलाने के लिए राजी किया।” उन्होंने कहा कि उनकी स्नातकोत्तर की पढ़ाई में गरीबी आड़े आई।
द्रौपदी मुर्मू ने बतौर क्लर्क और शिक्षक के रूप में भी काम किया
स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद मुर्मू ने 1979 से 1983 तक ओडिशा सरकार के कृषि विभाग में एक क्लर्क के रूप में काम किया। उन्होंने 1981 में मयूरभंज के पहाड़पुर निवासी श्याम चरण मुर्मू से शादी की।
उन्होंने 1983 में अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी। तब उनके दो बेटे और एक बेटी थी। मुर्मू ने जल्द ही श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर में पढ़ाना शुरू कर दिया, जो कि रायरंगपुर में अपने घर से लगभग एक किलोमीटर दूर था, जहां वह अपनी शादी के बाद रहने लगी थीं। उन्होंने 1994 से 1997 के बीच मुफ्त में पढ़ाया।
“वह चाहती थीं कि बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले,” स्कूल के एक कर्मचारी दिलीप कुमार गिरि ने गांव कनेक्शन को कक्षा दिखाते हुए याद किया, जहां उन्होंने प्राथमिक छात्रों को पढ़ाया था।
1997 में जब वे रायरंगपुर नगर निकाय के वार्ड नंबर 2 की पार्षद बनीं और उसी वर्ष इसकी उपाध्यक्ष बनीं तो उन्होंने स्कूल जाना बंद नहीं किया। गिरी ने कहा कि वह प्रबंधन को हमेशा बेहतर शिक्षा के लिए सलाह देती रहती थीं।
उन्होंने कहा, “रायरंगपुर से दो बार (2000 और 2004) विधानसभा सदस्य होने के नाते, उन्होंने अपने फंड से स्कूल को एक आध्यात्मिक केंद्र और कुछ कक्षाएं बनाने के लिए दान दिया।”
मुर्मू का जीवन कठिन ही बीता। उनके दोनों बेटों की मौत हो जाती है। उनके बड़े बेटे लक्ष्मण मुर्मू जो 2010 में केवल 25 वर्ष के थे, की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई और उनके छोटे बेटे सिपुन मुर्मू की तीन साल बाद 2013 में एक अन्य सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई। उन्होंने 2014 में अपने पति को दिल का दौरा पड़ने से खो दिया।
द्रौपदी मुर्मू का राजनीतिक सफर
द्रौपदी 1997 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक सक्रिय सदस्य के रूप में राजनीति में शामिल हुईं। वह 2000 में रायरंगपुर में विधान सभा (एमएलए) की सदस्य बनीं और 2009 तक दो कार्यकाल तक इस पद पर रहीं। उन्होंने परिवहन और वाणिज्य मंत्री के रूप में कार्य किया। साथ ही 2004 में मत्स्य और पशुपालन विभाग में मंत्री भी रहीं। उन्हें 2007 में नीलकंठ पुरस्कार मिला और 2009 में ओडिशा में भाजपा अनुसूचित जनजाति समिति की उपाध्यक्ष बनीं।
2009 में मयूरभंज से सांसद और 2014 में रायरंगपुर से विधायक के लिए चुनाव हारने पर द्रौपदी को राजनीतिक झटका लगा।
लेकिन 2015 स्थिति में बदलाव हुआ। इसी साल वे झारखंड की राज्यपाल बनीं और 2021 तक बनी रहीं। 2022 में उन्हें भारत के राष्ट्रपति के लिए चुनाव लड़ने का प्रस्ताव मिला।
“झारखंड के राज्यपाल पद से मुक्त होने के बाद उन्होंने भाजपा के सक्रिय सदस्य के रूप में काम करने की बात कही थी। उन्होंने पार्टी सदस्यों से अपनी जिम्मेदारी देने को कहा था। उन्हें ओडिशा पर गर्व है, खासकर आदिवासी महिलाओं पर,” रैरंगपुर की रहने वाली और भाजपा के वरिष्ठ नेता फागू राम मंडी ने गांव कनेक्शन को बताया।
उपरबेड़ा की चाहत
यदि द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति बनती हैं तो उपरबेरा के लोग अब बदलाव की उम्मीद कर रहे हैं। वे बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं और बेहतर शैक्षिक बुनियादी ढांचे का सपना देख रहे हैं।
गाँव वालों की ख्वाहिश दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है। अपने स्वास्थ्य केंद्र के लिए और डॉक्टरों के अलावा वे शिक्षा सुविधाओं का सपना देख रहे हैं जिसकी उन्हें इतने सालों से कमी है।
गाँव के एक अन्य बुजुर्ग विश्वंभर गिरी ने गांव कनेक्शन को बताया, “हम आदिवासी छात्रों की अच्छी पढाई के लिए गाँव में एक डिग्री कॉलेज चाहते हैं।” वे एक बेहतर सड़क की भी उम्मीद कर रहे हैं जिससे राउरकेला (लगभग 200 किलोमीटर) जाने के लिए ग्रामीणों को राहत मिले।
“हमें एक बांध की जरूरत है,” एक ग्रामीण नाथूराम हेमब्रोम ने कहा। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, “इससे मयूरभंज जिले के कुसुमी के करीब 20 गांवों में सिंचाई की सुविधा मिलेगी।”
दुलारी टुडू कहती हैं कि मैं अपनी सास से चाहती हूं कि वे महिलाओं की मदद के लिए गाँव में पानी की टंकी लगवाएं।
अब सबको 21 जुलाई का इंतजार है जिस दिन राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे घोषित किए जाएंगे।