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कोयला खनन और कोयला पावर प्लांट पर निर्भर जिले जस्ट ट्रांजिशन की चुनौतियों से कैसे निपटेंगे?

आईफॉरेस्ट की रिपोर्ट में कोयले पर स्थानीय समुदाय की आय और आजीविका निर्भरता, जिले के कामगार का प्रोफाइल और राजस्व व सार्वजनिक सुविधाओं और कल्याण के लिए कोयला अर्थव्यवस्था पर जिले की समस्त निर्भरता को समझा गया है।
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जलवायु परिवर्तन के चलते विशेषज्ञ जस्ट ट्रांजिशन यानी न्यायसंगत परिवर्तन की बात कर रहे हैं, लेकिन इसका असर क्या होगा? ये लोगों को कैसे प्रभावित करेगा? अगर जस्ट ट्रांजिशन की योजना बना रहे हैं तो सबसे पहले क्या करना होगा।

भारत के शीर्ष कोयला खनन और कोयला पावर प्लांट पर निर्भर जिलों के लिए जस्ट ट्रांजिशन (न्यायसंगत परिवर्तन) का अर्थ क्या होगा और कैसे जस्ट ट्रांजिशन लाया जा सकता इसे समझने के कोयला की खदानों के लिए प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में एक सर्वे किया है।

इंटरनेशनल फोरम फॉर एनवायरनमेंट, सस्टेनेबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी (आईफॉरेस्ट) ने कोरबा जिले में सर्वे किया है। इस सर्वे के जरिए कोयले पर स्थानीय समुदाय की आय और आजीविका निर्भरता, जिले के कामगार का प्रोफ़ाइल और राजस्व व सार्वजनिक सुविधाओ और कल्याण के लिए कोयला अर्थव्यवस्था पर जिले की समस्त निर्भरता को समझा गया है।

इसके साथ ही विभिन्न हितधारकों के साथ एफजीडी और साक्षात्कार आयोजित किए गए जिससे कोयला खदानों और कोयला आधारित पावर प्लांट के फेज आउट, नौकरियों और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर संभावित प्रभाव, और जस्ट ट्रांजिशन के लिए निवेश और स्थानीय समुदाय की जरूरतों के बारे में पता लगाया जा सके।

इस अध्ययन में कोयला और बिजली कंपनियों, सरकारी विभागों और शैक्षणिक संस्थानों से एकत्र किए गए जानकारी और आंकड़ों का भी विश्लेषण किया गया जिससे कोरबा में जस्ट ट्रांजिशन प्लानिंग के लिए एक रूपरेखा विकसित की जा सके ।

यह रिपोर्ट एक व्यापक प्राथमिक सर्वेक्षण है जिसमें 600 घरों, 21 फोकस समूह चर्चा (एफजीडी), और जिला और राज्य स्तरों के प्रमुख पदाधिकारियों और उद्योग प्रतिनिधियों के साथ औपचारिक साक्षात्कार करने के बाद तैयार किया गया हैं।

कोरबा को जस्ट ट्रांजिशन की चुनौतियों का सामना अनुमान से पहले करना पड़ेगा

कोरबा, भारत के सबसे बड़े कोयला-उत्पादक और कोयला-विद्युत उत्पादक जिले में से एक है। कोरबा जिला 2030 से पहले ही एनर्जी ट्रांजिशन के प्रभावों का सामना करना शुरू कर देगा। देश के लगभग 16% कोयला उत्पादन में कोरबा का योगदान है तथा 6,428 मेगावाट कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट (टीपीपी) की क्षमता है। कुल मिलाकर, कोरबा का 60% से अधिक जीडीपी का हिस्सा कोयला खनन, थर्मल पावर और कोयले पर निर्भर उद्योगों से आता है।

कोरबा का लगभग 95% कोयला सिर्फ तीन बड़ी ओपेन कास्ट माईंस- गेवरा, कु समुंडा और दीपका से आता है। गेवरा और कुसमुंडा खदान का भंडार अगले 20 वर्ष तक ही बचा है, और 2040 से पहले समाप्त हो सकता है; दीपिका के संसाधन 2045 तक समाप्त हो जाएंगे। बाकी 5% उत्पादन बचे हुए दो ओपन कास्ट और आठ भूमिगत खदानों से आता है। यह खदानें बिना लाभ के चल रहे हैं और बंद होने के कगार पर हैं।

कुल मिलाकर, कोरबा का 60% से अधिक जीडीपी का हिस्सा कोयला खनन, थर्मल पावर और कोयले पर निर्भर उद्योगों से आता है। प्रतीकात्मक तस्वीर

कोरबा में कोयला आधारित बिजली उत्पादन जल्द ही गिरावट का सामना करना पड़ेगा। लगभग आधी थर्मल पावर प्लांट इकाइयां 30 वर्ष से अधिक पुरानी हैं और 2027 तक बंद होने के कगार पर है। यदि पावर प्लांट के जीवन को 25 वर्ष मानते हैं, तो शेष इकाइयां भी 2040 तक बंद हो सकती है। इसके अलावा, राज्य सरकार ने कोई भी नया कोयला आधारित पावर प्लांट स्थापित करने का निर्णय नहीं लिया है।

