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मलेशिया में प्रवासी भारतीय सम्मेलन में किसानों की भागीदारी का क्या मायने हैं?  

प्रवासी भारतीयों के संगठन 'गोपियो' (ग्लोबल आर्गेनाइजेशन ऑफ़ पीपल ऑफ़ इंडियन ओरिजिन) के मंच पर जहाँ देश के आर्थिक विकास में प्रवासी भारतीयों के योगदान पर चर्चा हुई वहीं खेती किसानी में कमाल कर रहे किसान भाई बहनों को भी इसका श्रेय दिया गया।

मलेशिया में दुनियाभर से प्रवासी भारतीय एक मंच पर जुटे। वैसे तो उनका ये जुटाव नया नहीं है, हर साल किसी एक देश में ये साथ बैठते हैं और अपने अनुभव साझा करने के साथ आगे की योजना या सुझाओं पर चर्चा करते हैं; लेकिन इस साल ये ख़ास था। इसकी दो प्रमुख वजह है। पहला प्रवासी भारतीय किसानों के प्रतिनिधि मंडल का भी इसमें शामिल होना, दूसरा भारत में लोकसभा चुनाव के बाद सहयोगी दलों के साथ केंद्र में सरकार बनने के बाद इसका आयोजन। प्रवासी भारतीयों के संगठन ‘गोपियो’ (ग्लोबल आर्गेनाइजेशन ऑफ़ पीपल ऑफ़ इंडियन ओरिजिन) के मंच पर जहाँ देश के आर्थिक विकास में प्रवासी भारतीयों के योगदान पर चर्चा हुई वहीं खेती किसानी में कमाल कर रहे किसान भाई बहनों को भी इसका श्रेय दिया गया।

गोपियो इंटरनेशनल के उपाध्यक्ष विनय चंद दसोय ने कहा कि, हमारे पुरखे भारत से दूर खेती किसानी या मजदूरी के लिए अफ्रीका या यूरोप के देशों में गए थे, जहाँ हाड़तोड़ मेहनत के दम पर अपनी ज़रूरत को साबित किया। कृषि क्षेत्र में अफ़्रीकी देशों में प्रवासी भारतीय मिसाल कायम कर रहे हैं; कृषि तकनीक या उन्नत बीज उपलब्ध कराने में भारत का सहयोग भी उल्लेखनीय है।

मलेशिया सम्मेलन से पहले मालदीव और बांग्लादेश के प्रतिनिधियों को लेकर कुछ चिंता जरूर थी, लेकिन अब मालदीव में भारत को लेकर सुर कुछ बदले हुए हैं। वहाँ के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्जू जल्द भारत की आधिकारिक यात्रा पर आने वाले हैं तब शायद भारत और भारतीयों को लेकर मौजूदा सोच में सकारात्मक बदलाव की उम्मीद हो सकती है। इधर बांग्लादेश में सरकार बनने के एक महीने बाद ही वहाँ की अंतरिम सरकार ने पहले से चले आ रहे प्रतिबंध को और कड़ा कर दिया है। जिसका असर भारत में आने वाली हिल्सा मछली पर पड़ सकता है। भारत शुरू से सभी देशों के साथ मैत्री संबंधों को मजबूत करने पर जोर देता रहा है। एशिया ही नहीं, अफ़्रीकी देशों के साथ भी भारत हमेशा एक दोस्त की तरह खड़ा रहा है।

आजादी के बाद से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक भारत की लंबी यात्रा में भारतीय विदेश नीति प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से भारत केंद्रित विचार समेत समय के साथ में परिवर्तित होती रही है। आज भारत की रणनीति साफ है कि वो सबको साथ लेकर चलने में यकीन रखता है, लेकिन सुरक्षा के सवाल पर वो कोई समझौता नहीं करता ये भी साफ़ है। भारत ने अमृत महोत्सव वर्ष तक जो लंबी यात्रा तय की है‚ वह स्वतंत्रता के बाद अपने प्रांतों को मजबूत करने‚ बुनियादी ढांचे के पुनÌनर्माण और गरीबी का मुकाबला करने से शुरू की थी‚ अब वह यात्रा रणनीतिक‚ कूटनीतिक और आर्थिक रूप से पूरे विश्व के सामने मुख्य अभिकर्ता के रूप अपने निराशावादी दृष्टिकोण से आक्रामकतारूपी दृष्टिकोण के रूप में उभर कर आ रही है। अब लोग भारत और भारतीयों को एक विशाल मगर ताकतवर देश में गिनते हैं।

