हाथी और महावत के बीच का रिश्ता बहुत ही ख़ास और अटूट होता है। इस प्यार और विश्वास को बनाने में कई साल लगते हैं। कुछ ऐसे ही रिश्ते की एक कहानी है दुधवा नेशनल पार्क की हथिनी सुलोचना उसके महावत अयूब खान की भी है।
सुलोचना 2008 में, पश्चिम बंगाल से चार अन्य साथियों के साथ दुधवा आई थी। अयूब खान के लिए सुलोचना उनके परिवार जैसी ही तो है।
वह उसे थपथपाते हुए कहते हैं, “उस समय पाँच हाथी आए थे। उन्हें अलग-अलग बांट दिया गया, और हमें सुलोचना दी गई। तब से सुलोचना के साथ हमारा बहुत करीबी रिश्ता बन गया है।”
अयूब की ज़िंदगी सुलोचना के इर्दगिर्द घूमती है। खान बताते हैं, ”सुबह उठकर सबसे पहले देखते हैं कि हमारा हाथी ठीक है या नहीं। चारों ओर घुमाकर जानवरों की देखभाल करते हैं। इसका गोबर देखते हैं, ताकि यह जान सकें कि इसका पेट ठीक है। आंखें देखते हैं कि सही हैं या नहीं, और अगर अच्छे से खा-पी रही है, तो समझते हैं कि सब ठीक है। अगर कोई समस्या होती है, तो तुरंत अधिकारियों को सूचना देते हैं, जो डॉक्टर को बुलाकर इलाज कराते हैं। जैसे बच्चे की देखभाल करते हैं, वैसे ही इसका भी ख्याल रखते हैं।”

अगर सुलोचना ठीक है तो वे दोनों गैंडों की निगरानी के लिए निकल पड़ते हैं। खान बताते हैं,”सुलोचना खाने में डेढ़ कुंतल तक खा जाती है। जंगल में अपनी मर्जी से जो भी खाना है, वह खाती है और हम भी उसे चारा काटकर देते हैं। रात भर वह धीरे-धीरे खाना खाती है, और बीच-बीच में थोड़ी देर सो भी जाती है। सुबह होते ही हम इसे तैयार करके फिर से मॉनिटरिंग के लिए ले जाते हैं। शाम को इसका राशन दिया जाता है जिसमें आटा, गुड़, नमक, तेल, और चना होता है।”
अगर सुलोचना अयूब को अपने पास नहीं पाती तो बेचैन हो जाती है, अयूब कहते हैं, “गर हम पास न हों, तो सुलोचना थोड़ा बेचैन हो जाती है, लेकिन जब हम होते हैं, तो यह बहुत खुश रहती है।”
“देखिए, अभी यह कैसे अपना मुंह उठा रही है और मेरे हाथ से प्यार कर रही है। सुलोचना का भोला स्वभाव हमें बहुत प्यारा लगता है। हम इसे अपने परिवार की तरह मानते हैं और पूरी देखभाल करते हैं कि इसे कोई तकलीफ न हो, “अयूब कहते हैं।