Gaon Connection Logo

चार साल पहले जिनके साथ रोया था पूरा देश, पढ़िए इसरो के पूर्व प्रमुख के सिवन का क्या है गाँव कनेक्शन

लैंडर विक्रम ने जैसे ही चाँद पर कदम रखा, इसरो के पूर्व प्रमुख के सिवन खुशी से उछल पड़े। के सिवन और बाकी वैज्ञानिकों को आज पूरी दुनिया जानती है। चलिए आज हम के सिवन को और करीब से जानते हैं।
#ISRO

23 अगस्त को जब चंद्रयान-3 चाँद पर लैंड हुआ तो देश ही नहीं दुनिया भर में लाखों लोग इस ऐतिहासिक पल को देख रहे थे। इस उपलब्धि में देश के कई वैज्ञानिकों का योगदान है, उन्हीं में से एक इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन के पूर्व चीफ के सिवन भी हैं।

लैंडर विक्रम ने जैसे ही चाँद के साउथ पोल पर कदम रखा, के सिवन खुशी से उछल पड़े। उन्होंने इसरो की टीम को बधाई दी। के सिवन और बाकी वैज्ञानिकों को आज पूरी दुनिया जानती है। चलिए आज हम के सिवन को और करीब से जानते हैं।

के. सिवन का पूरा नाम कैलाशावादिवो सिवन है, कन्याकुमारी के सरक्कालविलाई गाँव में एक गरीब परिवार में पैदा हुए सिवन के पास पढ़ाई के लिए भी पैसे नहीं थे।

गाँव के ही सरकारी स्कूल में आठवीं तक पढ़ाई के बाद आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें बाहर निकलना था लेकिन घर में पैसे नहीं थे, उनको फीस के लिए पैसे जुटाने थे, इसके लिए उन्होंने पास के बाज़ार में आम बेचना शुरू किया। जो पैसे मिलते, उससे अपनी फीस चुकाते।

इसरो चेयरमैन बनने के बाद के सिवन ने अंग्रेजी अखबार डेक्कन क्रॉनिकल से बातचीत के दौरान ये बताया था। आम बेचकर पढ़ाई करते-करते के सिवन ने इंटरमीडिएट तो कर लिया, लेकिन ग्रेजुएशन के लिए और पैसे चाहिए थे। पैसे न होने की वजह से उनके पिता ने कन्याकुमारी के नागरकोइल के हिंदू कॉलेज में उनका दाखिला करवा दिया।

इससे पहले सिवन के पास कभी इतने पैसे नहीं हुए थे कि वो अपने लिए चप्पल तक खरीद सकें। सिवन ने पढ़ाई की और अपने परिवार के पहले ग्रेजुएट बने। मैथ्स (गणित) में 100 में 100 नंबर लेकर आए और फिर उनका मन बदल गया, अब उन्हें मैथ्स नहीं, साइंस की पढ़ाई करनी थी और इसके लिए वो पहुँच गए एमआईटी।

यानी मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी, वहाँ उन्हें स्कॉलरशिप मिली और इसकी बदौलत उन्होंने एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग (हवाई जहाज बनाने वाली पढ़ाई) में बीटेक किया। वो साल था 1980, एमआईटी में उन्हें एस नरसिम्हन, एनएस वेंकटरमन, ए नागराजन, आर धनराज, और के जयरमन जैसे प्रोफेसर मिले, जिन्होंने के सिवन को गाइड किया।

बीटेक करने के बाद के सिवन ने बैंगलोर के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर्स किया और जब के सिवन आईआईएस बैंगलोर से बाहर निकले तो वो एयरोनॉटिक्स के बड़े साइंटिस्ट बन चुके थे।

धोती-कुर्ता छूट गया था और वो अब पैंट-शर्ट पहनने लगे थे। इसरो यानी इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन के साथ उन्होंने अपनी नौकरी शुरू की। पीएसएलवी बनाने की टीम में पहला काम मिला, पीएसएलवी यानी कि पोलर सैटेलाइट लॉन्च वीकल।

ऐसा रॉकेट जो भारत के सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेज सके। के सिवन और उनकी टीम इस काम में कामयाब रही, के सिवन ने रॉकेट को कक्षा में स्थापित करने के लिए एक सॉफ्टवेयर बनाया, जिसे नाम दिया गया सितारा।

