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‘नशामुक्ति एक घटना नहीं बल्कि एक प्रक्रिया है, इसमें मुश्किलें आती है, लेकिन नशा करने वाले के लिए अपने जीवन को वापस जीतना महत्वपूर्ण’

गाँव कनेक्शन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ मिलकर शराब को लेकर एक जागरूकता अभियान चलाया - मेरी प्यारी जिंदगी। इस सीरीज के अंतिम भाग में स्वास्थ्य कार्यकर्ता और मनोचिकित्सक नशामुक्ति के बारे में बता रहे हैं और साथ ही यह भी कि नशा करने वाले को शराब से दूर रहने के लिए क्या करना चाहिए।
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बीयर या व्हिस्की का एक घूंट जीवन के सभी रंगों का स्वाद लेने का एक आसान सा रास्ता नजर आ सकता है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि कुछ लोग शराब की लत का शिकार क्यों और कैसे हो जाते हैं?

जब गाँव कनेक्शन ने ‘नशामुक्ति’ विशेषज्ञों से यह सवाल किया तो पता चला कि शराब की लत के लिए बॉयलोजी, साइकलॉजी और सोशलॉजी तीनो ही समान रूप से जिम्मेदार हैं। विशेषज्ञों ने सर्वसम्मति से कहा कि नशामुक्ति अचानक से होने वाली कोई एक घटना नहीं है बल्कि कई स्तर पर चलने वाली प्रक्रिया है जिसमें धैर्य की जरूरत होती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन क्षेत्रीय कार्यालय दक्षिण-पूर्व एशिया (एसईएआरओ) और गाँव कनेक्शन द्वारा संयुक्त रूप से शुरू किया गया एक जागरूकता अभियान, मेरी प्यारी जिंदगी नामक सीरीज का यह अंतिम भाग है। यह भाग दरअसल एक लघु फिल्म है जिसमें चिकित्सा पेशेवर और मनोचिकित्सक शराब की लत लगने, इसे रोकने और नशामुक्ति प्रक्रिया के बारे में बात करते हैं।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) रायबरेली में मनोचिकित्सा विभाग में सहायक प्रोफेसर रश्मि शुक्ला ने गाँव कनेक्शन को बताया, “शराब की लत एक डोपामाइन रश के साथ शुरू होती है। डोपामाइन एक ऐसा रसायन है जो मस्तिष्क को एक सुखद अनुभूति देता है और यह स्वाभाविक रूप से शरीर में तब उत्पन्न होता है जब हम कुछ ऐसा करते हैं जो हमारे रिवार्ड मैकेनिज्म को संतुष्ट करता है। व्यायाम, योग, नृत्य और संगीत सुनना हमारे शरीर में डोपामिन रिलीज करने वाली गतिविधियां हैं।

उन्होंने कहा, “शराब में हमारे शरीर के अंदर डोपामाइन उत्पादन को बाधित करने की प्रवृत्ति होती है। नियमित रूप से शराब का सेवन करने वाला व्यक्ति, खुशी पाने के लिए इसका इस्तेमाल करना शुरू कर देता है. वो खुशी जिसे वह स्वस्थ गतिविधियों से प्राप्त कर सकता है।”

शराब की लत से जुड़ी बॉयलोजी, साइकलॉजी और सोशलॉजी

लखनऊ स्थित किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के मनोचिकित्सा विभाग के एडिशनल प्रोफेसर अमित आर्य ने कहा कि शराब की प्रवृत्ति है कि वह किसी व्यक्ति के दीमाग पर कब्जा जमा लेती है और उसे नशे की ओर ले जाती है. दरअसल ये प्रवृत्ति बॉयलोजी, साइकलॉजी और सोशलॉजी तीनो को ही समान रूप से प्रभावित करती है।

डॉक्टर ने बताया, “शराब न केवल सेहत को नुकसान पहुंचाती है बल्कि नशा करने वाले व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डालती है और अंत में इसका असर समाज पर पड़ता है. क्या किसी व्यक्ति को नशे की लत है और उसे चिकित्सा सहायता की जरूरत है? यह पता लगाने का एकमात्र तरीका है कि शराब पर उसकी निर्भरता के पांच प्रभावों को देख जाए – शारीरिक नुकसान, मनोवैज्ञानिक नुकसान, पारिवारिक या सामाजिक नुकसान, कानूनी नुकसान और पांचवां आर्थिक या व्यावसायिक नुकसान।

उन्होंने कहा, “यदि ये लक्षण किसी व्यक्ति में नजर आने लगें तो यह निश्चित ही यह एक चेतावनी संकेत है कि शराब ने व्यक्ति के दीमाग पर कब्जा कर लिया है और उसे जल्द से जल्द इलाज की जरूरत है।”

