महोबा/उन्नाव/लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। उनकी माँ नई दिल्ली में रहती हैं, जो यहाँ से 600 किलोमीटर से ज़्यादा दूर है। वह एक निर्माण मज़दूर हैं। अपनी माँ की गैर मौज़ूदगी में दो किशोर बहनों मुस्कान और नितिशा के लिए स्मार्टफोन न सिर्फ एक साथी है बल्कि उनका मार्गदर्शक भी हैं।
उत्तर प्रदेश के महोबा के मिर्थिला गाँव की रहने वाली पंद्रह साल की नितिशा का सपना इंटरमीडिएट (कक्षा 12 ) के बाद सिलाई की एक बड़ी सी दुकान खोलने का है। स्मार्ट फोन उन्हें ट्रेंडिंग कुर्ता और ब्लाउज के नए-नए डिजाइन के साथ तालमेल बनाए रखने में मदद करता है।
वहीं उनकी बड़ी बहन 16 वर्षीय मुस्कान स्मार्टफोन पर देखे जाने वाले यूट्यूब वीडियो की मदद से रोज अपनी एक्सरसाइज करती हैं। दोनों के पास एक ही फोन है जिसे वो साझा करती हैं। उनके गॉँव में न तो कोई औपचारिक सिलाई केंद्र है और न ही कोई जिम। ऐसे में इंटरनेट उन बहनों के लिए सबसे अच्छा विकल्प है। वो उन्हें अपने जीवन में कुछ बड़ा करने की कोशिश करने के लिए जानकारी मुहैया करा रहा है।
मिर्थिला गाँव में इन बहनों के घर से थोड़ी दूर उनकी चाची मीरा देवी रहती हैं। जैसे ही घर के कामों से फुर्सत मिलती है, 24 साल की मीरा अपने स्मार्टफोन के साथ बैठ जाती है और गर्भपात को रोकने के तरीकों के बारे में जानकारी खोजने लगती है।
मीरा ने गाँव कनेक्शन को बताया, “चार साल पहले जब मेरी शादी हुई थी तब से मैं बच्चा चाह रही हूँ लेकिन बार-बार गर्भपात हो जाता है।” वह आगे कहती हैं, “मैंने सुना है कि बड़े शहरों में अच्छे डॉक्टर हैं, इसलिए मैं उन्हें अपने फोन पर ढूंढती रहती हूँ ।”
स्मार्टफोन पर इंटरनेट के आने और देश के गाँवों में इसकी गहरी पैठ ने ग्रामीण महिलाओं के जीवन को बदल दिया है। इससे उनके लिए अवसरों के ऐसे अनगिनत दरवाजे खुल गए हैं जो कभी उनकी पहुँच से परे थे।
स्मार्टफोन और इंटरनेट डेटा प्लान ने दूरदराज के इलाकों में तेज़ी से अपनी पहुँच बढ़ाई है। ये किफायती और सुलभ होते जा रहे हैं। इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाली ज़्यादातर महिलाएँ युवा और किशोर हैं। इनके लिए ज्ञान और जानकारी का ख़जाना पाना आसान हो गया है।
अब कल्पना को ही ले लें। वह पुलिस सेवाओं में जाने का सपना देख रही हैं । लेकिन उनके गृहनगर महोबा में कोई बेहतरीन ट्यूशन सेंटर नहीं है, इसलिए 22 साल की कल्पना पुलिस सेवाओं में प्रवेश के लिए प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए फिजिक्स वाला के ऑनलाइन कोचिंग पोर्टल से जुड़ी हुई हैं।
उनकी छोटी बहन बबली को फिजिक्स में कोई दिलचस्पी नहीं है, लेकिन वह अपने समय का एक बड़ा हिस्सा नई रेसिपी खोजने के लिए अपने इंस्टाग्राम फ़ीड को स्क्रॉल करने में बिताती हैं। जिस दिन गाँव कनेक्शन की मुलाकात उस युवती से हुई, वह अपने लकड़ी के चूल्हे पर फ्राइड राइस बना रही थीं , जिसकी रेसिपी उसने इंस्टाग्राम पर देखी थी।