इसलिए कोरबा में आने वाले सालों में जस्ट ट्रांजिशन की प्लानिंग और क्रियान्वयन महत्वपूर्ण होंगे।

पांच में से एक मजदूर है कोयला उद्योग और कोयला अधारित पावर प्लांट पर निर्भर

कोयला उद्योग (कोयला खदान, कोयला वाशरीज, फ्लाई ऐश ईंट इकाइयां और कोयला ट्रांसपोर्ट सहित) और टीपीपी द्वारा सीधे नियोजित लोगों की कुल संख्या कम से कम 87,558 है। उनमें से आधे कंपनियों और उनके ठेकेदारों के औपचारिक कर्मचारी हैं, और आधे अनौपचारिक कर्मचारी हैं। कुल मिलाकर, कोरबा में हर पांच में से एक श्रमिक कोयला एवं पावर प्लांट पर निर्भर है।

कोरबा, कोयला उद्योग में रोजगार के भविष्य का भी उदाहरण पेश करता है। कोरबा की शीर्ष तीन खदानें, जो भारत के कोयले का 1/6 हिस्सा उत्पादन करती हैं, औपचारिक रूप से सिर्फ 12,317 लोगों को रोजगार देती हैं। अतिरिक्त 15,700 लोगों का अनौपचारिक रूप से लगे होने का अनुमान है, जिससे कु ल कार्यबल लगभग 28,000 हो जाता है। यदि देश की सभी खदानें समान कार्यबल उत्पादकता स्तर प्राप्त करती हैं, तो कोयला खदानों से 1 बिलियन टन कोयला (2024 के लिए सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य) का उत्पादन करने के लिए कु ल रोजगार के वल 230,000 होगा। इसकी तुलना में, सार्वजनिक क्षेत्र की कोयला कंपनियां वर्तमान में औपचारिक रूप से 350,000 लोगों को रोजगार देती हैं, और कोयला खनन में कुल रोजगार 26 लाख होने का अनुमान है।

कोयले पर केंद्रित अर्थव्यवस्था ने दूसरे क्षेत्रों के विकास और रोजगार में डाली है रुकावट

कोरबा की अर्थव्यवस्था कोयले पर केंद्रित है। इस कारण कृषि, वानिकी, उद्योगों, सेवा क्षेत्र सहित अन्य आर्थिक क्षेत्रों के विकास पर ध्यान नहीं दिया गया। उदाहरण के लिए, जिले में अधिकांश घरों (लगभग 36%) के आय का प्राथमिक स्रोत कृषि है, लेकिन अधिकांश परिवारों की घरेलू आय 10,000 प्रति माह से कम है। इसका एक महत्वपूर्ण कारण जिले में सिंचाई की खराब सुविधाएं (88% कृषि वर्षा पर निर्भर है) और कृषि आधारित उद्योगों का सीमित विकास है।

कोरबा में 60% से अधिक भूमि वनों के अधीन है और कई उच्च मूल्य वाले गैर-लकड़ी वन उत्पाद (एनटीएफपी) हैं, परंतु यह क्षेत्र जनजातीय समुदाय के लिए अच्छे आय के अवसरों में योगदान नहीं करता है। इसी तरह, सेवा क्षेत्र भी पिछड़ा हुआ है। इन कारणों से मजदूरी से अच्छी आय सीमित है और परिणामस्वरूप कामकाजी आयु वर्ग में गैर-श्रमिकों उच्च अनुपात में है। प्राथमिक सर्वेक्षण बताता है कि कामकाजी आयु वर्ग के 54% लोग गैर-श्रमिक हैं। महिलाओं की स्थिति और भी खराब है, क्योंकि गैर- श्रमिको में लगभग 73 प्रतिशत महिलाएं हैं।

कोरबा खदानों और उद्योगों के अनियोजित बंद होने से सबसे अधिक है संवेदनशील

कोरबा में लगभग दो-तिहाई परिवारों की मासिक आय 10,000 रुपये (US$ 132) से कम है। साथ ही, जिले की 32% से अधिक आबादी ‘बहुआयामी रूप से गरीब’ (मल्टीडायमेनसनल) है, एवं स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं जैसे स्वच्छ पेयजल और खाना पकाने के लिए स्वच्छ ऊर्जा तक लोगों की पहुंच सीमित है । खराब विकास संके तकों के कारण, भारत सरकार ने आकांक्षी जिला कार्यक्रम के तहत कोरबा को लक्षित विकास के लिए प्राथमिकता पर रखा है। अन्य क्षेत्रों में अवसरों की कमी के कारण जिले की क्षमता कम है। इसलिए, कोयला अर्थव्यवस्था में किसी भी व्यवधान से कोरबा अत्यधिक संवेदनशील है।