उनका बनाया सॉफ्टवेयर बेहद कामयाब रहा और भारत के वैज्ञानिक जगत में इसकी चर्चा होने लगी। इस दौरान भारत के वैज्ञानिक पीएसएलवी से एक कदम आगे बढ़कर जीएसएलवी की तैयारी कर रहे थे। जीएसएलवी यानी कि जियो सैटेलाइट लॉन्च वीकल।

18 अप्रैल, 2001 को जीएसएलवी की टेस्टिंग की गई, लेकिन टेस्टिंग फेल हो गई, क्योंकि जिस जगह पर वैज्ञानिक इसे पहुँचाना चाहते थे, नहीं पहुँचा पाए। के सिवन को इसी काम में महारत हासिल थी। जीएसएलवी को लॉन्च करने का जिम्मा दिया गया के सिवन को और उन्होंने कर दिखाया।

इसके बाद से ही के सिवन को इसरो का रॉकेट मैन कहा जाने लगा। इसके बाद के सिवन और उनकी टीम ने एक और प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया। रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल बनाने का प्रोजेक्ट था। मतलब कि लॉन्च व्हीकल से एक बार सैटेलाइट छोड़ने के बाद दोबारा उस लॉन्च व्हीकल का इस्तेमाल किया जा सके।

अभी तक किसी भी देश में ऐसा नहीं हो पाया था। के सिवन की अगुवाई में भारत के वैज्ञानिक इसमें जुट गए थे। इस दौरान के सिवन ने साल 2006 में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में आईआईटी बॉम्बे से डॉक्टरी की डिग्री हासिल कर ली और फिर इसरो में लॉन्च व्हीकल के लिए ईंधन बनाने वाले डिपार्टमेंट के मुखिया बना दिए गए।

एक साल से भी कम समय का वक्त बीता और के सिवन विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के मुखिया बना दिए गए। वो स्पेस सेंटर जिसका काम है भारत के सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजने के लिए व्हीकल यानी कि रॉकेट तैयार करना।

वहाँ भी के सिवन एक साल काम नहीं कर पाए। उस वक्त के इसरो के मुखिया ए.एस. किरण कुमार का कार्यकाल पूरा हो गया और फिर 14 जनवरी, 2015 को के सिवन को इसरो का मुखिया नियुक्त किया गया।

खाली वक्त में क्लासिकल तमिल संगीत सुनने और बागवानी करने वाले के सिवन को कई पुरस्कारों से नवाजा गया है। उनकी अगुवाई में इसरो ने 15 फरवरी, 2017 को एक साथ 104 सेटेलाइट अंतरिक्ष में भेजे। ऐसा करके इसरो ने वर्ल्ड रिकॉर्ड बना दिया और इसके बाद इसरो का सबसे बड़ा मिशन था चंद्रयान 2, जिसे 22 जुलाई, 2019 को लॉन्च किया गया।

2 सितंबर को चंद्रयान दो हिस्सों में बँट गया। पहला हिस्सा था ऑर्बिटर, जिसने चंद्रमा के चक्कर लगाने शुरू कर दिए। दूसरा हिस्सा था लैंडर, जिसे विक्रम नाम दिया गया था। इसे 6-7 सितंबर की रात चांद की सतह पर उतरना था।

चंद्रयान-2′ के लैंडर ‘विक्रम’ का छह सितंबर चांद पर उतरते समय जमीनी स्टेशन से संपर्क टूट गया था। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सात सितंबर की सुबह देश के नाम राष्ट्र को संबोधन करने के लिए इसरो सेंटर पहुँचे।

पीएम मोदी जब बेंगलुरु के स्पेस सेंटर से बाहर निकल रहे थे तो इसरो अध्यक्ष के सिवन को उन्होंने गले लगा लिया और इस दौरान के सिवन काफी भावुक हो गए। पीएम मोदी ने इसरो अध्यक्ष को काफी समय तक गले लगाए रखा और उनका हौसला बढ़ाया।

4 साल पहले चंद्रयान-2 के क्रैश होने के बाद सिवन के आँसू आज भी लोगों को याद हैं। चार साल बाद जब चंद्रयान-3 चाँद पर पहुँचा तो सिवन इस सफलता से इतने ज़्यादा खुश थे कि वह लैंडिंग के बाद भी काफी देर तक बाकी वैज्ञानिकों के साथ कंट्रोल रूम में ही रहे।

More Posts