ओके (कुलगाम), जम्मू-कश्मीर। कांगड़ी कश्मीरी सर्दियों का एक ज़रूरी हिस्सा है और दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले में ओके नाम का पूरा गाँव कांगड़ी बनाने में व्यस्त हो जाता है; कांगड़ी पारंपरिक रूप से घाटी में सर्दियों में गर्म रहने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
ओके में लगभग 1,000 परिवार रहते हैं और वहाँ के 80 प्रतिशत पुरुष कांगड़ी बनाने में लगे हुए हैं, जिसके लिए काफी कौशल की ज़रूरत होती है।
कांगड़ी अंगारों से भरे मिट्टी के बर्तन रखने के लिए बनी होती है, कांगड़ी इसे अच्छे से संभालती है। अंगारे घंटों तक जलते हैं और 50 डिग्री सेल्सियस तक गर्मी उत्सर्जित कर सकते हैं।
लोग खुद को गर्म रखने के लिए इसे अपने पास, या तो कंबल में लपेटकर या फिरन के नीचे रखते हैं। कांगड़ी एक लोकप्रिय और किफ़ायती हीटिंग समाधान है।
60 साल के शिल्पकार बशीर अहमद 40 सालों से कांगड़ी बना रहे हैं और उन्होंने इसे बनाने की रस्सियाँ अपने पिता से सीखीं। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “चार पीढ़ियों से हमारा परिवार कांगड़ी बुन रहा है।”
वह हर दिन सात कांगड़ी बुनते हैं और हर एक कांगड़ी 150 रुपये से 250 रुपये के बीच बेचते हैं। अगर किस्मत अच्छी रही तो कभी-कभी दिन में 400 रुपए भी कमा लेते हैं।
ऐसे बनती है कांगड़ी
बशीर अहमद ने कहा, कुछ कांगड़ियाँ ऐसी होती हैं जिन्हें ऑर्डर पर बनाया जाता है और उनकी कीमत थोड़ी ज़्यादा होती है, जो डिज़ाइन, गुणवत्ता और उपयोग की गई सामग्री की मात्रा के आधार पर, 500 रुपये से 1,200 रुपये के बीच होती है।
ओके में रहने वाले असदुल्ला ज़रगर ने कहा, कांगड़ियों के लिए मिट्टी के बर्तन कुम्हारों से लिए जाते हैं। हर मिट्टी के बर्तन की कीमत लगभग 15 रुपये है और कांगड़ी का ढाँचा कई स्थानों से पायी जाने वाली टहनियों से बनाया जाता है।
“टहनियों को भिगोया जाता है, अलग किया जाता है और फिर ले जाने में आसानी के लिए हैंडल के साथ मिट्टी के बर्तन के चारों ओर बुना जाता है; कुछ कारीगर कांगड़ी को रंगीन और अलग डिजाइन के साथ बनाते हैं।” ज़रगर ने कहा।
लेकिन हीटिंग के आधुनिक समाधानों के साथ, कांगड़ी अपनी गर्माहट खो रही है।
“सितंबर और मार्च के बीच, ओके गाँव हर दिन लगभग 3,000 कांगड़ी बनाता है और उन्हें कश्मीर के अलग अलग हिस्सों में बेचता है; एक दशक पहले, हम एक दिन में लगभग 5,000 कांगड़ियाँ बनाते थे। ” बशीर अहमद ने कहा।
उन्होंने आगे कहा, “हममें से जो लोग सर्दियों की शुरुआत में कांगड़ी बनाते हैं, वे आमतौर पर साल के बाकी समय खेती करते हैं या मज़दूरी करते हैं।”
कांगड़ी का इतिहास
ओके के 80 साल के गुलाम रसूल शक्साज ने दावा किया कि कांगड़ी का इस्तेमाल 1600 के दशक से चला आ रहा है।
“कुछ का मानना है कि यह स्वदेशी है जबकि कुछ का मानना है कि इसे सदियों पहले मध्य एशिया से आयात किया गया था; मुझे पता चला कि इटली से कश्मीर आए एक पर्यटक ने एक ग्रामीण को यह शिल्प सिखाया, जिसने बाद में इसे दूसरों तक पहुंचाया। ” शक्साज़ ने गाँव कनेक्शन को बताया।
“कांगड़ी घाटी के दूसरे हिस्सों में भी बनाई जाती है, लेकिन यहाँ ओके में, यह ख़ासतौर से पुराना व्यवसाय है; यहाँ तक कि सरकारी नौकरी करने वाले या दुकानें चलाने वाले लोग भी अपने खाली समय में कांगड़ी बुनना जारी रखते हैं।” उन्होंने कहा।
ज़रगर के मुताबिक़, पिछले एक दशक में कांगड़ियों की माँग और कीमत में लगातार गिरावट आई है। 55 साल के ज़रगर ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैंने यह कौशल अपने पिता से हासिल किया और इसे अपने तीन बेटों को दिया।”
एक दशक पहले, उन्होंने कहा था कि एक बुनियादी कांगड़ी की कीमत 200 रुपये थी, लेकिन अब यह 150 रुपये से भी कम में उपलब्ध है। ज़रगर ने कहा, हर कांगड़ी की लागत का 70 प्रतिशत हिस्सा कच्चे माल का होता है।
घट रहा है कांगड़ी का इस्तेमाल
गाँवों में बिजली आने और सर्दियों के कपड़ों में सुधार के कारण इसकी माँग कम हुई है। कुछ ऐसे कारण हैं, जिसकी वजह से कांगड़ियों की माँग इतनी नहीं है जितनी पहले हुआ करती थी।
“मेरे पिता से मिले इस व्यवसाय में अच्छी आजीविका बनाए रखना चुनौतीपूर्ण है; मैं और मेरे तीन बेटे दिन में 1,000 रुपये से अधिक नहीं कमाते हैं, क्योंकि हमारे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है, हम यह काम कर रहे हैं।” असदुल्लाह ने कहा।
उन्होंने कहा, “अगर सरकार कांगड़ी बनाने की इस पारंपरिक कला को संरक्षित करने में हमारी मदद करती है, तभी हम इस विरासत को कायम रख सकते हैं।”
हालाँकि, त्वचा विशेषज्ञ डॉ. मुश्ताक अहमद के अनुसार, कांगड़ी का लंबे समय तक इस्तेमाल गर्मी से प्रेरित त्वचा कार्सिनोमा का कारण बन सकता है।
डॉ. मुश्ताक ने चेतावनी देते हुए कहा, “कांगड़ी के अधिक इस्तेमाल से और शरीर के करीब रहने से त्वचा कैंसर सहित कई स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं, विशेष रूप से बुज़ुर्गों में।”