मौजूदा दौर में भारत की विश्व में स्थिति को देखें तो आभास होता है कि पूरे विश्व के सामने वैश्विक महामारी के दौरान और उसके बाद में की गई चिकित्सा कूटनीति और मानवीय सहायता पहलों के जरिए भारत ‘अंतरराष्ट्रीय राजनीति का केंद्र’ बनकर उभरा है। इस सभी के बीच में भारत ने अंतरराष्ट्रीय भागीदार के रूप में स्वयं की छवि को अफ्रीकी देशों समेत विश्व के अन्य देशों के सामने मिशन सागर और मानवीय सहायता पहल कार्यक्रम के जरिए मजबूत किया है। यह सब बताता है कि अफ्रीकी देशों के साथ प्रगाढ़ होते संबंध भारत की अफ्रीकी महाद्वीप के प्रति दिलचस्पी दिखाते हैं। भारत और अफ्रीका महाद्वीप के ऐतिहासिक संबंधों ने हाल के वर्षों में पुनरुधार का अनुभव किया है। नतीजा ये है कि भारत-अफ्रीका व्यापार पहले से कई गुना बढ़ गया है। अफ्रीका में भारत के सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के उद्यमों का निवेश बढ़ रहा है‚ जिससे यह अफ्रीका में 8वां सबसे बड़ा निवेशक बन गया है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक अफ्रीका में 3 मिलियन से अधिक भारतीय प्रवासी भी भारत के लिए अफ्रीकी देशों के साथ अपने संबंधों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। अफ्रीका में आधा दर्जन से अधिक देश मॉरीशस, रवांडा सहित तेजी से विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में शुमार हैं‚ सेनेगल‚ और तंजानिया‚ इसे दुनिया के विकास ध्रुवों में से एक बनाते हैं। पिछले एक दशक में अफ्रीका में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद लगभग दोगुना हो गया है। अफ्रीकी महाद्वीप की आबादी एक अरब से अधिक है‚ जिसकी संयुक्त जीडीपी 2.5 ट्रिलियन डॉलर है‚ जो इसे बहुत बड़ा बाजार बनाती है। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए भारत अफ्रीका के साथ संबंध मजबूत करने की दिशा में लगातार प्रयास कर रहा है। लेकिन अफ्रीका महाद्वीप में चीन का आर्थिक प्रभाव भी भारत से कम नहीं है। मॉरीशस जैसे देश में भवन निर्माण या ट्रांसपोर्ट तक में चीन खुद को बड़ा मददगार साबित करने में लगा रहता है।

हमें ये बात भी समझनी होगी कि अफ्रीकी देशों के बीच भारत की विशाल सामाजिक पूंजी मूर्त संबंधों में पूरी तरह तब्दील नहीं हुई है और अफ्रीका में चीन के वाणिज्यिक और निवेश कहीं- कहीं भारत से आगे निकल गए हैं। आज 10 हजार से अधिक चीनी व्यवसाय अफ्रीका महाद्वीप पर काम कर रहे हैं और चीन अफ्रीका का शीर्ष वाणिज्यिक भागीदार है। वैश्विक परिवेश में चीन तेजी से अपने कर्ज और लालच के जाल में दुनिया के गरीब देशों को फंसा रहा है। चीन की इस डेट ट्रैप डिप्लोमेसी के चक्कर में कई देश बर्बाद होने की ओर बढ़ रहे हैं। लेकिन ये भी उतना ही सच है कि अब खाड़ी देशों या यूरोप में रह रहे प्रवासी भारतीय अपनी जड़ों की तरफ ज्यादा ध्यान दे रहे हैं।

पिछले साल मध्य प्रदेश के इंदौर में आयोजित हुए 17वें प्रवासी भारतीय सम्मेलन में सबसे ज़्यादा खाड़ी देशों से प्रतिनिधि जुटे थे। यूएई से 715 प्रवासी भारतीयों ने सम्मेलन में शामिल होने के लिए विदेश मंत्रालय के सामने अपना पंजीकरण कराया था। इसके अलावा क़तर से 275 प्रवासी शामिल हुए, जबकि ओमान से 233, कुवैत से 95 और बहरीन से 72 प्रतिनिधियों ने सम्मेलन में हिस्सा लिया। अमेरिका से 167 प्रतिनिधि शामिल होने पहुंचे थे। यूएई के बाद मॉरीशस ऐसा देश है जहाँ से 447 प्रतिनिधि सम्मलेन में शामिल हुए। कुल 66 देशों से 2705 प्रतिनिधि का भारत में जुटना बताता है कि वो भारत से अपने संबंधों को न सिर्फ बनाये रखना चाहते हैं बल्कि अपनी अगली पीढ़ी को भी इससे रूबरू करा रहे हैं। मलेशिया में प्रवासी भारतीयों के संगठन ‘गोपियो’ का सम्मेलन इस बात का प्रमाण है।

मलेशिया में मॉरीशस के उच्चायुक्त डॉ जगदीश्वर गोबर्धन का मानना है कि भारत सरकार ने न सिर्फ प्रवासी भारतीयों को उनकी जड़ों से जुड़ने में सहयोग दिया है बल्कि भारतीय मूल के लोगों के लिए भी काफी काम किया है। बेशक निवेश एक बड़ा विषय हो सकता है लेकिन अनिवार्य शर्त नहीं। कृषि क्षेत्र में डॉ सुभाष पालेकर की तकनीक ने मॉरीशस और अफ्रीका के दूसरे देशों में बड़ा योगदान दिया है। आज पूरे विश्व में 3.2 करोड़ से अधिक अप्रवासी भारतीय निवास कर रहे हैं, जिसमें बड़ी आबादी खेती किसानी से भी जुडी है। हर साल करीब 25 लाख भारतीय दूसरे देशों में प्रवास के लिए जाते हैं। विदेश में बस रहे भारतीयों ने न सिर्फ भारतीय संस्कृति का झंडा बुलंद करते हुए भारत की साख को मजबूत किया है बल्कि इसे विश्वसनीय भी बनाया है। प्रवासी भारतीयों ने अपनी कार्यशैली से दूसरे देशों में खुद को तो स्थापित किया ही है, साथ ही इन देशों में अपने लिए कई अनगिनत उपलब्धियां भी अर्जित की हैं। बाहरी देशों में निवास कर रहे प्रवासी भारतीय वहाँ के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्रों में अपनी भागीदारी को भी बढ़ाते जा रहे हैं।

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