इस मानसिक विकार का इलाज संभव

केजीएमयू के मनोचिकित्सा विभाग के एडिशनल प्रोफेसर आदर्श त्रिपाठी ने गाँव कनेक्शन को बताया कि शराब एक मानसिक विकार है और इलाज के जरिए इसे पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। बशर्ते रोगी सहयोग करे और शराब छोड़ने की दृढ़ इच्छा रखता हो।

त्रिपाठी ने कहा, “शराब के आदी व्यक्ति के लिए पुनर्वास केंद्र और दवाइयां, कई बार इस हानिकारक स्थिति से बाहर आने के लिए काफी महत्वपूर्ण हो जाती हैं। सरकारी पुनर्वसन केंद्रों में सभी सुविधाएं मौजूद हैं और इस बात का खास ख्याल रखा जाता है कि मरीज को उचित देखभाल मिले और उसे दुर्व्यवहार या भेदभाव का सामना न करना पड़े।”

उन्होंने यह भी बताया कि कई बार शराब पीने की इच्छा इतनी प्रबल होती है कि उसे केवल परामर्श देकर शांत नहीं किया जा सकता है। डॉक्टर ने समझाते हुए कहा, “ऐसी स्थितियों में हमारे पास दवाएं हैं जो एक मरीज के शराब पीने की इच्छा को कम करती हैं।”

क्या कोई व्यक्ति शराब छोड़ने के बाद फिर से नशे की लत का शिकार हो सकता है? यह पूछे जाने पर डॉक्टर ने बताया कि फिर से शराब की लत न लगे, इस संभावना को पूरी तरह खत्म करने के लिए निरंतर उपचार जरूरी होता है।

रश्मि शुक्ला इसी पर आगे कहती हैं कि मरीज एक अंतराल के बाद शराब पीना फिर से शुरू न करे, इसके लिए बिहेवियरल थेरेपी (व्यवहारपरक चिकित्सा) और मोटीवेशन महत्वपूर्ण है।

शुक्ला बताती हैं, “मरीज की शराब की लत का इलाज करने और उसे संयत करने के बाद भी उसका उपचार खत्म नहीं होता है। शराब से लंबे समय तक मुक्ति दिलाने के लिए ग्रुप कांउसलिंग और उन्हें प्रेरित करने जैसी गतिविधियां महत्वपूर्ण हैं। शराब के आदी लोगों के लिए से ग्रुप कांउसलिंग से काफी फायदा पहुंचता है. यहां मरीज दूसरों के साथ अपने आपको जोड़ पाता हैं और महसूस करता हैं कि इस पीड़ा से गुजरने वाला वह अकेला नहीं है। उसके जैसे और भी बहुत लोग हैं।”

बढ़ रही है शराब की खपत

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की अल्कोहल एंड हेल्थ 2018 पर ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर की 15 साल से अधिक उम्र की आबादी में प्रति व्यक्ति कुल शराब की खपत 2005 में 5.5 लीटर से बढ़कर 2010 में 6.4 लीटर हो गई और 2016 में भी यह 6.4 लीटर के स्तर पर थी।

डब्ल्यूएचओ अफ्रीकी क्षेत्र, अमेरिका के क्षेत्र और पूर्वी भूमध्य क्षेत्र में प्रति व्यक्ति शराब की खपत स्थिर रही। यूरोपीय क्षेत्र में यह 2005 में 12.3 लीटर से घटकर 2016 में 9.8 लीटर हो गई। डब्ल्यूएचओ पश्चिमी प्रशांत और दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति शराब की खपत में वृद्धि की बात कही गई है। भारत इन्हीं देशों में से एक है।

डब्ल्यूएचओ पश्चिमी प्रशांत और दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति शराब की खपत में वृद्धि हुई। इन क्षेत्रों में चीन और भारत के अत्यधिक आबादी वाले देश शामिल हैं जो वृद्धि के लिए जिम्मेदार हैं (चीन: 2005, 2010 और 2016 में क्रमशः 4.1 लीटर, 7.1 लीटर और 7.2 लीटर; भारत: 2005, 2010 और 2016 में क्रमशः 2.4 लीटर, 4.3 लीटर और 5.7 लीटर)।

डब्ल्यूएचओ की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, 2025 तक अमेरिका, दक्षिण-पूर्व एशिया और पश्चिमी प्रशांत में 15 वर्ष और उससे अधिक उम्र के व्यक्तियों में प्रति व्यक्ति कुल शराब की खपत बढ़ने का अनुमान है।

रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि “दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में सबसे अधिक वृद्धि की उम्मीद है, अकेले भारत में शराब की खपत में 2.2 लीटर की बढ़ोतरी होगी। भारत इस क्षेत्र की कुल आबादी के एक बड़े अनुपात का प्रतिनिधित्व करता है।”

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