लखनऊ, उत्तर प्रदेश। पहले आशा बहू सविता को फाइलेरिया से बचाव की दवा खाने के लिए लोगों के घर-घर जाकर समझाना पड़ता था, लेकिन फिर भी लोग दवा खाने से हिचकते थे। सविता लखनऊ जिले के बंथरा गाँव में आशा कार्यकत्री हैं।
लेकिन इस साल कुछ अलग हो रहा है। उत्तर प्रदेश, जो देश में फाइलेरिया के मामलों पर दूसरा प्रदेश है, के ग्रामीण खुद से आगे आ रहे हैं और क्यूलेक्स मच्छरों के कारण होने वाली वेक्टर-जनित बीमारी के लिए दवा की मांग कर रहे हैं, जिससे शरीर के अंगों का असामान्य रूप से विस्तार होता है और गंभीर विकलांगता होती है।
“आमतौर पर, मुझे ग्रामीणों को दवाएं लेने के लिए मनाना पड़ता था। वे मुझसे दवा लेते थे, लेकिन इसे तुरंत लेने से बचते थे, यह कहते हुए कि वे इसे बाद में लेंगे, “30 वर्षीय फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ता सविता ने गाँव कनेक्शन को बताया।
“लेकिन, इस बार, चीजें अलग हैं। ग्रामीण दवा खुद से मांग रहे हैं और इसका सेवन कर रहे हैं, ”आशा बहू ने कहा। 5,049 की आबादी वाले बंथरा गाँव में चार आशा और एक संगिनी हैं। यह लखनऊ जिले में सरोजिनी नगर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) के अंतर्गत आता है।
बंथरा गाँव की एक अन्य आशा बहू कृष्णा चौरसिया का भी कुछ ऐसा ही अनुभव रहा है। वो गाँव के दीपक गौतम के पास गई थी, जिसने फाइलेरिया की दवा लेने से साफ मना कर दिया था।
हैरानी की बात यह है कि अगले दिन दीपक उनके दरवाजे पर खुद दवा मांगने पहुंचा था।
“आखिर ये बदलाव कैसे आया?” कृष्णा ने उससे पूछा।
दरअसल ये बदलाव एक इंटरएक्टिव वॉयस रिस्पांस कॉल और एक व्हाट्सएप मैसेज के जरिए आया था जो दीपक तक पहुंचा था, जिसमें बताया गया था कि अगर कोई व्यक्ति संक्रमित नहीं है तो भी हाथी पांव दवाओं का सेवन करना होगा। उत्तर प्रदेश में फाइलेरिया रोग को स्थानीय रूप से हाथी पांव (इसमें रोगी के पैर सूज जाते हैं) के नाम से जाना जाता है।
ग्रामीण जनता के व्यवहार में इस परिवर्तन का श्रेय उत्तर प्रदेश सरकार के डायरेक्ट टू कंज्यूमर फाइलेरिया अवेयरनेस कैंपेन (डी2सी) को जाता है। यह अभियान मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) कार्यक्रम के लॉन्च के अनुरूप है, जिसे 2027 तक स्थानिक बीमारी को खत्म करने के उद्देश्य से इस साल 10 फरवरी को केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण सचिव, राजेश भूषण द्वारा शुरू किया गया था।
“हमने आईवीआर कॉल और व्हाट्सएप चैट बॉट के माध्यम से आशाओं, आम लोगों, स्कूल के प्रधानाचार्यों तक पहुंचने के लिए अभियान चलाया और उन्हें दवाओं का सेवन करने के तरीके के बारे में बताया, ”श्रेया एम, IHAT (इंडिया हेल्थ एक्शन ट्रस्ट) की उत्तर प्रदेश तकनीकी सहायता इकाई (UPTSU) की संचार अधिकारी ने गाँव कनेक्शन को बताया।