स्मार्टफोन पर इंटरनेट ग्रामीण महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण की दिशा में परिवर्तन लाने वाली एक शक्ति बन गई है। नीलसन की इंडिया इंटरनेट रिपोर्ट 2023 से पता चलता है कि दिसंबर 2022 तक भारत में दो साल और उससे अधिक उम्र के 70 करोड़ से ज़्यादा सक्रिय इंटरनेट यूजर्स हैं – जिनमें से 42.5 करोड़ (61 प्रतिशत) ग्रामीण भारत में पंजीकृत हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इंटरनेट का इस्तेमाल 2021 की तुलना में 2022 में 40 फीसदी ज़्यादा किया गया है। लगभग आधी ग्रामीण आबादी ऑनलाइन है। दिलचस्प बात यह है कि 2021 और 2022 के बीच पुरुष यूजर्स में जहाँ 18 फ़ीसदी की वृद्धि हुई है। वहीं इसकी तुलना में महिला यूजर्स में 27 फ़ीसदी की वृद्धि हुई है।
नीलसन ग्रुप के मार्केटिंग और कम्युनिकेशंस लीडर आशीष अग्रवाल ने उस सर्वे के बारे में बताते हुए कहा कि सभी राज्यों में रेंडमली किए गए सर्वे में कुल 35,000 घरों यानी लगभग 1,50,000 लोगों के पास जाकर उनसे बात की गई थी।
ग्रामीण भारत में महिला इंटरनेट यूजर्स को वीडियो कॉलिंग सबसे ज़्यादा पसंद है। यह लिस्ट में टॉप पर है। अन्य गतिविधियों में वीडियो देखना (59 फ़ीसदी), सोशल नेटवर्किंग (51 फ़ीसदी), ऑनलाइन म्यूजिक सुनना (44 फ़ीसदी), और चैटिंग (45 फ़ीसदी) शामिल हैं।
फोन के साथ बढ़ती नजदीकी और आराम
अपनी 10 साल और सात साल की बेटियों से वीडियो कॉलिंग पर बात करने से मंगली बाई को अच्छा लगता है। वैसे तो वह छत्तीसगढ़ के बिलासपुर गाँव की रहने वाली हैं । लेकिन ईंट भट्टे पर काम करने के लिए वह अपने पति के साथ उत्तर प्रदेश के उन्नाव के हफीजाबाद गाँव चली गईं। क्योंकि उनके गाँव में बच्चों का स्कूल है इसलिए वो अपने बच्चों को अपने साथ नहीं ले गई।
मंगली बाई ने गाँव कनेक्शन को बताया, “फ़ोन मुझे मेरे गाँव के करीब रखता है। जब भी मैं अपने बच्चों को वहाँ छोड़ आती हूँ तो मुझे उनकी चिंता होती है। मैं अपनी बेटियों को वीडियो कॉल करती हूँ तो मुझे अच्छा लगता है।” वह अपनी जड़ों से जुड़े रहने के लिए अपने छोटे से मोबाइल फोन पर छत्तीसगढ़ी गाने और फिल्में भी देखती हैं।
मोबाइल फोन, उन्हें उनकी बेटियों के साथ-साथ उनके राज्य के फिल्में और गानों से भी जोड़े रखता है। 35 वर्षीय लीला राम ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मेरी पत्नी को यूट्यूब पर गाने और धारावाहिक देखना पसंद है। मैं सुबह छह बजे भट्टे पर काम करने के लिए निकल जाता हूँ और दोपहर के आसपास एक छोटे से लंच ब्रेक के बाद शाम छह बजे तक काम करता रहता हूँ । वह भी मेरे साथ जाती है लेकिन घर के काम निपटाने के लिए थोड़ा ज़्यादा ब्रेक लेती है।” उन्होंने तीन महीने पहले एक स्मार्टफोन खरीदा था, जिसे ज़्यादातर उनकी पत्नी इस्तेमाल करती हैं।
यह दंपत्ति ईंट भट्टे पर हर महिने लगभग 11,000 रुपये कमा पाता है। इसमें ये कुछ पैसा अपने घर भेज देते हैं। उनकी कमाई से मुश्किल से ही उनका गुजारा चल रहा है। लेकिन इसके बावज़ूद लीला राम ने एक स्मार्टफोन पर 11,500 रुपये का निवेश करना ज़्यादा बेहतर समझा। इसे उन्होंने किस्तों पर खरीदा है। उन्हें 11 महीने तक प्रति माह 500 रुपये का भुगतान करना पड़ेगा।
लीला राम ने कहा, “हर किसी के पास यह है, मैं भी यही चाहता था।”
ईंट भट्टे के एक कोने में जहाँ लीला राम और उनकी पत्नी मंगली बाई काम करते हैं, वहाँ अस्थायी झोपड़ियों में सात अन्य परिवार रहते हैं, और हर एक के पास कम से कम एक स्मार्टफोन है। ज़्यादातर समय परिवार की महिलाएँ ही इनका सबसे अधिक इस्तेमाल करती हैं।
