साइबेरिया (हावड़ा), पश्चिम बंगाल। इस साल दुर्गा पूजा को और खास बनाने के लिए पश्चिम बंगाल में कई योजनाएं चल रही हैं। कोविड-19 की वजह से लगे प्रतिबंधों के चलते पिछले दो सालों से जश्न नहीं मना पा रहे थे। इसलिए लोग चाहते हैं कि इस साल मां दुर्गा का स्वागत कुछ इस तरह हो जैसे पिछले दो सालों में महामारी के दौरान नहीं हुआ था।
लेकिन हर जगह हालात एक समान नहीं हैं। राज्य की राजधानी कोलकाता से 100 किलोमीटर दूर हावड़ा जिले के साइबेरिया गाँव में मायूसी का माहौल है।
कानोन मंडल कई दिनों से ठीक से सो नहीं पाईं हैं और न ही उन्होंने त्योहार के लिए अपने बच्चों और पोते-पोतियों के लिए नए कपड़े खरीदे हैं। मंडल ने बताया कि उसके पास नए कपड़ों और उत्सव के बारे में विचारने के अलावा और अधिक बड़े मसले हैं, जिसने उन्हें काफी परेशान किया हुआ है।
मंडल ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हम डर में जी रहे हैं क्योंकि हमारा घर रूपनारायण के किनारे से कुछ ही मीटर की दूरी पर है।” उन्होंने नदी के क्षतिग्रस्त तटबंधों की ओर इशारा करते हुए कहा, “अगस्त के बीच में भारी बारिश की वजह से पानी का स्तर काफी बढ़ गया था और वो मिट्टी के तटबंधों को तोड़ते हुए हमारे घरों में घुस गया। हमें घर छोड़कर भागना पड़ा। घुटनों तक पानी आ गया था। यह फिर से हो सकता है।” इन तटबंधों से अभी भी पानी बह रहा है।
रूपनारायण नदी के तट के 22 किलोमीटर के दायरे में बसे 17 गाँवों में 50 हजार लोग रहते हैं जो तटबंधों के टूटने के डर के साये में अपनी जिंदगी जी रहे हैं।
गाँव के लोगों का कहना है कि कई जगहों पर नदी के किनारे बने मिट्टी के तटबंध टूट गए हैं और उनकी मरम्मत नहीं की गई है।
मंडल कहती हैं, “हमें प्रशासन ने मरने के लिए छोड़ दिया है। जब हमारा जीवन दांव पर लगा है तो हम दुर्गा पूजा मनाने के बारे में कैसे सोच सकते हैं।”
रुका हुआ मनरेगा फंड
ग्रामीणों की शिकायत है कि केंद्र सरकार के मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005) के लिए फंड इस साल मार्च से खत्म हो गया था। उसके बाद से तटबंध की मरम्मत का काम रुका हुआ है। इसी फंड के तहत गांव वालों ने मरम्मत का काम किया था।
आरोप है कि राज्य सरकार पर भ्रष्टाचार और हेराफेरी के आरोपों के चलते केंद्र सरकार की ओर से मनरेगा का पैसा आना बंद हो गया। इसके बारे में स्थानीय समाचार एजेंसियों ने व्यापक रूप से खबरें प्रकाशित की हैं।
अप्रैल में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था कि योजना में 1 करोड़ 10 लाख लोगों को रोजगार देने के बावजूद केंद्र को मनरेगा के काम के लिए राज्य को 2,786 करोड़ रुपये का बकाया भुगतान करना बाकी है।
क्षेत्र में मनरेगा के काम की निगरानी करने वाले इंद्रजीत डोलुई ने गाँव कनेक्शन को बताया, “आम तौर पर हम मानसून की शुरुआत से पहले तटबंधों की मरम्मत का काम शुरू कर देते हैं, लेकिन फंड फ्रीज हो गया है।” उन्होंने कहा, “इस काम में लगे स्थानीय लोग वेतन के रूप में रोजाना 213 रुपये कमाते हैं। लेकिन फंड पर लगी रोक की वजह से उनमें से अधिकांश का लगभग 50 दिनों का भुगतान नहीं हो पाया है। योजना लागू होने के बाद से ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।”
80 किलोमीटर लंबी रूपनारायण नदी पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले के छोटा नागपुर पठार में ढलेश्वरी से अपनी यात्रा शुरू करती है और हुगली नदी में मिलने से पहले राज्य के विभिन्न जिलों से होकर गुजरती है। नदी पूर्वी मिदनापुर और हावड़ा जिलों की पूर्वी सीमा बनाती है।
