आप भी बना सकते हैं मिट्टी से अपना घर या दफ्तर, गर्मियों में नहीं पड़ेगी एसी की ज़रूरत

शहर के बड़े से अपार्टमेंट में मिट्टी की दीवारें, ये सुनकर शायद आपको यकीन न हो; लेकिन एक युवा आर्किटेक्ट आजकल लोगों के घरों में मिट्टी की दीवार बनाने में मदद कर रहा है। इसकी ख़ास बात ये है कि ये गर्मी में ठंडा और ठंड में गर्म रहता है।
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शहर के एक अपार्टमेंट में रहने वाली खुशबू को हमेशा अपने गाँव के कच्चे घर की याद सताती थी, लेकिन कंक्रीट की बनी इमारत में उन्हें कहाँ मिट्टी का घर मिलता; लेकिन एक साल पहले उन्हें इसका हल मिल गया। आज उनके घर की दीवार मिट्टी की बनी है, जो भी उनके घर आता है, इसकी तारीफ किए बिना नहीं रह पता है।

यूपी की राजधानी लखनऊ के गोमती विस्तार में रहने वाली खुशबू सिंह गाँव कनेक्शन से बताती हैं, “एक साल पहले मुझे लखनऊ के आर्किटेक्ट के बारे में पता चला; बस फिर क्या था हमने उनसे बात की और एक साल पहले मड वॉल (मिट्टी की दीवार) बनवाई, जैसे एक साल पहले ये दीवार थी अभी भी वैसी ही है।”

वो आगे कहती हैं, “जब भी में इस के सामने खड़ी होती हूँ तो मुझे मेरे पुराने मिट्टी के घर की याद आती है; ये मुझे मेरे बचपन से जोड़ती हैं, इको-फ्रेंडली एनवायरनमेंट हम अपने घर पर ही बना सकते हैं और ये मेरे बच्चों के लिए भी इको-फ्रेंडली है।”

बचपन में जब भी हम अपनी दादी या नानी घर जाते थे तो वहाँ पर खेलने के लिए बड़ा खुला आँगन होता था। गर्मियों में ऊँची छतों की वजह से बिना एसी और कूलर के भी कमरा ठंडा रहता था; लेकिन अब तो शहर ही नहीं गाँवों में भी जहाँ नज़र डालिए कंक्रीट की दीवार नज़र आती है, बस इसी मिट्टी के घरों की कमी पूरा करने के लिए लखनऊ के आर्किटेक्ट ने एक नई पहल शुरू की है।

ऐसे रहता है घर सर्दियों में गर्म और गर्मियों में ठंडा

लखनऊ के आर्किटेक्ट अनंत कृष्ण ने मिट्टी की दीवारों के साथ अपना पर्यावरण-अनुकूल ऑफिस बनाया। अब तो सर्दियों में गर्म और गर्मियों में ठंडा रहने के लिए ऐसे हीटर या एसी का इस्तेमाल भी नहीं करते, जिससे बिजली की बचत हो रही है।

Sustainable और Eco-Friendly घर या बिल्डिंग बनाने पर आज देश में बहुत सी आर्किटेक्चर फर्म्स जोर दे रही हैं, जिससे गों को पानी, बिजली जैसी चीजों के लिए किसी पर निर्भर न होना पड़े। इन्हीं में से एक फर्म है एडवांस ग्रुप ऑफ आर्किटेक्ट, जिसे अनंत कृष्ण चला रहे हैं।

अनंत गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “मॉर्डन वास्तु और लाइफस्टाइल की वजह से हम प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं; पर प्रकृति के क़रीब वापस जा हमें ये सुकून वापिस मिल सकता है।”

अनंत लोगों के लिए सस्टेनेबल घर बनाने की कोशिशों में जुटे हैं। सस्टेनेबल घर से मतलब ऐसे घर से हैं जो प्रकृति के अनुकूल हो, जिसमें सीमेंट की बजाय नेचुरल मटेरियल जैसे मिट्टी या चूने का इस्तेमाल किया गया है। अनंत बिल्डिंग मेटेरियल को प्राकृतिक रखकर घरों को नया रूप दे रहे हैं। उनके घर बनाने के तरीके पारंपरिक हैं, लेकिन घरों का आउटलुक एकदम नया है।

