घटना 23 जुलाई की दोपहर की है। हाथियों का एक झुंड कोनहप्पा गाँव के खेतों के पास से होकर गुजर रहा था। झुंड को देखते ही स्थानीय ग्रामीणों के मन में डर बैठ गया कि कहीं ये बड़े जीव उनके घरों और फसल को बर्बाद न कर दें।
झारखंड में खूंटी जिले के कर्रा रेंज के ग्रामीणों ने झुंड को मोड़ने के लिए हाथियों पर पथराव करना शुरू कर दिया। हाथी वहां से दूर जाने लगे थे कि अचानक झुंड में सबसे पीछे चल रहा हाथी बिदक गया और उसने हमला करने के लिए गाँव वालों की तरफ रुख कर लिया।
मौके पर मौजूद फॉरेस्ट गार्ड जसबीन सालकर आईंद ने पथराव कर रहे ग्रामीणों और गुस्साए हाथियों के बीच बीच-बचाव करने की कोशिश में अपनी जान गंवा दी।
कोनहप्पा में रहने वाले एक व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर गाँव कनेक्शन को बताया, “गाँव से गुजरने वाले हाथियों के झुंड के बारे में सूचना मिलने पर जसबीन और वन विभाग के चार अन्य कर्मी गाँव पहुंचे थे। उन्होंने ग्रामीणों को जानवरों पर पत्थर न फेंकने और उन्हें सुरक्षित रास्ता मुहैया कराने के लिए मनाने की कोशिश की।”
ग्रामीण ने आगे कहा, “जल्द ही, झुंड में से एक हाथी को गुस्सा आ गया और वह भीड़ की ओर आने लगा। वन कर्मचारी हाथी और ग्रामीणों के बीच में खड़े थे, इसलिए हाथी ने उनका पीछा किया। जसबीन भी अपनी जान बचाने के लिए दौड़े लेकिन वह जमीन पर गिर गए। हाथी ने उन्हें अपनी सूंड से उठाया और पूरी ताकत से नीचे फेंक दिया।”
फॉरेस्ट गार्ड को तुरंत स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया। बाद में उन्हें रांची स्थित राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज रेफर कर दिया गया, जहां उन्होंने दम तोड़ दिया।
जसबीन सालकर आईंद देश में बढ़ते मानव-हाथी संघर्ष का ताजा शिकार है। मानव-हाथी संघर्ष पर एक सवाल का जवाब देते हुए, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने पिछले हफ्ते 18 जुलाई को लोकसभा में बताया कि देश में 2019-20 और 2021-22 के बीच, देश में हाथियों के हमले से 1,578 लोग मारे गए हैं।
मंत्री द्वारा साझा किए गए राज्यवार आंकड़ों से पता चलता है कि 322 हताहतों की संख्या के साथ ओडिशा हाथियों के हमलों से होने वाली मौतों की सूची में सबसे ऊपर है। इसके बाद झारखंड (291), पश्चिम बंगाल (240), असम (229), छत्तीसगढ़ (183) और तमिलनाडु (132) आदि राज्यों का नंबर आता है।
खूंटी के डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर कुपदीप मीणा ने गाँव कनेक्शन को बताया, “विभाग ने जसबीन के परिवार को मुआवजे के तौर पर एक लाख रुपये की आर्थिक मदद दी है। मैं पीड़ित परिवार को अधिकतम मुआवजे के लिए सरकार को भी लिखूंगा क्योंकि वन रक्षक ने ड्यूटी के दौरान अपनी जान गवांई है।” अधिकारी ने कहा, “मुआवजे की उचित प्रक्रिया के तहत, जसबीन के छोटे भाई को विभाग में नौकरी मिल जाएगी। विभाग वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया और वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड जैसी संबंधित एजेंसियों को वन रक्षक के परिवार को मानदंडों के अनुसार मदद करने के लिए लिखेगा।”
हाथी के व्यवहार को समझना
झारखंड में अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक संजीव कुमार सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हाथी इंसानों को तब तक नुकसान नहीं पहुंचाते जब तक कि इंसानों द्वारा उन्हें परेशान या छेड़ा नहीं जाता है। वे खाने की तलाश में एक खास रास्ते का अनुसरण करते हैं। कई दशकों से, उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते समय उस विशेष मार्ग का अनुसरण करने की आदत होती है।”
अधिकारी ने कहा, “ग्रामीणों को हाथियों के व्यवहार को समझना होगा और जब वे उनके गाँव में घुस आएं तो उनका पीछा करना या उन्हें परेशान करना बंद कर देना चाहिए।”