आजीविका का नुकसान
टूटे हुए तटबंधों और उनके घरों व कार्यस्थलों पर बने लगातार बाढ़ के खतरे ने क्षेत्र में रहने वालों की आजीविका को खतरे में डाल दिया है।
साईबेरिया गाँव के रहने वाले 68 साल के मृत्युंजय डोलुई ने याद करते हुए कहा कि पिछले साल जब नदी टूट गई थी, तो उनके घरों में पानी घुस गया था। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, “हम किसी तरह अपनी जान बचाने में कामयाब रहे। लेकिन क्या इस साल भी ऐसा हो पाएगा। क्योंकि इस साल स्थिति और भी खराब है। मिट्टी के तटबंध और भी कमजोर हो गए हैं क्योंकि उन पर कोई मरम्मत नहीं की गई है।”
ईंट भट्ठा कर्मचारी पुलिन प्रमाणिक ने गाँव कनेक्शन से शिकायत करते हुए कहा, “श्यामपुर ब्लॉक के गांवों ईंट भट्टों की भरमार है और वे हजारों स्थानीय लोगों को रोजगार दे रहे हैं। लेकिन नदी का पानी भट्टों में घुसकर उन्हें बरबाद कर रहा है। इसकी वजह से कई दिनों तक काम नहीं कर पाए। “
राज्य सरकार ने अपनी ओर से मदद के लिए कुछ उपाय किए हैं लेकिन ग्रामीण उसे लेकर आश्वस्त नहीं हैं।
साइबेरिया गाँव के मृत्युंजय ने ताना मारते हुए कहा, “प्रशासन किनारों पर ऐसी बोरियां रख रहा है जो रेत से नहीं बल्कि मिट्टी से भरे हुए हैं। गांवों में पानी आने से रोकने के लिए दो बोरियों की परत बिछाई जा रही है। लेकिन यह एक मजाक है, ” वह आगे कहते हैं, “पिछले साल पानी कई फीट बढ़ गया था। हमें विरोध न करें, इसके लिए इन बोरियों को यहां रखा गया है, जो सिर्फ एक दिखावा है। लेकिन यह काम नहीं करेगा।”
58 साल के कॉन्ट्रैक्चुअल वर्कर पोरिकारी बार भी चिंतित है। उन्होंने कहा, “तटबंधों की खराब स्थिति के कारण हम पहले से ही प्रकृति की दया पर जी रहे हैं और फंड न होने के कारण हमारा काम भी बंद हो गया है। यह हमारे लिए सबसे दुखद और नीरस दुर्गा पूजा होगी।”
पीने के साफ पानी की कमी
नदी किनारे के अधिकांश गांव पीने के साफ पानी की कमी से जूझ रहे हैं। पड़ोसी बानिया गांव के सुभंगिनी बेहरा ने गांव कनेक्शन को बताया, “हम पीने के पानी के लिए हैंड पंपों पर निर्भर हैं। दो तालाब थे, जिन्हें प्रशासन ने बर्तन धोने और नहाने के इस्तेमाल किए जाने के लिए खोदा था। लेकिन इनमें से भी एक तालाब मिट्टी के तटबंध के टूट जाने की वजह से नदी में बह गया।”
52 साल के बेहरा ने कहा, “दो गाँवों, साइबेरिया और बनिया की आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए अब हमारे पास एक ही तालाब बचा है। उसी में औरतें बर्तन धोती हैं और उसी में लोग नहाते हैं। लेकिन अब यह पानी गंदा हो गया है। हम शरीर पर चकत्ते पड़ने लगे हैं।”
पर्यावरणविदों के मुताबिक, अगर समस्या का समाधान करना है तो राज्य सरकार को और भी बहुत कुछ करना होगा। हावड़ा के पर्यावरणविद् सुभमॉय घोष ने गांव कनेक्शन को बताया, “ग्रामीणों की इस परेशानी का मुख्य कारण घटिया तटबंध हैं। सरकार को उनकी मरम्मत करनी चाहिए। इससे स्थानीय लोगों और प्राकृतिक आवास दोनों को ही मदद मिलेगी। “
स्थानीय प्रशासन ने अपनी ओर से जोर देकर कहा कि वह वो सब कर रहा है जो वह कर सकता है। एक वरिष्ठ ब्लॉक स्तर के अधिकारी ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए गांव कनेक्शन को बताया, “हम तटबंधों की मरम्मत के लिए पूरी सावधानी बरतते हैं। हर हफ्ते निगरानी की जाती है और मामूली क्षति की जल्द ही मरम्मत की जाती है। हमने पहले ही राज्य सरकार को तटबंधों को बड़े नुकसान की मरम्मत के संबंध में एक प्रस्ताव भेजा है।”