कोरबा में क्या है जस्ट ट्रांजिशन की योजना

कोरबा में जस्ट ट्रांजिशन की योजना बनाने के लिए कुछ बातों पर खास फोकस करना होगा।

  • कोरबा जिले के लिए जस्ट ट्रांजिशन प्लान- लोगों की जरूरतों, अनुकूल क्षमता, गतिशीलता और आकांक्षाओ का आकलन करके विकसित किया जाना चाहिए। इसके अलावा, कोयला अर्थव्यवस्था से लाभान्वित होने वालों की जरूरतों एवं वैसे लोग (जैसे कि जंगल में रहने वाले आदिवासी समुदाय) जिनकी वर्तमान कोयला अर्थव्यवस्था में न्यूनतम हिस्सेदारी है उनके लिए समावेशी दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।
  •  औपचारिक कर्मचारियों के लिए सेवानिवृत्ति लाभ और नए उद्योगों के लिए कार्यबल का कौशल विकास महत्वपूर्णहोगा; अनौपचारिक श्रमिकों के लिए सरकारी सहायता और बुनियादी ढांचा में निवेश जरूरी होगा। कुल मिलाकर, कोयला खनन और थर्मल पावर संचालन में औपचारिक कर्मचारियों के लिए एक प्रमुख मुद्दा पेंशन फं ड (वर्तमान सेवानिवृत्त और भविष्य में होने वाले) हासिल करना और नए कार्यबल को कु शल बनाना होगा। ग्रीन इकॉनमी बनाने के लिए, कं पनियों को भविष्य के लिए आवश्यक कौशल विकास पर विचार करते हुए कर्मचारी पोर्टफोलियो विकसित करना शुरू करना देना होगा।
  • कोरबा के जस्ट ट्रांजिशन योजना में एक महत्वपूर्ण कदम जिले की अर्थव्यवस्था और औद्योगिक गतिविधियों में विविधता लाना होगा। कोरबा की आर्थिक विविधीकरण योजना का लक्ष्य प्रगतिशील रूप से कोयला केंद्रित अर्थव्यवस्था से अलग होना चाहिए। जिले में आर्थिक विविधीकरण के लिए कृषि, वानिकी और मत्स्य क्षेत्रों और आर्थिक उत्पादन को बढ़ावा देना होगा; कृषि और खाद्य प्रसंस्करण, एनटीएफपी प्रसंस्करण, और नवीकरणीय ऊर्जा आधारित उद्योगों (जैसे सौर) सहित लो-कार्बन उत्सर्जन उद्योगों के विकास का समर्थन करना; और शिक्षा और कौशल विकास में निवेश, स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को मजबूत करने और पर्यटन उद्योग के विकास के माध्यम से सेवा क्षेत्र में आय के अवसरों में सुधार करना होगा।
  • नवीकरणीय ऊर्जा सहित हरित उद्योगों के विकास के लिए भूमि और बुनियादी ढांचे का पुनर्निमाण महत्वपूर्ण होगा।औद्योगिक विकास के लिए एक प्रमुख आवश्यकता भूमि की उपलब्धता होगी। बेहतर आर्थिक उपयोग के लिए खनन और औद्योगिक भूमि को पुनः प्राप्त करना और पुन: उपयोग करना आवश्यक होगा। वर्तमान में, 24,364 हेक्टेयर (हेक्टेयर) से अधिक भूमि कोयला खनन (बंद खदानों सहित) और कोयला आधारित टीपीपी के अधीन है। आगामी चार खानों के आने से यह अगले तीन वर्षों में 27,600 हेक्टेयर से अधिक हो जाएगा।
  • भारत के अन्य कोयला जिलों की तरह, कोरबा में संसाधन अभिशाप को मिटाने के लिए जस्ट ट्रांजिशन एक अवसर प्रदान करता है। विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने और जिले की पर्यावरणीय परिस्थितियों में सुधार के लिए योजना और निवेश को सामाजिक और भौतिक बुनियादी ढांचे को बढ़ाने पर केन्द्रित होना चाहिए।
  • राजस्व के अन्य विकल्प के लिए प्रगतिशील योजना की आवश्यकता होगी। जस्ट ट्रांजिशन के लिए पब्लिक रेवेन्यू के दूसरेय विकल्प तैयार करना एक महत्वपूर्ण मुद्दा होगा। खनन राज्यों की राजस्व प्राथमिक रूप से रॉयल्टी और जिला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ) से आती हैं। इसके अतिरिक्त, केंद्र सरकार को कोयला सेस (जीएसटी सेस) से राजस्व प्राप्त होता है। 180 एमएमटी कोयला के अधिकतम उत्पादन पर, जो 2025-2030 के दौरान होगा, कोयला खदानें लगभग 107 बिलियन (US$ 1.5 बिलियन) प्रति वर्ष कोयला सेस, रॉयल्टी और डीएमएफ के रूप में योगदान करेंगी। 

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