मंगली बाई की पड़ोसी उषा पटेल ने दो महीने पहले ही अपना फोन खरीदा था, लेकिन उन्हें पहले से ही इसे चलाने में माहिर माना जाता है।
34 साल की पटेल ने गाँव कनेक्शन को बताया, “जब भी हम काम के लिए दूसरे राज्यों में जाते हैं तो बोर हो जाते हैं। पुरुषों की तरह हम अजनबियों से बात करते हुए नहीं घूम सकते। इस फोन ने हमें बोरियत से निपटने में मदद की है।”
महोबा के मिर्थिला गाँव की किशोर बहनों नितिशा और मुस्कान की माँ किरण कुमारी इस बात से सहमत हैं। उन्होंने कहा, “यह मेरे मोबाइल फोन पर भोजपुरी फिल्में हैं जो मुझे काम के मुश्किल दिन के बाद दिल्ली में आराम करने में मदद करती हैं।” वह कुछ समय के लिए अपने गाँव आई थीं, जब गाँव कनेक्शन ने उनसे और उनकी बेटियों से मुलाकात की।
फासले कम करना
उन्नाव के हफीजाबाद स्थित गाँव में रहने वाली दयावती के पास पिछले दस सालों से स्मार्ट फोन है। गाँव में सबसे पहले उन्हीं के पास फोन आया था। यह फोन उन्हें खाड़ी में काम करने वाले उनके पति ने उपहार में दिया था। आज, उनके गाँव के लगभग सभी घरों में स्मार्टफोन है। पाँच साल पहले उनके गाँव में एक मोबाइल फ़ोन की दुकान खुली है, जो तेज़ी से कारोबार कर रही है।
42 वर्षीय दयावती ने गाँव कनेक्शन को बताया, “यह वह फोन है जिसने मुझे आगे बढ़ने में मदद की है। मेरे पति और मेरा बेटा दोनों खाड़ी में काम करते हैं। वे घर से बहुत दूर हैं। उन्हें देखकर हमें तसल्ली मिल जाती है।”
दयावती को उसके गाँव के लड़के हर तीन महीने में एक बार इंटरनेट पैक रिचार्ज करने में मदद करते हैं, जिसकी कीमत 750 रुपये है।
21 वर्षीय रीता शर्मा के लिए उनके स्मार्टफोन का उनके दिल के साथ गहरा रिश्ता है। यह उनके पति की ओर से शादी का तोहफा है। यह फोन अब उनके गाँव हफीजाबाद में उनका साथी है, जहाँ अक्सर बिजली गायब रहती है।
उन्होंने कहा, “जब मैं तीन महीने पहले अपने मायके गयी थी तो मैंने वहीं इसे रिचार्ज करवाया था। नवविवाहित रीता शर्मा ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मुझे अपने ससुराल में रिचार्ज के लिए कहने में शर्म आती है।” इंस्टाग्राम रील्स उनकी बोरियत का जवाब है।
उत्तर प्रदेश के सीतापुर में एक संयुक्त परिवार में रहने वाली रजनी त्रिपाठी जैसी कई महिलाओं के लिए, उनके पति का मोबाइल फोन बोरियत से बाहर निकलने का रास्ता है। “आमतौर पर मेरे ससुर या मेरे बच्चे टीवी पर कुछ न कुछ देखते रहते हैं। मैं उन्हें चैनल बदलने के लिए नहीं कह सकती हूँ । इसलिए मैं शांति से यूट्यूब या फेसबुक पर अपने पसंदीदा धारावाहिक देखती हूँ, ”यह कहते हुए वह मुस्कुराई।
नीलसन इंटरनेट रिपोर्ट बताती है कि ग्रामीण भारत में 8.5 करोड़ स्मार्टफोन यूजर्स मुख्य रूप से वीडियो देखने के लिए अपने डिवाइस साझा करते हैं। यह भी देखा गया कि सस्ते डेटा और स्मार्टफोन की उपलब्धता ने उनके लिए वीडियो देखना आसान बना दिया है।
बेंगलुरु स्थित एक गैर-सरकारी संगठन आईटी फॉर चेंज की सीनियर रिसर्च एसोसिएट नताशा सुसान कोशी ने गाँव कनेक्शन को बताया, “इंटरनेट तक पहुँच अभी भी बहुत असमान है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में युवा वयस्क, जिनमें महिलाएँ भी शामिल हैं, अपने गाँवों से परे की दुनिया के बारे में जानने के लिए बहुत उत्सुक हैं। उनके जीवन और खुद के लिए उनकी आकांक्षाएं बदल रही हैं। ”
