आंखों में कैलाश और अंजुरी में भरा मानसरोवर का जल

मनीषा कुलश्रेष्ठ हिंदी की लोकप्रिय कथाकार हैं। गांव कनेक्शन में उनका यह कॉलम अपनी जड़ों से दोबारा जुड़ने की उनकी कोशिश है। अपने इस कॉलम में वह गांवों की बातें, उत्सवधर्मिता, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकार और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर चर्चा करेंगी।

Manisha KulshreshthaManisha Kulshreshtha   30 Aug 2018 7:54 AM GMT

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आंखों में कैलाश और अंजुरी में भरा मानसरोवर का जल

मनीषा कुलश्रेष्ठ पिछले कुछ हफ्तों से कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर थीं। अपनी यात्रा के अनुभव को वह फेसबुक पर साझा करती रहीं। आइए हम भी उनकी इस रोमांचक यात्रा के वृतांत का आनंद उनकी फेसबुक पोस्ट और फोटोज के जरिए लेते हैं। तो चलें कैलाश मानसरोवर की पगडंडियों पर:

सुदूर अलंघ्य ऊंचाइयों पर कैलाश पर्वत है शिव का निवास।

"मेरे लिए आरंभ में कैलाश यात्रा 'मेघदूत की राह के पथिक' प्रोजेक्ट का हिस्सा थी। फिर कठिनाइयां आईं तो रोमांचक यात्रा में तब्दील हो गई। जब मानसरोवर ताल के जल को अंजुरी में भरा तो मां की सपनीली आस्था मन में जगी। यम द्वार पर जब कैलाश ने बर्फ ढकी पलकें झपकीं तो मेरे सहयात्री मेघ ने विद्युत टंकार से अंतरिक्ष गुंजा दिया। हवा बर्फ विहीन पर्वतों से गुजरती बांसुरी बजाने लगी। तो मन में आध्यात्म जागा जो किसी धर्म से न बंधा था। वह मनुष्य की अपनी सीमाओं का अतिक्रमण कर प्रकृति के समस्त रहस्यों को लेकर आदर भरी जिज्ञासा से जन्मा था। वह चुपचाप मेरे हाथ में मिल्क चॉकलेट थमा गए एक लामा से भी जा जुड़ा था जो कान में फुसफुसा गए थे।

" आई रेस्पेक्ट यू, बिकॉज़ अवर गुरुजी स्टेज़ इन इंडिया।"

तो राजकोट से आईं दो सत्तर पार बूढ़ी बहनों के महादेव प्रेम से भी जा जुड़ा था....

कैलाश यात्रा के संदर्भ में हर जगह पढ़ा, सीमा पार होने पर चीनी लोग मिसबिहेव, असहयोगी व्यवहार करते हैं। हमारे ड्राइवर डॉन जुआं से जीवट और जीवंत कौन? कि खुद शॉवल लेकर लेंड स्लाइड्स हटाने से लेकर, नए डायवर्जन ढूंढना। कानफोडू आवाज में चल रहे गुजराती भजनों के बीच गुजराती व्यंजनों का आनंद लेते हुए गाड़ी चलाना। वह तो मीठी मुस्कान वाला हीरो था। हीरो के साथ फोटो तो बनता है। हमारे साथ कहीं चायनीज मिसबिहेव नहीं हुआ। हां, वे कचरा फैलाने, नियमों के आस्थाजनित अतिरेक से तोड़ने पर चिढ़ते हैं। हमें सहयोग और मुस्कान मिले।

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सबसे हैरत की बात रावण और कैलाश कथा कालिदास के समय भी प्रचलित।

कैलाश मानसरोवर क्षेत्र की दुर्लभ जड़ी-बूटियां।

यह देखिए कालिदास लिखते हैं

" चटक उठी थी जिसके शिखरों की संधियां

दसकंधर रावण की बीस बाहों में कस कर

दर्पण का काम लेती है देव बालाएं जिससे

ऐसा है वह कैलाश!"

