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जगन्नाथ रथ यात्रा: रथों को अंतिम रूप देने में लगे हैं बढ़ई, चित्रकार और कारीगर

कोरोना महामारी के 2 साल के बाद, ओडिशा के पुरी में 1 जुलाई से शुरू होने वाली रथ यात्रा में इस बार आम जनता भी शामिल हो सकेगी। इस बार कम से कम 15 लाख भक्तों के आने की उम्मीद है। बढ़ई और चित्रकार रात भर काम कर रहे हैं, ताकि रथों को बनाने का काम पूरा कर सकें।
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कोरोना महामारी के दो साल बाद, विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के लिए मंच तैयार है, जो अगले महीने 1 जुलाई से ओडिशा के पवित्र शहर पुरी में शुरू हो रही है। आठ सौ साल पुराने जगन्नाथ मंदिर के इस वार्षिक उत्सव के लिए भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा के लिए लकड़ी के तीन रथों का निर्माण कार्य चल रहा है।

पुरी के कलेक्टर समर्थ वर्मा ने गाँव कनेक्शन को बताया, “कोरोना महामारी की वजह से भक्तों को पिछले दो सालों से जगन्नाथ रथ यात्रा में हिस्सा लेने से रोक दिया गया था। इस साल लगभग 15 लाख भक्तों के भीड़ की उम्मीद कर रहे हैं।”

जगन्नाथ रथ यात्रा संभवतः देश के सबसे पुराने और सबसे बड़े रथ उत्सवों में से एक है। इस उत्सव में तीनों देवताओं, भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र में से हर एक के लिए एक रथ बनाया गया है। हर रथ में एक देवता के साथ 9 अन्य देवता होते हैं हैं। हर रथ पर नौ ऋषियों को चित्रित भी किया गया है। ये ब्रह्मांड के 9 ग्रहों को दर्शाने के लिए हैं। एक रथ को उसके खास नाम, उसके रंग, उसके रथवान, उसके घोड़ों और यहां तक कि उन्हें नियंत्रित करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली लगाम से भी पहचाना जा सकता है।

रथ बनाने वाले बढ़इयों में से एक 58 वर्षीय विजय मोहराना ने बताया, “करीब 200 बढ़ई रथ बनाने में लगे हुए हैं। सभी कारीगर 1 जुलाई से रथयात्रा शुरू होने से पहले रथ का काम पूरा करने में लगे हुए हैं।”

पुरी के एक अन्य बढ़ई 56 वर्षीय जीवन मोहराना बताते हैं, “रथ बनाने का काम विरासत का एक हिस्सा है। बहुत पुराने समय से हमारे परिवार के सदस्य रथों का निर्माण करते आ रहे हैं।”

तैंतीस वर्षीय अजीत मोहराना, एक माहिर बढ़ई हैं, उनके पास रथ यात्रा के लिए रथ बनाने का 4 दशकों का अनुभव है। उन्होंने बताया, “मेरे दो बेटे भी रथ निर्माण कार्यों में लगे हुए हैं। जैसे जैसे रथ यात्रा नजदीक आती है, रथ बनाने वाले और व्यस्त हो जाते हैं।”

शरत मोहराना की पुरी में कपड़े की दुकान है। लेकिन रथ उत्सव के आसपास, वह अपने काम से वक्त निकालते हैं और लकड़ी पर फूलों, जानवरों और अन्य चीजों की तस्वीर बनाने का काम करते हैं। रथ के पहिए पर फूल बनाते हुए शरत ने कहा, “यह हमारा पारंपरिक काम है। मैंने अपने पिता से लकड़ी पर नक्काशी की कला सीखी है। मैं अपनी पारिवारिक परंपरा को जिंदा रखने की पूरी कोशिश में लगा हुआ हूं।”

बढ़ई के अलावा, चित्रकार, जिन्हें स्थानीय रूप से रूपाकार कहा जाता है, चौबीसों घंटे रथ उत्सव के लिए तीनों रथों को अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं। लगभग 60 चित्रकार रथों के पहियों और अन्य हिस्सों को रंगने में लगे हुए हैं।

56 वर्षीय परीखिता मोहराना, जो रथ के लकड़ी के पहियों को पेंट कर रहे थे, उन्होंने बताया, “नंदीघोष (भगवान जगन्नाथ), दर्पदलन (देवी सुभद्रा) और तालध्वज (भगवान बलभद्र) के तीन रथों में कुल 42 पहिए हैं। तीनों रथों का खास साइज और आयाम है और स्वदेशी बढ़ईगीरी और इंजीनियरिंग का एक अच्छा उदाहरण है। सिर्फ वरिष्ठ और माहिर बढ़ई ही पहिए बनाते हैं।”

इस दौरान देवताओं के कपड़े भी सिलवाए जा रहे हैं। 50 वर्षीय अरखिता मोहराना ने बताया, “देवताओं की वेशभूषा को और अधिक आकर्षक बनाने के लिए हम रंग, जरी के धागे और चमकीले रंगों का इस्तेमाल करते हैं। हमारे परिवार के सदस्य पुराने जमाने से देवताओं के लिए वेशभूषा बनाते रहे हैं।”

एक कारीगर, नबाघन मोहराना बताती हैं, “हम तीनों रथों को सजाने के लिए नृत्य करती हुई नर्तकियों, घोड़ों, हाथियों और अन्य तस्वीरों की वेशभूषा बना रहे हैं। त्योहार में कुछ ही दिन बचे हैं, हम यह सुनिश्चित करने के लिए रात भर काम कर रहे हैं कि सारी चीजें त्योहार के समय तैयार हों।” उन्होंने बताया, “शिल्पकार अपने कौशल और महारत के क्षेत्र के आधार पर एक दिन में 500 से 1,000 रुपये तक कमा सकते हैं।”

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