उनके अनुसार, हालिया नीलसन इंटरनेट रिपोर्ट के आंकड़ों को पूरा नहीं माना जा सकता है।
कोशी ने कहा, “हम उन दरों के कारण कुछ बदलाव देख रहे हैं जिन पर कोई डिजिटल बुनियादी ढांचे तक पहुँच सकता है, लेकिन संख्याएं अपने आप में सामाजिक परिवर्तन का संकेत नहीं हैं। पारिवारिक व्यवस्था, पितृसत्ता, पैसों तक पहुँच, स्वामित्व प्रथाएं और घरों के भीतर स्थिति सभी डिजिटल दुनिया के साथ महिलाओं की भागीदारी को आकार देते हैं।”
साथ ही कोशी ने बताया कि निष्कर्ष स्थानीय विशिष्टताओं का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते हैं और राज्यों, जिलों, ब्लॉकों और गाँवों में बड़े अंतर हो सकते हैं।
उन्होंने कहा, “महिलाएँ पुरुषों की तरह बाहर प्रवास नहीं करतीं हैं। खासतौर पर अपने गृह राज्यों से बाह, और हो सकता है कि वे अपने जगह की विशिष्ट भाषाओं को ज़्यादा न जानती हों। डिजिटल कंटेंट को उनके लिए अधिक सुलभ बनाने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि इसे क्षेत्रीय भाषाओं में विकसित किया जाए। ऐसे प्रयासों के अभाव में, लिंग डिजिटल विभाजन की खाई चौड़ी होती चली जाएगी।”
नीलसन की सर्वेक्षण रिपोर्ट बताती है, हालांकि एक साल में पुरुष और महिला इंटरनेट यूजर्स के बीच अंतर कम हो गया है, लेकिन महिला आबादी अभी भी पीछे है, क्योंकि उनमें से सिर्फ 47 फ़ीसदी सक्रिय इंटरनेट यूजर्स हैं, जबकि 53 फ़ीसदी पुरुष सक्रिय इंटरनेट यूजर्स हैं।
आशा और स्वयं सहायता समूह
संध्या 2019 से लखनऊ के सरोजिनी नगर ब्लॉक के बंथरा गांव में आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) रही हैं। फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ता के रूप में अपने काम के हिस्से के रूप में, 34 वर्षीय संध्या को डिजिटल एप्लिकेशन ई-कवच के जरिए पारिवारिक सर्वे आदि का रिकॉर्ड बनाए रखना होता है।
संध्या ने गाँव कनेक्शन को बताया, “अब हम जो भी काम करते हैं वह स्मार्टफोन और इंटरनेट का इस्तेमाल करके करना पड़ता है।” संध्या की तरह, देश भर में सैकड़ों हज़ार आशा कार्यकर्ता अपने रोजाना के कामों को पूरा करने के लिए इंटरनेट वाले स्मार्टफोन का इस्तेमाल करती है। फिलहाल 160,132 ग्रामीण महिलाएँ आशा के रूप में सेवारत हैं।
इतना ही नहीं। यहाँ तक कि महिला स्वयं सहायता समूह भी अब स्मार्टफोन के जरिए इंटरनेट से जुड़ गए हैं। महिलाएँ ईकॉमर्स उद्देश्यों के लिए स्मार्टफोन का इस्तेमाल करती हैं और अपने से बनाए गए तमाम उत्पादों को बेचने के लिए खरीदारों और व्यापारियों से जुड़ती हैं। महामारी के बाद से ई-कॉमर्स व्यवसाय कई गुना बढ़ गया है।
उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन, ग्रामीण विकास विभाग के आंकड़ों के अनुसार, राज्य भर में 7.4 करोड़ ग्रामीण महिलाओं में से 11 प्रतिशत या 0.82 करोड़ उत्तर प्रदेश में स्वयं सहायता समूहों का हिस्सा हैं। ये एसएचजी महिलाएँ अपने समूहों के कामकाज को सुविधाजनक बनाने के लिए नियमित रूप से फोन पर डिजिटल एप्लिकेशन का उपयोग करती हैं।
यह लेख लाडली मीडिया फ़ेलोशिप, 2023 के तहत लिखा गया है। व्यक्त की गई सभी राय और विचार लेखक के अपने हैं। लाडली और यूएनएफपीए आवश्यक रूप से विचारों का समर्थन नहीं करते हैं।