IHAT (इंडिया हेल्थ एक्शन ट्रस्ट) की उत्तर प्रदेश तकनीकी सहायता इकाई (UPTSU) द्वारा डायरेक्ट टू कंज्यूमर अवेयरनेस कैंपेन चलाया गया था, ताकि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन को प्रदेश के प्रभावित 51 जिलों में से 18 स्थानिक जिलों में फाइलेरिया से निपटने में मदद मिल सके।
तकनीकी इकाई व्हाट्सएप पर सिंगल-क्लिक प्रतिक्रिया भी मांग रही है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि किसने दवाओं का सेवन किया है।
“प्रक्रिया जारी है। एक बार हमारे पास पूरा डेटा हो जाने के बाद, हम स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा एक्सेस किए जाने के लिए एक विश्लेषणात्मक डेटा डैशबोर्ड तैयार करेंगे, ”श्रेया ने कहा।
विकलांगता का एक प्रमुख कारण
लिम्फेटिक फाइलेरिया (एलएफ), एलिफेंटाइसिस या हाथी पांव, दुनिया भर में विकलांगता के प्रमुख कारणों में से एक माना जाता है। यह अंगों की असामान्य सूजन का कारण बनता है।
नेशनल वेक्टर बोर्न डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम (NCVBDC) के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 83,106 लिम्फोएडेमा (क्रोनिक लिम्फैटिक फाइलेरियासिस) के मामले दर्ज किए गए, जो 2021 में देश में 525,440 के कुल मामलों का 15 प्रतिशत था। यह बिहार के बाद दूसरा सबसे अधिक प्रभावित राज्य है।
लिम्फेटिक फाइलेरिया लाइलाज है, और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, निवारक दवा के माध्यम से संक्रमण के प्रसार को रोककर ही रोग का उन्मूलन संभव है। बीमारी होने या न होने के बावजूद, संक्रमित लोगों के रक्त से माइक्रोफ़िलेरिया को सुरक्षित रूप से साफ़ करने के लिए, स्थानिक जिलों में लोगों को दवा की जरूरत होती है।
एमडीए कार्यक्रम के तहत हर साल लोगों को मुफ्त में दवाएं दी जाती हैं।
अंबरपुर गाँव की सुंदरी थारू ने कहा कि उन्हें याद भी नहीं कि कब उन्हें हाथी पांव हो गया। “अगर मैं चलती हूं तो मेरे पैरों में दर्द होता है और मेरे तलवे में जलन होती रहती है। मुझे हमेशा जूड़ी-बुखार से परेशानी होती है, “सुंदरी ने गाँव कनेक्शन को बताया। 58 वर्षीया और उनके पति जगरूप ने बुखार और दर्द को नियंत्रित करने के लिए इंजेक्शन के माध्यम से राहत पाने के लिए अपनी बचत का एक बड़ा हिस्सा खर्च किया है। यहां तक कि बमुश्किल पंद्रह कदम दूर से हैंडपंप से पानी भरकर लाना भी उनके लिए मुश्किल भरा है।
आशा कार्यकर्ता अपने गाँवों में फाइलेरिया के मरीजों की पहचान कर रही हैं। उदाहरण के लिए, संगिनी नीतू रावत, जो बंथरा उप-केंद्र की आठ आशाओं के एक समूह की प्रमुख हैं, ने ऐसे 25 मामलों की पहचान की है। बंथरा उप-केंद्र में अंबरपुर और बंथरा सहित आठ गाँव शामिल हैं, जिनकी कुल जनसंख्या 10,203 है।
व्हाट्सएप, रेडियो और आईवीआर कॉल
गया प्रसाद के वफादार साथी, उनके रेडियो ने उन्हें हाथी पांव के बारे में सूचित किया। 73 वर्षीय नेत्रहीन गया प्रसाद को इस बीमारी और इससे निपटने के लिए दवा लेने के महत्व के बारे में बताया गया।