अनंत ने इसकी शुरुआत अपने 300 स्क्वायर फीट के ऑफिस से की है। इको-फ्रेंडली ऑफिस देखने के एकदम आधुनिक है। अनंत ने इसे प्रयोग के तौर पर बनाया है। यहाँ पर प्राकृतिक रुप से रोशनी आती है। दीवार पर छोटे-छोटे घड़े लगे हुए हैं, जिनमें पानी भरा रहता है। इनमें छोटे-छोटे छेद भी हैं जो हवा को ठंडा करते हैं। इनके नीचे एक एक्वेरियम भी है , जिसमें मछलियाँ पाली हुई हैं। यहाँ बिल्कुल भी बिजली नहीं खर्च होती है।

अनंत आगे बताते हैं, “मिट्टी की दीवारें अपने आप गर्मी पैदा नहीं करतीं हैं, ठंडी में हम आधे घंटे के लिए ब्लोअर का इस्तेमाल करते हैं और फिर पूरे समय तापमान गर्म रहता है; हमें पूरे दिन ब्लोअर चलाने की ज़रूरत नहीं होती, मिट्टी की दीवारें गर्मी को बरकरार रखती हैं, और गर्मियों में, मिट्टी की दीवारें ऑफिस को ठंडा भी रखती हैं।”

अनंत ने एक मॉडल के रूप में अपने ऑफिस को बनाया है। दीवारों की सतह को खुरदरा रखा है; जिससे छूकर भी इसे महसूस किया जा सके। ऊंची गुंबददार छतों को कुछ ऐसे तैयार किया गया है कि पूरा वेंटिलेशन हो और अंदर तक रोशनी रहे। अनंत कहते हैं, “सबसे पहले ईंटों पर मिट्टी और भूसी से प्लास्टर किया जाता है; फिर पीली मिट्टी को भूरी मिट्टी और गाय के गोबर के साथ मिलाया जाता है, और आखिर में फेविकोल के साथ पीली मिट्टी का मिश्रण रखा जाता है।”

ऐसा नहीं है कि अनंत को पहली कोशिश में ही सफलता मिल गई; कई बार उनका यह प्रयोग असफल भी हुआ, लेकिन आखिर में उन्हें सफलता मिल गई।

लखनऊ के बिजनौर रोड पर रहने वाले 33 साल के विनय गुप्ता बैंक में काम करते हैं। आजकल अनंत की मदद से अपना घर बना रहे हैं। वो गाँव कनेक्शन से कहते हैं, “जब अनंत ने मुझे बताया कि मटकों की रूफटॉप वॉल बनाई जा सकती हैं तो मुझे थोड़ा अचम्भा हुआ; लेकिन उन्होंने ये भी बताया कि इसे सूरज की किरणों से बचाया जा सकता है और गर्मी में बिजली का बिल भी कम होगा।”

वो आगे बताते हैं, “तब मैने ये फैसला किया कि घर को सस्टेनेबल मॉडल के तौर पर तैयार करना है; ये इको रूफटॉप वॉल बहुत एस्थेटिक भी लगती है और लोगों को एक बार पीछे घर की तरफ देखने पर मजबूर भी करती हैं, ऐसी इको रूफटॉप लोग अपने घर में भी बनवा सकते हैं इसकी लागत भी कम आती है।”

मिट्टी की दीवार पर 9 से 12 महीने में गोबर की लिपाई की ज़रूरत होती है। अनंत कहते हैं, “अगर आप इसकी तुलना सफेदी की लागत से करें, तो यह इसका आधा होगा; यह बहुत सस्ता है, यह केमिकल फ्री मटीरियल है।”

“उत्तर प्रदेश सिंधु-गंगा के मैदानी इलाके में स्थित है; इसलिए हमें रॉ मैटेरियल्स आसानी से मिल जाता है और खर्च भी कम आता है और अगर यह काम आप बैंगलोर में करते हैं तो दोगुनी लागत में बनता है।” अनंत ने गाँव कनेक्शन से कहा।  

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