सिंह ने आगे बताया कि हाथी तभी घरों और फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं या अनाज खाते हैं, जब ये चीजें उनके रास्ते में आती हैं। उन्होंने कहा, “ऐसी स्थिति में ग्रामीणों को हाथियों के झुंड के हमले से बचे रहने के लिए उन्हें सुरक्षित रास्ता दे देना चाहिए।”
वन अधिकारी के अनुसार, विभाग नियमित रूप से अभियानों के जरिए ग्रामीणों के बीच जागरूकता फैलाता रहता है. लोगों को हाथी क्षेत्र में एक सुरक्षित और सुखी जीवन के लिए विभाग की बातों पर गौर करना चाहिए।
बढ़ता नुकसान
पश्चिमी सिंहभूम जिले के नोवामुंडी ब्लॉक के आजादबस्ती गांव के रहने वाले मोहम्मद इमरान ने बताया कि हाथियों के कारण खेती का नुकसान हर साल बढ़ रहा है। सरकार को ऐसी घटनाओं के लिए ग्रामीणों को दोष नहीं देना चाहिए।
इमरान ने शिकायत करते हुए कहा, “फसल के मौसम ग्रामीणों को भारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हाथी उनके अनाज, मशरूम, कटहल और अन्य फसलों को खा जाते हैं।” उन्होंने बताया, “कुछ साल पहले वन विभाग ने हाथी निरोधक दस्ते का गठन किया था, लेकिन यह फिलहाल सक्रिय नहीं है। इसलिए हमारे क्षेत्र में अक्सर हाथी और मानव संघर्ष की घटनाएं होती रहती हैं।” वह आगे कहते हैं, “ग्रामीण तो वैसे ही हाथियों के हमले के शिकार हैं। उन्हें वन्यजीवों को परेशान करने के लिए दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए। अनदेखी और विभागीय उदासीनता के कारण पीड़ितों को उचित मुआवजा तक नहीं मिलता है।”
झारखंड सरकार के नियमों के अनुसार, हाथी के हमले से घायल लोगों को 15,000 रुपये से लेकर 200,000 रुपये का मुआवजा दिया जाता है, जबकि जानमाल के नुकसान के मामलों में व्यक्ति के परिवार को 400,000 रुपये मिलते हैं। फसल को हुए नुकसान के लिए 40,000 रुपये तक और पालतू जानवरों के नुकसान के लिए 30,000 रुपये तक, घर के नुकसान के लिए 130,000 रुपये तक और अनाज के नुकसान के लिए 8,000 रुपये तक मुआवजा दिया जाता है।
मानव-हाथी संघर्ष से निपटने के लिए उन्नत तरीकों की जरूरत
पश्चिम सिंहभूम जिले (मौजूदा समय में चाईबासा संभाग के वन प्रभारी) के सासंगड़ा रेंज के पूर्व फॉरेस्ट गार्ड सुमित कुमार ने गांव कनेक्शन को बताया कि हाथियों को संभालने के पारंपरिक तरीकों की समीक्षा की जानी चाहिए।
कुमार ने कहा, “ग्रामीण पथराव शुरू कर देते हैं, तो वहीं फॉरेस्ट गार्ड पटाखे, मशाल और अन्य पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल कर हाथियों को आबादी वाले क्षेत्रों से दूर भगाने की कोशिश में लग जाते हैं” वह आगे कहते हैं, “ग्रामीणों के साथ-साथ वन रक्षकों और विभाग के अन्य कर्मियों को सुरक्षित रूप से काम करने के लिए नए तरीके अपनाए होंगे. वो तरीके जो जंगली हाथियों के व्यवहार और उनके मनोविज्ञान पर आधारित हो”
नए तरीकों के बारे में बात करते हुए वन प्रभारी ने बताया, “केरल में एक किसान ने हाथियों से अपनी फसल बचाने के लिए एक अनोखी तरकीब अपनाई थी। उसने अपने खेत के आस-पास कैक्टस के पौधे लगा दिए। हाथियों के हमलों से खेतों और मानव जीवन को बचाने के लिए गांव की सीमाओं पर इस तरह के तरीकों को अपनाया जा सकता है।”
वन रक्षकों और वन कर्मियों के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में बात करते हुए कुमार ने कहा कि एक फॉरेस्टर के पास सामान्य रूप से 1,000 एकड़ (लगभग 450 फुटबॉल मैदानों के बराबर) में फैले क्षेत्र के भीतर सभी वन विभाग के मामलों का प्रभार होता है।
उन्होंने शिकायत लहजे में कहा, “झारखंड में लगभग 16,020 फॉरेस्ट गार्ड हैं। जंगल में अपनी जिम्मेदारियों को निभाने के लिए उनके पास आमतौर पर कोई हथियार नहीं होता है। विभाग हाथियों और अन्य वन्यजीव जानवरों से सुरक्षा के लिए अपने कर्मियों को ट्रैंक्विलाइज़र देता है। लेकिन अधिकांश वन प्रभागों में ट्रैंक्विलाइज़र गन भी उपलब्ध नहीं है।”