Also Read: झारखंड में आदिवासी महिलाएं अब समझ रहीं हैं संस्थागत प्रसव के फायदें
“मेरे दिन की शुरुआत मेरे रेडियो पर समाचार सुनने से होती है। उन्होंने हाथी पांव के बारे में जानकारी दी गई थी, इसलिए, जब आशा बहू हमें गोली देने आई, तो मैंने इसे आसानी से ले लिया, “बंथरा में रहने वाले गया प्रसाद ने गाँव कनेक्शन को बताया।
इसी तरह, बंथरा बाजार में रहने वाले 57 वर्षीय ब्रज बहादुर सिंह से जब आशा बहू साधना ने मुलाकात की, तो उन्होंने कोई विरोध नहीं किया और अपने जीवन में पहली बार फाइलेरिया रोधी दवाएं लीं। उन्होंने कहा कि उन्हें भी ऐसा करने के लिए एक व्हाट्सएप संदेश मिला था।
जिला वेक्टर जनित रोग अधिकारी रितु श्रीवास्तव गाँव कनेक्शन को बताती हैं कि इस साल, दवा लेने में कोई अनिच्छा या प्रतिरोध नहीं है।
Also Read: अप्रशिक्षित, अयोग्य लेकिन जरूरी – ग्रामीण भारत के ‘झोलाछाप’ डॉक्टर
आशा को फाइलेरिया रोधी दवा देने के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया गया है। सविता उन चार आशा बहुओं में से एक हैं, जो बंथरा गाँव के 5,049 निवासियों में से 1,280 को एल्बेंडाजोल, डी.ई.सी. और आइवरमेक्टिन टैबलेट लेने के लिए जिम्मेदार हैं।
सरोजिनी नगर के पीएचसी में आयोजित एक दिवसीय प्रशिक्षण सत्र में, सविता को नई जोड़ी गई इवरमेक्टिन दवा से परिचित कराया गया, जिसे एक व्यक्ति की लंबाई (90 सेमी से कम के लिए कोई नहीं, 90 सेमी से 119 सेमी के लिए एक गोली), दो गोलियाँ 119 सेमी से 140 सेमी, तीन 140 सेमी से 158 सेमी, और चार 158 सेमी से अधिक माप वाले व्यक्ति के लिए) के आधार पर प्रशासित किया जाना था।। इसके लिए उसे एक नापने का टेप भी सौंपा गया। आशा के विभिन्न बैचों के लिए 27 जनवरी से 2 फरवरी तक प्रशिक्षण चलाया गया।
ऐसे शुरू हुआ अभियान
जिला-स्तरीय मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन रिपोर्ट के आधार पर, 84.2 प्रतिशत, यानी लखनऊ जिले में 5,330,985 लक्षित आबादी में से 4,488,090 को 10 फरवरी से 16 मार्च के बीच फाइलेरिया रोधी दवाएं दी गईं।
रिपोर्ट से यह भी पता चला कि जिले में 40.6 प्रतिशत दवाओं के सेवन से इनकार करने वालों को परिवर्तित किया गया था; और सरोजिनी नगर पीएचसी के तहत ब्लॉकों में 70 प्रतिशत। स्वास्थ्य सेवा कर्मचारी इन नंबरों में योगदान देने वाले डिजिटल जागरूकता अभियान का श्रेय देते हैं।
सरोजिनी नगर पीएचसी के स्वास्थ्य पर्यवेक्षक राम जानकी पाल ने एमडीए अभियान के दौरान 75 टीमों का नेतृत्व किया, जिनमें से नौ बंथरा से थीं।
“अभियान को इस बार लोगों से अच्छी प्रतिक्रिया मिली। आशाओं के लिए बाधाएं कम थीं, “उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया।
किरण, सोशल मोबिलाइज़र कमेटी का एक हिस्सा – दवा प्रशासन के दौरान समुदायों को जुटाने के लिए एक पीएचसी स्तर की समिति – आशा को प्रशिक्षण देने के अलावा, स्वयं सहायता समूहों, कोटेदारों, प्रधान और स्कूल अधिकारियों को भी मदद करने के लिए नियुक्त किया गया है।