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*राक्षस ताल- रावण जब तपस्या में पाकर ले चला बीस भुजाओं में उठा कर। कैलाश को शिव परिवार सहित। तो भवानी घबराईं , तब शिव ने रावण पर दैवीय चाल चली। रावण को असहनीय लघुशंका लगा दी। रावण ने रखा कैलाश बगल में और बना दिया विशाल puddle (पोखर)। इसमें कोई जीव नहीं। खारे पानी की झील। जरा बगल में मीठा मानसर

समय की अनंतता में विश्वास होने लगा था कि अब अंतहीन उंचाईयों पर अपने पैरों से चलते ही जाना था। या अंतहीन घाटियों में उतरते ही चले जाना है। चरते याकों के चारागाहों में कलकल नदियों से बतियाते चलना ही जीवन है।

इस वक्त भी समय काल से परे हम तिब्बती घाटियों में काली गण्डकी के मचाए उत्पात के कारण बरबाद हाईवे पर जाने कब से फंसे हैं। मैं वादी में सुगंधित झाडियों को... रंगीन चिड़ियों को खोज रही हूं। लोग महादेव से गुहार लगा रहे हैं।

मैं कैलाश की आंखे मन में लिए मगन। मुझे ताप चढ़ा है 102 ... यात्रा में नेपाल सीमा पर आते ही पानी के इनफेक्शन के कारण चढ गया था। जाने किस भाव ने 38 किमी की दुर्गम परिक्रमा लगा ली।

बहरहाल मैं इन बूटियों के बीच लेट गई हूं। कहते हैं सुमेरू पर्वत भी यहीं कहीं है। इनकी गंध और श्रावणी मीठी धूप मेरा ताप हर रही है।

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कैलाश मानसरोवर की राह में लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ।

मां बचपन में सपनीले ढंग से बताती थी - सुदूर अलंघ्य ऊंचाइयों पर कैलाश पर्वत है। शिव का निवास। जहां भवानी कार्तिकेय और गणेश को दुलराती हैं। वहीं तलहटी में अछोर अमृतजल से छलकता मानसरोवर है। जिसमें स्वर्ण हंस तिरते हैं, मोती चुगते हैं।

मां तो यहां आने की कल्पना भी न करती होगी। हम भी इसे कल्पना में देखते मां के सुनहरे रुपहले शब्दों से जो जन्मती। मां बहुत याद किया तुमको। तुम होती तो कितना खुश होतीं। राजहंस तो नहीं बार हेडेड गूज़, टर्न्स, सुरखाब खूब थे। खूब केलियां करते।

पर मां इस मानसरोवर पर भी भारतीय प्लास्टिक कचरा फेंकने से बाज़ नहीं आते। चीन ने बंदिश लगा रखी है डुबकी और कपड़े वहां फेंकने पर, हवन कर कचरा करने पर.....पर भारतीय आस्था। वे मानते नहीं।

मानसरोवर भारत में होता तो आस्था के हाथ नष्ट हो गया होता। मैला खड्ड भर। बौद्ध और बॉन भी कैलाश को पूजते हैं। परिक्रमा पैदल करते हैं। भारतीय यह पुण्य अपने 70 - 90 किलो वजन को घोड़ों पर लाद कर, उन्हें प्रदान करते हैं। और डर कर घोड़े को पकड़ प्रकृति के आनंद, फोटोग्राफी तक से वंचित रह जाते हैं। मॉम बट आई डिड इट।"

(मनीषा कुलश्रेष्ठ हिंदी की लोकप्रिय कथाकार हैं। इनका जन्म और शिक्षा राजस्थान में हुई। फौजी परिवेश ने इन्हें यायावरी दी और यायावरी ने विशद अनुभव। अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों, सम्मानों, फैलोशिप्स से सम्मानित मनीषा के सात कहानी कहानी संग्रह और चार उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। मनीषा आज कल संस्कृति विभाग की सीनियर फैलो हैं और ' मेघदूत की राह पर' यात्रावृत्तांत लिख रही हैं। उनकी कहानियां और उपन्यास रूसी, डच, अंग्रेज़ी में अनूदित हो चुके हैं।)

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