“मास मीडिया जागरूकता अभियान ने हमें आगे बढ़ने के लिए एक तैयार पिच दी। जब हम लोगों से मिले, तो उन्हें फाइलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम के बारे में पहले से ही एक कॉल या टेक्स्ट मिला था, “किरण ने गाँव कनेक्शन को बताया।
वेक्टर जनित रोग जिला अधिकारी रितु श्रीवास्तव गाँव कनेक्शन को बताती हैं, “हमने इस बार न केवल दवाइयां वितरित की बल्कि उन्हें प्रशासित भी किया।”
निगरानी और डिजिटल डेटा रिकॉर्डिंग
सविता को एमडीए कार्यक्रम के तहत प्रत्येक घर की दीवारों पर चार भागों में विभाजित वर्ग बनाने के लिए प्रशिक्षित किया गया था।
“हमें घर का नंबर, परिवार के कुल सदस्यों, उनमें से कितने ने दवा ली और दवा देने की तारीख लिखनी थी। सविता ने समझाया, हमें दवा की खपत को इंगित करने के लिए परमानेंट मार्कर की मदद से उपयोगकर्ताओं की तर्जनी के नाखून पर निशान लगाया था।
किरण ने कहा कि इस अभ्यास ने किरण और राम जानकी जैसे सोशल मोबलाइजर कमिटी और पर्यवेक्षकों को बेहतर निगरानी करने और “आंशिक कवरेज वाले परिवारों तक पहुंचने” में मदद की।
अब आशा के अभियान का अंतिम चरण बचा है: फाइलेरिया एमडीए डेटा की डिजिटल रिकॉर्डिंग।
Also Read: अप्रशिक्षित, अयोग्य लेकिन जरूरी – ग्रामीण भारत के ‘झोलाछाप’ डॉक्टर
ई-कवच एक डिजिटल पोर्टल है जिसे 2022 में टीकाकरण और स्वास्थ्य डेटा रिकॉर्ड करने के लिए लॉन्च किया गया था। इसका उपयोग फाइलेरिया के डेटा को अपडेट करने के लिए भी किया जा रहा है।
रितु श्रीवास्तव ने कहा, “डिजिटल रिकॉर्ड की शेल्फ लाइफ लंबी होती है और यह आशा से लेकर जिला स्वास्थ्य निकायों तक डेटा के आने-जाने में लगने वाले समय से बचने का एक शानदार तरीका है।”
आशा से उम्मीद की जाती है कि वे सर्वेक्षण किए गए प्रत्येक परिवार का एमडीए कवरेज दर्ज करें।
आशा ने पहले ही डेटा मैन्युअल रूप से एकत्र कर लिया है और अब उसे ई-कवच पर फिर से दर्ज करना होगा। उसी के लिए समय सीमा 31 मार्च थी, और समय सीमा को पूरा करने के बारे में कुछ चिंता थी क्योंकि इंटरनेट कई दिनों से ठीक नहीं था और जहां सविता जैसे कुछ लोगों के लिए यह एक आसान प्रक्रिया रही है, कुछ लोगों के मुश्किल भरी रही।
बंथरा गाँव की सभी आशाओं में सबसे बुजुर्ग चंपा के लिए यह काम मुश्किल भरा था। 65 वर्षीय ई-कवच डेटा अपलोड में मदद के लिए अपने पोते-पोतियों पर निर्भर हैं।
लेकिन उम्र में बहुत छोटी सविता ने कहा, “वह बहुत आसान है। मुझे बस इवरमेक्टिन की खुराक डालनी थी। रजिस्टर में, मुझे इतनी जानकारी लिखनी है।
“ई-कवच अभी भी एक प्रारंभिक अवस्था में है और सटीक दक्षता जानना कठिन होगा। डिजिटल डेटा दीर्घावधि में उपयोगी होगा लेकिन वर्तमान में चुनौतियां बनी हुई हैं। हमें अब तक पोर्टल के माध्यम से केवल 27 प्रतिशत डेटा प्राप्त हुआ है, ”रितु श्रीवास्तव ने कहा।
Also Read: ई-संजीवनी- झारखंड में आदिवासी समुदायों के दरवाजों तक पहुंची स्वास्थ्य सेवाएं